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उत्तर प्रदेश

‘यूपी जोड़ो यात्रा’ अपने अंतिम चरण में सहारनपुर से कल पहुंचेगी लखनऊ, कांग्रेस जन व  सामाजिक कार्यकर्ता करेंगे स्वागत

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Congress UP Jodo Yatra

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लखनऊ। यूपी कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने जानकारी देते हुए बताया की सहारनपुर से चल रही यूपी जोड़ो यात्रा कल दिनांक 4 जनवरी 2024 को लखनऊ जनपद की सीमा में प्रवेश कर गई, जहां पर कांग्रेस जनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं – आम जनों ने इटौंजा टोल प्लाजा पर यूपी जोड़ो यात्रा का स्वागत किया, यात्रा का पड़ाव बख्शी तालाब में होगा और आज दिनांक 5 जनवरी एवं कल 6 जनवरी को लखनऊ जनपद में यात्रा तय मार्ग पूरा कर दिनांक 6 जनवरी 2024 को शहीद स्मारक लखनऊ पहुंचकर शहीदों को नमन करने के उपरांत राजनीतिक संकल्प के साथ विराम लेगी।

प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने यूपी जोड़ो यात्रा के लखनऊ के निर्धारित रोडमैप के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज दिनांक 5 जनवरी को यात्रा बख्शी तालाब से प्रारंभ होकर आई.आई.एम रोड तिराहा होते हुए मड़ियांव, ताड़ीखाना, हाथी मंदिर, त्रिवेणी नगर, सीतापुर रोड होते हुए,खदरा, पक्का पुल, टीले वाली मस्जिद, बड़ा इमामबाड़ा, चौक ,अकबरी गेट, नक्खास तिराहा, से यहियागंज होते हुए रकाबगंज लखनऊ स्थित आर.के. पैलेस पहुंचकर रात्रि विश्राम करेगी।

दिनांक 6 जनवरी को रकाबगंज लखनऊ से प्रारंभ होकर रानीगंज, नाका चौराहा , होते हुए गुरुद्वारा , बांसमंडी चौराहा,अंबेडकर तिराहा, चारबाग, के . के.सी, के आगे छितवापुर, महाराणा प्रताप चौराहा, बर्लिंगटन चौराहा, शुभम टॉकीज चौराहा, कैसरबाग चौराहा होते हुए परिवर्तन चौक के रास्ते से शहीद स्मारक पहुंचकर शहीदों को नमन कर राजनीतिक संकल्प के साथ यात्रा का विराम होगा।

अंशू अवस्थी ने बताया की लखनऊ में यात्रा का जगह – जगह स्वागत की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, यात्रा में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी – राष्ट्रीय महासचिव श्री अविनाश पांडे, जी शामिल होंगे, यात्रा में चल रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री अजय राय और और सभी वरिष्ठ नेता, सांसद, विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, एआईसीसी मेंबर, पीसीसी मेंबर, कांग्रेस पदाधिकारी एवं नेता और हजारों की संख्या में कार्यकर्ता शामिल रहेगें।

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उत्तर प्रदेश

प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन

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 महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।

महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।

महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान

महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।

प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम

दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।

महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार

महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।

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