उत्तर प्रदेश
महाकुम्भ में पीएम मोदी की अगवानी के लिए निषादराज ने किया प्रस्थान
प्रयागराज | उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को महाकुम्भ की नव्यता और भव्यता का दिव्य एहसास कराना चाहती है। इसी के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर इस बार का महाकुम्भ अभी तक के सभी कुम्भ से ज्यादा अलौकिक होने जा रहा है। पहली बार संगम क्षेत्र में निषादराज की उपस्थिति इसका उदाहरण है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन से पहले प्रयागराज के लिए वाराणसी से निकल चुका है। निषादराज क्रूज को भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने अपने कब्जे में लेकर वाराणसी से प्रयागराज की ओर रवाना कर दिया है। साथ ही इसके इंतजाम के लिए लगी टीम को तत्काल प्रभाव से सक्रिय भी कर दिया है। अत्याधुनिक सुविधाओं वाले इस क्रूज को रिसीव करने के लिए कस्तूरबा समेत दो वीआईपी वाहन बाकायदा नैनी ब्रिज के पीछे तैनात कर दिए गए हैं। मेला प्राधिकरण के साथ वाराणसी प्रशासन मिलकर तैयारियों को अंतिम रूप दे रहा है।
पीएम मोदी करेंगे क्रूज की सवारी
देश दुनिया की नजर इस समय महाकुम्भ पर टिकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी कार्यक्रम यहां 13 दिसंबर को प्रस्तावित है। श्रंगवेरपुर धाम में भगवान राम और निषादराज की प्रतिमा का पीएम मोदी अनावरण करेंगे। इसके बाद वे अत्यधिक सुविधाओं वाले निषादराज क्रूज पर सवार होकर अरैल से संगम तक आएंगे। यहां पीएम मोदी मां गंगा को प्रणाम कर संगम स्नान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे। उसके बाद गंगा आरती की योजना बनाई गई है, जिसके बाद बड़े हनुमान मंदिर और अक्षयवट का भी दर्शन करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसके साथ ही परेड स्थित सभा स्थल पर देश दुनिया के जाने-माने संतों से मुलाकात करेंगे।
मेला प्राधिकरण और वाराणसी प्रशासन के बीच कोआर्डिनेशन
अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि अत्याधुनिक सुविधाओं वाले निषादराज क्रूज को वाराणसी से प्रयागराज लाने में कोई दिक्कत ना हो, इसके लिए सभी पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं। क्रूज को लेकर मेला प्राधिकरण और वाराणसी प्रशासन के बीच लगातार कोआर्डिनेशन हो रहा है। वाराणसी प्रशासन ने क्रूज को प्रयागराज की ओर रवाना कर दिया है।
दूर कर दी गई है क्रूज के रास्ते की हर रुकावट
विशेष सुविधाओं वाले लग्जरी क्रूज निषादराज के जल्द ही प्रयागराज पहुंचने की संभावना है। अभी यह वाराणसी और प्रयागराज के बीच स्थित सीतामढ़ी तक पहुंच चुका है। देश विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए यह क्रूज विशेष तौर पर रोमांचकारी साबित होगा। इसे निकलने के लिए कम से कम 100 फीट का रास्ता जरूरी होता है। इसलिए क्रूज को यहां तक आने में रास्ते में कोई रुकावट न आने पाए, इसके इंतजाम किए जा रहे हैं। निषादराज क्रूज के साथ एक और बड़े जहाज को लगाया गया है, जो इसे यहां तक लाने में मदद कर रहा है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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