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उत्तर प्रदेश

महाकुंभ को फायर फ्री जोन बनाने का संकल्प

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प्रयागराज। हर बार की तरह इस बार भी महाकुंभ को सुरक्षित और फायर फ्री बनाने के लिए अग्निशमन विभाग उत्तर प्रदेश ने कमर कस ली है। विभाग ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया है। अग्निशमन विभाग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एनिमेटेड वीडियो और सेफ्टी टिप्स के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहा है। इन वीडियोज में महाकुंभ में आग से बचाव के उपायों को सरल भाषा में समझाया गया है।

“बचाव ही हमारा कर्तव्य” थीम पर जागरूकताआए अभियान

प्रयागराज के मुख्य अग्निशमन अधिकारी और महाकुंभ के नोडल अधिकारी प्रमोद शर्मा ने बताया कि अग्निशमन विभाग “बचाव ही हमारा कर्तव्य है” थीम के तहत कार्य कर रहा है। हर वीडियो में “आपकी समझदारी है सुरक्षा आपकी और हमारी” टैगलाइन को प्रमोट किया जा रहा है। अग्निशमन विभाग का लक्ष्य है कि इस महाकुंभ में कोई भी आगजनी की घटना न हो और श्रद्धालु सुरक्षित माहौल में धार्मिक अनुष्ठान कर सकें। विभाग ने अपील की है कि आग लगने की स्थिति में तुरंत 100 या 1920 नंबर पर सूचना दें।

आग से बचाव के लिए क्या करें और क्या न करें

1. टेंट और पंडाल में अलाव और चूल्हा वर्जित:

एक वीडियो में दिखाया गया है कि कुछ लोग टेंट के पास अलाव जलाकर छोड़ देते हैं, जिससे आग फैल जाती है। फायर अधिकारी ने आगाह किया है कि पंडालों में अलाव, चूल्हा और हवन कुंड का उपयोग न करें।

2. विद्युत उपकरणों का सही उपयोग:

छोटा भीम जैसे कार्टून कैरेक्टर्स के माध्यम से लोगों को बताया जा रहा है कि कटे-फटे तारों और ओवरलोड विद्युत उपकरणों का उपयोग न करें। साथ ही, फायर ब्रिगेड को रास्ता देने का महत्व भी समझाया गया है।

3. ज्वलनशील पदार्थों का परहेज:

एक अन्य वीडियो में पुजारी जी द्वारा हवन के दौरान घी गिरने से आग लगने की घटना दिखाई गई है। अधिकारियों ने श्रद्धालुओं को ज्वलनशील पदार्थों जैसे पेट्रोल, डीजल, और मोमबत्तियों का उपयोग न करने की सलाह दी है।

रेस्क्यू ऑपरेशन की मॉक ड्रिल

अग्निशमन विभाग द्वारा महाकुंभ में रेस्क्यू ऑपरेशन की मॉक ड्रिल भी की जा रही है ताकि किसी भी आपात स्थिति में त्वरित कार्रवाई हो सके।

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उत्तर प्रदेश

प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन

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 महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।

महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।

महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान

महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।

प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम

दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।

महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार

महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।

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