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लाउड म्‍यूजिक, शोर-शराबा बना सकता है आपको हाइपरटेंशन का मरीज

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शोर हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर डालता है। शारीरिक परेशानियों के अलावा शोर की वजह से लोगों में व्‍यवहार संबंधी समस्‍याएं भी सामने आती हैं। च्‍चों के अलावा शोर की वजह स े
हार्टकेअर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “अनचाही आवाजों को शोर कहा जाता है। जोर का शोर 85 डीबी या उससे अधिक होता है यानी आवाज का वह स्तर जो तीन फीट दूर खड़े किसी व्यक्ति से बात करने के लिए उठाना पड़ता है। शोर एक जाना-माना पर्यावरणीय तनाव है, जिसमें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव दोनों शामिल रहते हैं।

उन्होंने कहा कि यह चिंता, उच्च रक्तचाप, दिल के धड़कने की दर में वृद्धि, अनिद्रा, परेशानी, तनाव से जुड़ा हुआ है। इसके कारण सुनने में कठिनाई हो सकती है। 85 डीबी या उससे कम की आवाजों की सुरक्षित सीमा 8 घंटे का एक्सपोजर है। जोर का शोर होने से बात समझ में नहीं आती और परिणामस्वरूप परफॉर्मेस खराब हो जाती है और त्रुटियों की संभावना बढ़ जाती है। शोर होने पर, स्पष्ट रूप से अपनी बात कहने के लिए हाई पिच पर बोलना पड़ता है।”

जिन जगहों पर ट्रैफिक का शोर अधिक होता है वहां रहने वाले लोगों में शांत वातावरण में रहने वालों की तुलना में उदासीनता, अकेलेपन और डिप्रेशन का 25 प्रतिशत अधिक खतरा रहता है। इन लोगों को ध्यान केंद्रित करने में भी समस्या होती है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया, “अस्पतालों में भी काफी शोर होता है। रोगियों की भलाई और उपचार के लिए अस्पतालों में शोर के स्तर पर नियंत्रण बहुत अहम है। शोर डॉक्टरों के लिए एक अस्वास्थ्यकर वातावरण पेश करता है। यह एकाग्रता को प्रभावित करता है और गलतियों की संभावनाओं को बढ़ाता है, जो डॉक्टरों और अस्पतालों के लिए महंगा साबित हो सकता है। एक आईसीयू में सामान्य बैकग्राउंड में शोर होने पर न तो चेतावनी सुनी जा सकती है और न ही रोगी निगरानी अलार्म, जो कि संभावित रूप से विनाशकारी साबित हो सकता है। इसके अलावा, डॉक्टरों में भी हाई बीपी और स्वास्थ्य की अन्य समस्याएं हो सकती हैं।”

इन तरीकों से ध्वनि प्रदूषण कम किया जा सकता है –

– स्कूलों और अस्पतालों के आसपास यातायात प्रवाह जितना संभव हो कम से कम किया जाना चाहिए।

– साइलेंस जोन और नो हॉकिंग लिखे हुए साइनबोर्ड इन क्षेत्रों के नजदीक होने चाहिए।

– दोपहिया वाहनों में खराब साइलेंसर और शोर करने वाले ट्रक तथा हॉर्न के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।

– पार्टियों और डिस्को में लाउडस्पीकरों के उपयोग के साथ-साथ सार्वजनिक घोषणा प्रणालियों की जांच होनी चाहिए।

– शोर संबंधी नियमों को साइलेंस जोन के पास सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

– सड़कों के दोनों ओर और आवासीय क्षेत्रों के आसपास पेड़ लगाकर ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।  (इनपुट आईएएनएस)

 

नेशनल

जम्मू कश्मीर के बडगाम में गैर कश्मीरियों पर आतंकी हमला, दो मजदूरों को मारी गोली

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जम्मू। जम्मू कश्मीर के बडगाम जिले में आतंकियों ने गैर-कश्मीरी नागरिकों को निशाना बनाया है. घायल दो मजदूर उत्तर प्रदेश के रहने वाले बताए जा रहे हैं. पिछले 30 दिनों में घाटी में गैर-स्थानीय मजदूरों पर यह तीसरा हमला है.

घायल मजदूरों को आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मजदूरों को गोली मारी जाने की घटना के बाद पूरे बडगाम इलाके में हड़कंप मच गया. घटनास्थल पर बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं.

सूत्रों ने बताया, जम्मू और कश्मीर (जेके) के बडगाम जिले में शुक्रवार शाम आतंकवादियों की गोलीबारी में दो गैर-स्थानीय लोग घायल हो गए. दोनों घायलों को तुरंत इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल ले जाया गया. उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है. समय रहते इलाज कर डॉक्टरों ने घायल मजदूरों की जान बचाई. उनके प्रयासों की हर कोई सराहना कर रहा है. उन्होंने बताया कि यह घटना जिले के मगाम इलाके के पास माझामा गांव में हुई.

मिली सूचना के अनुसार, हमले के बाद सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी कर दी और हमलावरों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू कर दिया. हालांकि आतंकी अभी सुरक्षा बलों की गिरफ्त से बाहर हैं. सुरक्षा बल उनकी तलाश के लिए चप्पे-चप्पे में जुटे हुए हैं. बडगाम के हर इलाके में आतंकियों को लेकर अलर्ट जारी किया गया है.

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