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प्रादेशिक

प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग की अध्यक्षता में कोविड-19 से प्रभावित बच्चों के सुरक्षा एवं संरक्षण के सम्बन्ध में की गई बैठक

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लखनऊ। प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग वी० हेकाली झिमोमी की अध्यक्षता में कोविड-19 से प्रभावित बच्चों के सुरक्षा एवं संरक्षण के सम्बन्ध में प्रदेश के समस्त चाइल्ड लाइन पार्टनर्स के साथ ऑनलाइन बैठक की गई । इस बैठक में कोविड-19 से प्रभावित बच्चों के सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु चाइल्ड लाइन के डायरेक्टर एवं समन्वयकों तथा चाइल्ड लाइन इण्डिया फाउंडेशन के प्रतिनिधियों से सुझाव आमंत्रित किये गए।

प्रमुख सचिव ने निर्देश दिए कि समस्त जनपद के  जिलाधिकारियों के माध्यम से ऐसे बच्चों की सूचना एकत्रित की जाए जो कोविड-19 के कारण अनाथ हुए है या ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता में से किसी एक की मृत्यु हो गयी हो या ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता कोविड से संक्रमित है और घर पर उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है।  इन बच्चों को बाल कल्याण समिति के समक्ष 24  घंटे के अंदर ऑनलाइन/ऑफलाइन माध्यमों से प्रस्तुत किया जायेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के समस्त चाइल्ड लाइन पार्टनर्स 1098 एवं 181 हेल्पलाइन नंबर्स का अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार किया जाय।

प्रमुख सचिव ने कहा कि यदि किसी जनपद में नए बच्चों को आवासित करने के लिए कोई बाल गृह नहीं है तो उस जनपद में वन स्टॉप सेंटर में बालिकाओं के साथ-साथ 10 वर्ष से कम आयु के बालकों को भी सीमित समय के लिए कोविड जांच के उपरांत आवासित किया जा सकता है। साथ ही साथ जिलाधिकारी 10 वर्ष से उपर के आयु वर्ग के बालक के लिए जनपद में संचालित क्वारंटाइन सेण्टर में सुरक्षा, खानपान, देखभाल, चिकित्सा की समुचित व्यवस्था की जाये जो जिला प्रोबेशन अधिकारी के निगरानी में सुनिश्चित की जाय। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग से समन्वय बनाकर प्रत्येक बाल देखरेख संस्थाओं में एंटीजन किट की व्यवस्था की जाए जिससे नए मिलने वाले बच्चों को लेकर कोविड-19 टेस्ट के लिए भटकना न पड़े। समस्त जिलाधिकारियों से समन्वय बनाते हुए प्रत्येक जनपद में बच्चों के शेल्टर के लिए एक अलग क्वारंटाइन सेण्टर की व्यवस्था की जाये इसके लिए जनपद में बंद पड़े शेल्टर होम का प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक जनपद में वर्त्तमान में बंद पड़े सरकारी छात्रावासों को बच्चो एवं महिलाओं के लिए क्वारंटाइन सेण्टर के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

प्रमुख सचिव ने कहा कि बच्चों के सम्बन्ध में आपस में बेहतर समन्वय के लिए चाइल्ड लाइन, जिला प्रोबेशन अधिकारी, वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप के सदस्यों का निदेशालय स्तर पर एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाया जाए। वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप ब्लॉक बाल संरक्षण समिति एवं ग्राम बाल संरक्षण समिति के साथ बैठक कर कोविड-19 के दृष्टिगत बाल संरक्षण के विभिन्न मुद्दों पर उन्हें जागरूक करेगा। उन्होंने बताया कि वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप अलग-अलग मुद्दों पर विशेषज्ञों जैसे बच्चों के डॉक्टर, मानसिक स्वास्थ्य काउन्सलर इत्यादि को आमंत्रित कर विभिन्न हितधारकों जैसे – बाल कल्याण समिति, सीडीपीओ, डीपीओ-आईसीडीएस, पुलिस, डीसीपीयू, चाइल्ड लाइन, वन स्टॉप सेंटर, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ लगातार समन्वय बनाते हुए संवाद स्थापित करेगा और जागरूकता हेतु ऑनलाइन अभिमुखीकरण कार्यशाला का आयोजन करेगा।

प्रमुख सचिव ने कहा कि निदेशालय, महिला कल्याण विभाग, स्वास्थ्य विभाग से समन्वय बनाते हुए प्रत्येक जनपद में  डॉक्टरों की एक टीम/पैनल  गठित करेगा  जो बच्चों एवं महिलाओं को विभिन्न समस्याओं पर ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यमों से अपना सहयोग एवं सुझाव देगा। बाल गृहों में प्रवेशित बच्चो को मनोसामाजिक परामर्श सेवा को प्राथमिकता से दिया जाएगा जिसके लिए प्रत्येक जनपद में मनोसामाजिक परामर्शदाताओं की सूची तैयार कर उन्हें बाल गृहों से जोड़ा जायेगा। चाइल्ड लाइन फ्रंट लाइन वर्कर की श्रेणी में आता है तो इनका टीकाकरण प्राथमिकता से किया जाये। उन्होंने कहा कि निदेशालय महिला कल्याण के अंतर्गत आने वाले समस्त विभाग/ कार्यालय और बाल देखरेख संस्था, महिला शरणालय, वन स्टॉप सेंटर, महिला शक्ति केंद्र एवं चाइल्ड लाइन को आवश्यक सेवा की श्रेणी में रखे जाने के लिए शासन स्तर पर संस्तुति के लिए पत्र लिखा जायेगा एवं जनपद के जिला प्रोबेशन अधिकारी जिला प्रशासन से सहयोग करते हुये सुगम संचालन सुनिश्चित किया जायेगा।

इस बैठक में निदेशक महिला कल्याण मनोज राय, उप निदेशक (मुख्यालय) महिला कल्याण विभाग बी०एस० निरंजन, यूनिसेफ के राज्य सलाहकार एवं मण्डल सलाहकार, चाइल्ड लाइन इण्डिया फाउंडेशन से अभिषेक पाठक तथा प्रदेश के समस्त चाइल्ड लाइन पार्टनर्स के डायरेक्टर एवं समन्वयक उपस्थित थे ।

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उत्तर प्रदेश

प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन

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 महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।

महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।

महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान

महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।

प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम

दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।

महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार

महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।

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