उत्तर प्रदेश
संगम के अरैल तट पर आईआरसीटीसी की लग्जरी टेंट सिटी ‘महाकुम्भ ग्राम’ बनकर तैयार
महाकुम्भनगर। विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक, आध्यात्मिक आयोजन महाकुम्भ 2025 की शुरूआत 13 जनवरी से प्रयागराज में होने जा रही है। महाकुम्भ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं। इसी क्रम में भारतीय रेलवे भी महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं को विश्व स्तरीय सुविधा देने का प्रबंध कर रहा है। भारतीय रेलवे महाकुम्भ में लगभग 3000 मेला स्पेशल ट्रेनों के साथ 1 लाख से अधिक यात्रियों के ठहरने के लिए आश्रय स्थल की व्यवस्था कर रहा है। वहीं दूसरी ओर भारतीय रेलवे की पर्यटन और आतिथ्य शाखा आईआरसीटीसी की ओर से महाकुम्भ में त्रिवेणी संगम के पास टेंट सिटी, महाकुम्भ ग्राम बनकर तैयार है। आईआरसीटीसी के महाकुम्भ ग्राम में पर्यटकों को रहने, खान-पान की विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ चिकित्सा और सुरक्षा सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाएगी।
महाकुम्भ ग्राम में बन कर तैयार हैं सुपर डीलक्स और विला टेंट हाउस
महाकुम्भ 2025 में प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रिओं और पर्यटकों के लिए मेला प्राधिकरण, पर्यटन विभाग और भारतीय रेलवे सभी तरह की जरूरी सुविधाओं और व्यवस्थाओं का प्रबंध कर रहा है। इसी क्रम में भारतीय रेलवे की पर्यटन और आतिथ्य शाखा आईआरसीटीसी ने प्रयागराज में नैनी, अरैल क्षेत्र के सेक्टर नंबर 25 में लग्जरी टेंट सिटी महाकुम्भ ग्राम का निर्माण किया है। आईआरसीटीसी की टेंट सिटी, महाकुम्भ ग्राम गंगा तट पर त्रिवेणी संगम से लगभग 3.5 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। महाकुम्भ ग्राम में विश्व स्तरीय लग्जरी टेंट सुपर डीलक्स और विला उपल्ब्ध होंगे, जिनका किराया 18,000 से 20,000 रुपए प्रतिदिन होगा। सुपर डीलक्स और विला टेंट में पर्सनल बाथरूम, गर्म और ठंडे पानी की सुविधा, ब्लोअर, बेड लिनन, तौलिए से साथ खाने की सुविधा भी शामिल हैं। विला टेंट के मेहमान अतिरिक्त रूप से एक अलग आरामदायक बैठने की जगह और टेलीविजन का आनंद भी ले सकेंगे।
ऑनलाइन बुकिंग सुविधा आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध
टेंट सिटी,महाकुम्भ ग्राम में 10 जनवरी से 28 फरवरी तक ठहरने के लिए आनलाइन बुकिंग शुरू हो गई है। टेंट सिटी के लिए बुकिंग आईआरसीटीसी की वेब साईट www.irctctourism.com/mahakumbhgram पर आसानी से की जा सकती है। महाकुम्भ ग्राम, के बारे में आईआरसीटीसी की वेबसाईट www.irctc.co.in या फिर पर्यटन विभाग की वेबसाइट और महाकुम्भ ऐप पर भी उपलब्ध है। इसके आलावा आईआरसीटीसी के व्यावसायिक पार्टनर Make My Trip और Go IBIBO की वेबसाइट से भी बुकिंग की जा सकेगी। महाकुम्भ ग्राम में रहने वालों के लिए प्राथमिक चिकित्सा सुविधा के साथ सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरों से निगरनी की व्यवस्था भी की गई है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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