उत्तर प्रदेश
अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा से पहले बनकर तैयार हो जाएगा फोर लेन पंचकोसी परिक्रमा मार्ग
अयोध्या। अयोध्या में नवम्बर माह के दौरान आयोजित होने वाली पंचकोसी परिक्रमा से पहले योगी सरकार की ओर से बनाए जा रहे फोर लेन परिक्रमा मार्ग का निर्माण एवं सड़क चौड़ीकरण पूरा कर लिया जाएगा। लोक निर्माण विभाग द्वारा अब तक 55 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया गया है। अयोध्या के विकास के लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार अरबों रुपये के बजट से विभिन्न परियोजनाएं चला रही है। अयोध्या की प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अयोध्या आकर परिक्रमा करते हैं। श्रद्धालुओं को परिक्रमा के लिए सुगम मार्ग उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश की योगी सरकार फोर लेन का निर्माण करा रही है।
पंचकोसी परिक्रमा मार्ग को फोर लेन करने व सड़क का चौड़ीकरण करने के लिए प्रदेश सरकार ने 473.22 करोड़ की लागत से फोर लेन का निर्माण प्रारम्भ कराया है। सड़क की लम्बाई 9.025 किलोमीटर है। पंचकोसी परिक्रमा का निर्माण 16 अक्टूबर 2023 से प्रारम्भ हुआ। अबतक लगभग 55 प्रतिशत सड़क निर्माण पूरा हो चुका है।
बता दें कि नव्य, भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति स्थापित होने के बाद यह पहली पंचकोसी परिक्रमा होगी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा में तो श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटेगी साथ ही पंचकोसी परिक्रमा में भी भारी भीड़ जुटने की संभावना है। ऐसे में फोरलेन का निर्माण करा रही निर्माण इकाई लोक निर्माण विभाग 26 नवम्बर 2024 तक पंचकोसी परिक्रमा मार्ग को फोर लेन के रूप में तैयार कर लेना चाहता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की समीक्षा बैठक में इस बात पर जोर दिया गया है कि पंचकोसी परिक्रमा से पहले हर हाल में पंचकोसी परिक्रमा मार्ग के निर्माण को पूरा कर लिया जाए।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
-
नेशनल1 day ago
अवध ओझा ने केजरीवाल को बताया भगवान कृष्ण का अवतार, कहा- समाज के कंस उनके पीछे पड़े हुए हैं
-
उत्तर प्रदेश1 day ago
बस्ती में नाबालिग से बर्बरता, नग्न कर पीटा, पेशाब पिलाते हुए बनाया वीडियो, आहत होकर कर ली आत्महत्या
-
उत्तर प्रदेश1 day ago
अटल जी का जीवन और विचारधारा पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत है: राजनाथ सिंह
-
मनोरंजन1 day ago
कुमार विश्वास ने कवि सम्मेलन के दौरान दिया विवादित बयान, अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के परिवार पर किया कटाक्ष
-
नेशनल1 day ago
कैसे एक कांस्टेबल बना करोड़पति, जानें इस काले धन के पीछे का सच
-
उत्तर प्रदेश1 day ago
महाकुम्भ की पहचान हैं टेंट, सुखद होगा शिविरों में प्रवास का अनुभव: मुख्यमंत्री
-
प्रादेशिक1 day ago
बिहार में पुरुष शिक्षक हुआ गर्भवती, मैटरनिटी लीव भी मिला, जानें पूरा मामला
-
नेशनल2 days ago
संसद में धक्का-मुक्की के दौरान घायल हुए बीजेपी के दोनों सांसद हुए अस्पताल से डिस्चार्ज