ऑफ़बीट
गुजरात के इस गाँव का हर कुत्ता है करोड़पति
अगर आपसे कोई पूछे कि किसी ऐसे कुत्ते के बारे में जानते हैं जो करोड़पति हो, तो आप का जवाब यही होगा कि कुत्ते कैसे करोड़पति हो सकते हैं। लेकिन ये सच है, गुजरात के महेसाणा से कुछ दूरी पर एक गाँव है पांचोट, यहां के कुत्ते जन्म से ही करोड़पति होते हैं। यह कुत्ते किसी अमीर मालिक के पालतू नहीं बल्कि गलियों में घूमने वाले आवारा कुत्ते हैं, जिनकी संख्या 1 या 2 नहीं बल्कि 70 है।
अब आप सोच रहे होंगे कि कुत्ते कैसे करोड़पति हैं, तो आइये हम आपको बताते हैं कि यहां का हर कुत्ता कैसे करोड़पति है। इस गांव में सदियों पुरानी परंपरा है कि अपने नाम की कुछ जमीन जानवरों के सरंक्षण के लिए दान की जाए। इस गांव में एक ट्रस्ट है, जिसका नाम है माढ की पाटी कुतरिया ट्रस्ट। इसके माध्यम से कुत्तों को पाला जाता है। लोग इस ट्रस्ट को अपनी जमीन या खेत दान में देते हैं। अब तक इस ट्रस्ट के पास 28 बीघा जमीन हो चुकी है। कुछ जमीनों पर दुकान आदि बना दिए गए हैं, जिसकी इनकम से कुत्तों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है। अगर गांव के कुत्तों की संख्या और उनके नाम की सम्पत्ति का लेखा-जोखा किया जाए, तो एक कुत्ते के नाम पर 3 करोड़ की सम्पत्ति है।
देखते ही देखते करोड़पति हो गए कुत्ते
यहां के कुत्ते हमेशा से करोड़पति नहीं थे। इन कुत्तों के कारण महेसाणा शहर का विकास हुआ। पांचोट गांव के करीब से शहर का बायपास रोड निकला और रातो-रात लाखों की जमीन की कीमत करोड़ों की हो गई। उधर देखते ही देखते गली के कुत्ते भी करोड़पति हो गए।
गाँव वाले करते हैं ज़मीन की देखभाल
यहां के ट्रस्ट में गांव के लोग ही जमीन की देखभाल करते हैं। खेती से पैदा हुए अनाज की बिक्री से इनकम, बिल्डिंग या दुकानों के रूप में किराए से आने वाली आय का उपयोग कुत्तों पर ही किया जाता है। कुत्तों को केवल रोटी ही नहीं, बल्कि लड्डू भी खिलाया जाता है।
गाँव वालों ने निर्णय लिया है कि अगर करोड़पति कुत्तों के नाम की जमीन की कीमत बढ़कर अरबों भी हो जाएगी, तो भी उसे बेचा नहीं जाएगा। दान की हुई यह जमीन आखिर तक कुत्तों के नाम पर ही रहेगी। उसमें खेती होगी अवश्य, पर उससे होने वाली आवक का उपयोग फिर कुत्तों की भलाई के लिए ही किया जाएगा।
ऑफ़बीट
बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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