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कानून के बजाय बदलनी होगी समाज की मानसिकता : कमला भसीन
मोनिका चौहान
नई दिल्ली| नारीवादी कार्यकर्ता और ‘संगत-साउथ एशियन फेमिनिस्ट नेटवर्क’ की सलाहकार कमला भसीन का कहना है कि समाज में जिस तरह महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं और इनमें किशोरों की संलिप्तता बढ़ती जा रही है, ऐसे में कानून में बदलाव लाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि समाज अपनी मानसिकता में बदलाव लाए।
देश की राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 को घटित क्रूरतम सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने सबका ध्यान 18 साल के उस किशोर की ओर खींचा, जो इस दुर्घटना का मुख्य अरोपी था। दोषी किशोर को अदालत द्वारा किशोर न्याय अधिनियम (2000) के तहत तीन साल तक बाल सुधार गृह में रखा गया और अवधि पूरी होने पर रिहा कर दिया गया। लेकिन जनता इस अपराधी किशोर को माफ करने को तैयार नहीं है। निर्भया की मां आशा देवी सहित दिल्ली की महिलाएं उसे फांसी पर झूलता देखना चाहती हैं।
गौरतलब है कि रविवार को तीन साल की सजा पूरी होने के बाद किशोर को रिहा किया गया, लेकिन उसकी रिहाई से कुछ दिन पहले से ही लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और उसे रिहा न करने और अधिनियम विधेयक में संशोधन की मांग की। स्वयं निर्भया की मां ने किशोर को फांसी की सजा देने की मांग करते हुए जमकर विरोध प्रदर्शन किया।
लोकसभा में सात मई, 2015 को किशोर न्याय अधिनियम (2000) अधिनियम विधेयक में संशोधन पारित हो गया। इस विधेयक के साथ जघन्य अपराध करने वाले 16-18 आयुवर्ग के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाए जाने के प्रावधान का रास्ता साफ हो गया, जिसके बाद मंगलवार को राज्यसभा में भी किशोर न्याय अधिनियम (बाल देखभाल और संरक्षण), 2015 पास कर दिया गया।
आईएएनएस ने जब एक साक्षात्कार में इस बारे में कमला भसीन से पूछा, तो उन्होंने कहा, “कानूनों में बदलाव लाने के बजाय समाज की मानसिकता में बदलाव लाना होगा। ऐसे मामलों में संलिप्त 16 से 18 साल उम्र के बच्चे बहुत ज्यादा नहीं होंगे। ये बच्चे जन्म से अपराधी नहीं होते, इन्हें बनाया जाता है।”
भारत में वर्ष 2011 में 16-18 आयुवर्ग के 33,000 किशोरों को गिरफ्तार किया गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, पिछले साल भारतीय दंड सहिता (आईपीसी) तथा विशेष और स्थानी कानून (एससीसी) के तहत किशोरों के खिलाफ 43,506 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें से 28,830 अपराध 16-18 आयुवर्ग के किशोरों ने किए थे।
कमला ने बताया, “इस तरह के आंकड़े सामने आते रहते हैं, लेकिन इन आंकड़ों से अधिक महत्व है इस बात पर ध्यान देना कि आखिर इनमें बढ़ोतरी क्यों हो रही है? इस तरह के अपराधों को अंजाम देने वाले ज्यादा बच्चे गरीब तबके से आते हैं, जिनके साथ शोषण किया जाता है।”
कमला ने कहा, “ये बच्चे जन्म से अपराधी नहीं होते, समाज इन्हें अपराधी बनने पर मजबूर करता है।”
कमला से जब पूछा गया कि दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) अध्यक्ष स्वाति मालिवाल द्वारा किशोर की रिहाई में रोक लगाने की याचिका और निर्भया की मां तथा देश की अधिकांश जनता द्वारा की जा रही फांसी की सजा की मांग कहां तक सही है?, तो उन्होंने कहा, “सबसे पहले तो यह देखना चाहिए कि मेरे लिए न्याय का मतलब क्या है? बदला लेना? अगर अदालत भी हत्या की सजा देने लग जाएगी, तो फिर कानून बनाने का क्या मतलब रह जाएगा? एक तरफ हम सजा की मांग करते हैं और दूसरी तरफ समाज बच्चों का शोषण करता है। हम ही उन बच्चों को बाल मजदूरी के लिए मजबूर करते हैं और हम ही हर प्रकार से इनका शोषण करते हैं और फिर सजा की मांग भी हम ही कर रहे हैं।”
रविवार को बाल सुधार गृह से रिहा हुए किशोर को गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) भेजा जाएगा। कमला से जब पूछा गया, कि क्या ऐसे में किशोर में बदलाव संभव है? इस पर उन्होंने कहा, “वह भी हमारे देश का बच्चा है। यहां एक इंसान को सुधारने की बात की जा रही है। हर इंसान में बदलाव हो सकता है। हर व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो सकता है। लोग कह रहे हैं कि इसमें बदलाव नहीं हुआ है, तो यह बताइए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है?”
कमला ने आगे कहा, “एक तरफ हम स्मार्ट सिटी और अन्य बड़ी परियोजनाओं पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने के लिए तैयार हैं, लेकिन दूसरी ओर यह देखिए कि हम इन किशोरों के जीवन में सुधार के लिए क्या कर रहे हैं। सजा से अपराध कम नहीं होते, हमारी सोच-विचार से अपराधों में कमी आएगी। अगर सजा-ए-मौत देने से अपराधों में कमी आती, तो फिर कोई अपराध होता ही नहीं, जितने पैसों में इन बड़ी परियोजनाओं में काम हो रहा है, उतने में तो न जाने कितने किशोरों के जीवन में सुधार लाया जा सकता है।”
कमला जी पिछले 40 सालों से महिला अधिकारों के लिए लड़ रही हैं और वह अपने बाल्यकाल में स्वयं शोषण का शिकार हुई हैं। उन्होंने कहा, “इस तरह के अपराध, जो बढ़ रहे हैं उनके पीछे कई मुख्य कारण हैं। पॉर्न फिल्में और ‘शीला की जवानी’, ‘मैं तंदूरी मुर्गी हूं’ जैसे गाने समाज में गंदगी फैला रहे हैं। ऐसी चीजें लड़कियों-महिलाओं को एक चीज के रूप में प्रस्तुत करती हैं। इसके अलावा समाज से पितृसत्ता की मानसिकता को जड़ से उखाड़ कर फेंकना होगा, जो महिलाओं को कमतर समझती है।”
कानून में बदलाव को लेकर कमला ने कहा, “संविधान में जहां एक ओर पुरुष औ महिला के बीच समानता की बात की गई है, वहीं दूसरी ओर इसके उलट महिलाओं को कमजोर माना जाता है और सबसे बड़ी बात की महिलाओं ने समाज की इज्जत का बीड़ा उठाया हुआ है। अगर उनकी इज्जत चली जाती है, तो समझ लिया जाता है कि परिवार की इज्जत चली गई।”
उन्होंने बताया कि 40 प्रतिशत पुरुष अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हैं। यह सारी चीजें घर से शुरू होती है, जहां पति को मालिक बना दिया जाता है। उनके अनुसार, यह संविधान के खिलाफ है। यह वो समाज है जो महिलाओं को कमतर समझता है।
कमला से लड़कियों को दिए गए अपने संदेश में कहा, “मैं कहना चाहती हूं कि वह बाहर निकलें। इससे बहुत फर्क पड़ेगा। इस तरह के अपराधों का सामना करने वाली लड़कियों को इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए। डर के घर में नहीं बैठिए, बाहर आइए और संविधान में समानता की जो बात कही गई है, उसे सच कीजिए।”
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दिल्ली पुलिस ने HIBOX ऐप घोटाले में एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती को जारी किया नोटिस, करीब 30 हजार लोगों के साथ हुई थी ठगी
नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस ने HIBOX ऐप घोटाले में एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती को नोटिस जारी किया है। रिया ने विज्ञापन के जरिए लोगों को इस ऐप में निवेश करने के लिए मोटिवेट किया। हाइबॉक्स ऐप से जुड़े मामले में 500 करोड़ के घोटले का खुलासा हुआ। दिल्ली पुलिस ने इस फ्रॉड के मास्टरमाइंड सिवाराम को पहले ही गिरफ्तार कर लिया है। जिसने नवंबर 2016 में सवरुल्ला एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी शुरू की थी। जिसके बाद फरवरी 2024 में हाइबॉक्स ऐप को लॉन्च किया था। इस ऐप के माध्यम से करीब 30 हजार लोगों के साथ ठगी की गई है। इस घोटले में कई मशहूर सितारे और हाई-प्रोफाइल यूट्यूबर भी शामिल बताए जा रहे हैं।
हाइबॉक्स क्या होता है
हाइबॉक्स ऐप को एक निवेश योजना के तौर पर प्रमोट किया गया है। इस ऐप में साइन अप करके पैसे इन्वेस्ट कराए जाते हैं। इस ऐप के माध्यम से एक से पांच फीसदी तक ब्याज देने का दावा किया जाता है। यह ऐप एक महीने में 30-90 फीसदी तक का रिर्टन देने का भी आश्वासन देता है। इस ऐप ने शुरऊ में रिटर्न दिया। लेकिन बाद में जुलाई 2024 में इस ऐप में टेक्निकल गड़बड़ी और लीगल वैलिडिटी का हवाला देकर पेमेंट रोक दी गई।
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