प्रादेशिक
आंध्र प्रदेश की पूरी कैबिनेट से इस्तीफा ले सकते हैं जगन मोहन रेड्डी, जानें क्या है प्लानिंग
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी अपनी पूरे मंत्री परिषद को ही बदलने का प्लान बना रहे हैं। वह 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री परिषद भंग कर सकते हैं और नए मंत्रियों को शामिल कर सकते हैं। आज राज्य की कैबिनेट मीटिंग में इस पर चर्चा हो सकती है। इसके बाद सभी मंत्रियों से इस्तीफा देने को कहा जा सकता है। फिर नए सिरे से जगन मोहन रेड्डी कैबिनेट का गठन करेंगे। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि इसी सप्ताह के अंत तक आंध्र प्रदेश सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि इस्तीफा देने वाले मंत्रियों की लिस्ट गवर्नर को भेजी जाएगी। मौजूदा मंत्री परिषद के सिर्फ 4 से 5 नेताओं को जगन मोहन रेड्डी बनाए रखने के मूड में हैं।
कहा जा रहा है कि जगन मोहन रेड्डी के नए मंत्री परिषद में सभी 26 जिलों का प्रतिनिधित्व होगा। हाल ही में राज्य में 13 नए जिलों का गठन हुआ है, उससे पहले सूबे में जिलों की संख्या 13 ही थी। बुधवार शाम को जगन मोहन रेड्डी ने गवर्नर बी. हरिचंदन से मुलाकात की थी और उन्हें बताया कि वह अपनी पूरी कैबिनेट में ही फेरबदल करने की योजना बना रहे हैं। मुख्यमंत्री अब शुक्रवार को एक बार फिर से गवर्नर से मुलाकात कर सकते हैं औऱ उन्हें उन मंत्रियों की लिस्ट सौंप सकते हैं, जिनका इस्तीफा लिया जाना है। कहा जा रहा है कि 9 या 11 अप्रैल को मंत्रियों के इस्तीफे लिए जा सकते हैं।
जगन मोहन रेड्डी ने 2019 में सत्ता में आने के दौरान ही इस बात का ऐलान किया था कि वह अपनी कैबिनेट में मिड-टर्म में बदलाव करेंगे। उनका मानना है कि इस बदलाव से ऐंटी-इनकम्बैंसी से निपटने में मदद मिलेगी। इसके अलावा 2024 के लिए रणनीति भी तैयार की जा सकेगी। जगन मोहन रेड्डी ने राज्य में क्षेत्रीय संतुलन की राजनीति के तहत ही नए जिलों का गठन किया है। नए जिलों का गठन करते हुए रेड्डी ने कहा था कि लोगों ने विकेंद्रीकरण की नीति को पसंद किया है। हमारी सरकार लोगों के घर तक सभी योजनाओं को पहुंचा रही है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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