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उत्तर प्रदेश

सिद्धांतविहीन राजनीति को मौत का फंदा मानते थे अटल जीः सीएम योगी

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लखनऊ |  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अटल जी की स्मृतियां न केवल लखनऊ बल्कि समूचे भारतवासियों के लिए नई जीवंतता का प्रमाण है। अटल जी देश में सुशासन के मॉडल और सर्वसमावेशी, सर्वस्पर्शी राजनीति के प्रतीक माने जाते हैं। उनका छह दशकों का राजनीतिक जीवन शुचिता, पारदर्शिता व ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है। अटल जी की बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे कहते थे कि सिद्धांतविहीन राजनीति मौत का फंदा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी जी के शताब्दी वर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘अटल गीत गंगा’ कार्यक्रम में शिरकत की। अतिथियों ने अटल बिहारी फाउंडेशन की स्मारिका का भी विमोचन किया। कार्यक्रम में प्रख्यात कवि कुमार विश्वास ने एकल काव्य पाठ किया।

मूल्यों व सिद्धांतों के साथ छह दशक तक एक ही विचारधारा को लेकर चले अटल जी

सीएम ने कहा कि अटल जी मूल्यों व सिद्धांतों के साथ छह दशक तक एक राजनीतिक विचारधारा को लेकर चले। पक्ष-विपक्ष की चिंता किए बिना देश व समाज के मूल्यों को लेकर कार्य किया। आने वाले समय के लिए मर्यादाओं का पालन हो, इसके लिए खरीद-फरोख्त की राजनीति से अलग रहते हुए सत्ता की परवाह किए बिना भावी पीढ़ी के लिए अटल जी ने जो मानक व आदर्श प्रस्तुत करने का गौरव प्रदान किया था, वह भारतीय राजनीति के लिए मार्गदर्शक है।

अटल जी ने वर्तमान पीढ़ी को ‘लक्ष्मण रेखाओं’ के साथ चलने की दी थी प्रेरणा

सीएम ने कहा कि शहरी हो या ग्रामीण विकास, अंत्योदय की परिकल्पना हो या देश के नौजवानों के लिए रोजगार सृजन के माध्यम, भारत की गरिमा-गौरव की रक्षा हो या सुरक्षा के मॉडल, यह सब अटल जी ने दिए। कवि, पत्रकार, राष्ट्रवादी विचारक, भारत मां के सच्चे सपूत होने के कारण सच्चे-संवेदनशील महामानव के रूप में अटल जी के प्रति हर दल, व्यक्ति, भारतवासी श्रद्धा व सम्मान का भाव रखता है। अटल जी ने कहा था- मेरे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई कभी न देना, गैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना। उन्होंने वर्तमान पीढ़ी को ‘लक्ष्मण रेखाओं’ के साथ चलने की प्रेरणा भी दी थी।

विपरीत मौसम में भी सुबह से आयोजनों के जरिए जीवंत हो रहीं अटल जी की स्मृतियां

सीएम योगी ने कहा कि अटल बिहारी फाउंडेशन प्रतिवर्ष दो बड़े आयोजन करता है। विपरीत मौसम में भी केडी सिंह बाबू स्टेडियम में आज सुबह 25-30 हजार साथियों के साथ युवा कुम्भ में जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ, वे सभी अटल जी की स्मृतियों को जीवंत कर रहे थे। अटल स्वास्थ्य मेला के जरिए 2019 से 2023 तक 50 हजार से अधिक लखनऊवासी लाभान्वित हुए, जिन्हें निःशुल्क स्वास्थ्य परामर्श, उपचार, दिव्यांगजनों को उपकरण का लाभ मिला। इस वर्ष भी यह मेला कल तक चलेगा। अब यहां इस आयोजन से जुड़ने का अवसर प्राप्त हो रहा है। वहीं प्रदेश के हर जनपद में सुशासन पर निबंध लेखन, भाषण, गोष्ठियां हो रही हैं तो नवोदित कवियों के लिए मंच लगा है, जिसमें वे अटल जी की कविताओं का काव्य पाठ कर सकते हैं। प्रतियोगिताओं के विजेताओं को बुधवार को पुरस्कृत किया जाएगा।

कार्यक्रम संयोजक उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह, राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा, अमरपाल मौर्य, संजय सेठ, महापौर सुषमा खर्कवाल, विधायक योगेश शुक्ल, नीरज बोरा, सुरेंद्र मैथानी, मनीष रावत, विधान परिषद सदस्य मुकेश शर्मा, रामचंद्र प्रधान, इंजी. अवनीश सिंह, पवन सिंह चौहान, उमेश द्विवेदी, संतोष सिंह आदि मौजूद रहे।

रक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री ने किया सम्मानरक्षा मंत्री व मुख्यमंत्री ने गंगाधर प्रसाद तिवारी, पवन अग्रवाल, सतीश कुमार रस्तोगी, गणेश प्रसाद वर्मा, हनुमंत सिंह, अनीता अग्रवाल, आरपी त्रिपाठी को अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न व पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया।

उत्तर प्रदेश

प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन

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 महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।

महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।

महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान

महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।

प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम

दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।

महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार

महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।

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