प्रादेशिक
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए यूपी के सभी विकासखंडों में जुलाई में खुलेंगे 5000 नए सब हेल्थ सेंटर
लखनऊ। कोविड प्रबंधन से कोरोना की दूसरी लहर पर जीत हासिल करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेशवासियों को बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं प्रदान करने में जुटी है। संभावित कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को त्वरित और गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिये उसने बड़ी घोषणा की है। 18 मण्डल, 75 जिलों के बाद अब वो 822 छोटे-बड़े विकासखंडों में जुलाई माह में 5000 नए सब हेल्थ सेंटर खोलने जा रही है।
विकासखंडों तक प्रत्येक व्यक्ति को चिकित्सीय सुविधाओं को दिलाने के लिये यूपी सरकार बड़ी पहल कर रही है। प्रदेश में जिन क्षेत्रों में सीएचसी और पीएचसी नहीं हैं वहां सब हेल्थ सेंटरों की स्थापना की जा रही हैं। इन सब हेल्थ सेंटरों में बीमार लोगों को तत्काल इलाज मिलेगा, गंभीर रोगियों की जांच की सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। वर्तमान में प्रदेश में 20812 सब हेल्थ सेंटर पहले से यूपी में संचालित हैं। जुलाई माह में 5000 नए सब हेल्थ सेंटर स्थापित कराए जाएंगे। राज्य सरकार ने प्रदेश में इनकी संख्या 32000 तक पहुंचाने का बड़ा लक्ष्य रखा है। 5000 नए सब हेल्थ सेंटर मिलने के बाद यूपी में इनकी संख्या 25812 हो जाएगी। इन नए सब हेल्थ सेंटर खुलने के विस्तार से लोगों को और अधिक बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं मिलना पहले से और भी सरल हो सकेगा।
सीएचसी और पीएचसी में लगातार व्यवस्थाएं हो रहीं दुरुस्त
प्रदेश के सभी जनपदों में लोगों को बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया कराने के लिये सीएचसी और पीएचसी में व्यवस्थाओं को दुरस्त करने के निर्देश जारी किये गये हैं। 3022 पीएचसी, 855 सीएचसी और 592 शहरी पीएचसी में अत्धयाधुनिक चिकित्सीय उपकरणों की उपलब्धता पर जोर दिया जा रहा है। यहां उपकरणों की मरम्मत, क्रियाशीलता, परिसर की रंगाई-पुताई, स्वच्छता और मैन पावर की पर्याप्त उपलब्धता की विशेष कार्यवाही और तेज कर दी गई है। इसकी सतत मॉनीटरिंग के लिए भी अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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