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अन्तर्राष्ट्रीय

सिंगापुर के अंतरिक्ष कार्यक्रम में नवाचार का बोलबाला

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Communication satellite in orbit above earth

सिंगापुर| एक ‘ग्रीन’ सेटेलाइट अब अपना जीवनकाल पूरा होने पर अंतरिक्ष में कूड़े की तरह विचरने की बजाय अंतरिक्ष से वापस धरती की कक्षा में आ जाएगा। वहीं, सेटेलाइट के अंदर लगा प्रोपल्सन इंजन एक नैनो सेटेलाइट को चांद तक प्रक्षेपित कर सकता है। यह कुछ ऐसी अभिनव प्रोद्यौगिकियों में से एक है जिसका आविष्कार और परीक्षण सिंगापुर की सेटेलाइट निर्माता नानयंग टेक्नोलॉजिक विश्वविद्यालय (एनटीयू) कर रहा है। इस विश्वविद्यालय में ही सिंगापुर के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई है। अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सिंगापुर का प्रवेश महज एक दशक पहले हुआ है। सिंगापुर ने अपना पहला स्वदेशी वैज्ञानिक उपग्रह एक्स-सेट का प्रक्षेपण भारतीय रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 2011 में किया था। लेकिन अब सिंगापुर सेटेलाइट प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी आगे निकल चुका है।

सिंगापुर के वैज्ञानिकों ने अपने अभिनव विचारों और छोटे सेटेलाइटों के उच्च प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित कर अपनी क्षमता का लोहा मनवा लिया है। एनटीयू के सेटेलाइट रिसर्च सेंटर के निदेशक लो के सून ने  बताया, “छोटा सा देश होने के कारण हमारी प्राथमिकताएं रॉकेट तैयार करना या लांचिग सुविधाएं विकसित करना नहीं है। हमारा लक्ष्य मुख्य रूप से सिंगापुर को अभिनव विचार और अनूठे अवधारणाओं से लैस प्रभावी सेटेलाइट तकनीक का विकास करने वाले देश के रूप में पहचान दिलाने की है।”

विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने वाले लो कोई डींग नहीं हांक रहे हैं। बल्कि इस विश्वविद्यालय ने यह साबित कर दिखाया है।एनटीयू का सातवां सेटेलाइट वेलोक्स-3 जिसका वजन महज दो किलो हैं। वह माइक्रो प्लाज्मा सिस्टम प्रोपल्सन सिस्टम से लैस है जिसे एनटीयू और शिक्षकों और छात्रों ने मिलकर चार सालों में विकसित किया है। उसे इस साल जापान की एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी द्वारा लांच किया जाएगा।

लो इसके बारे में बताते हैं कि इसमें लगे छोटे प्रोपल्सन से जो बल मिलता है उससे यह दुगुनी रफ्तार से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित हो सकता है। इस प्रक्षेपन का इस्तेमाल उसे वापस धरती की कक्षा में धकेलने के लिए किया जा सकता है। इससे वह धरती के वातावरण में आने से पहले ही दबाव व घर्षण से बिना किसी तरह की हानि पहुंचाए पूरी तरह नष्ट हो जाएगा। या फिर इस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से उसे चांद जैसे किसी दूसरे ग्रह की कक्षा से धकेलकर उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में भेजा जा सकता है।

इसके अलावा एनटीयू के दो अन्य सेटेलाइटों- वेलोक्स 2 और वेलोक्स सीआई जिन्हें भारतीय पीएसएलवी ने हाल में ही लांच किया था, कई उन्नत व अभिनव तकनीकों से लैस हैं। लो बताते हैं कि वेलोक्स 2 कम्यूनिकेशन ऑन डिमांड की तकनीक से लैस है। इसकी मदद से अंतरिक्ष के किसी भी हिस्से से आंकड़ों और तस्वीरों को पृथ्वी पर मंगाया जा सकेगा।

सिंगापुर के स्पेस उद्योग के विकास के लिए जिम्मेदार संस्था ऑफिस फॉर स्पेस टेक्नॉलजी एंड इंडस्ट्री (ओएसटीइन) के कार्यकारी निदेशक बेह कियान टेक ने आईएएनएस को बताया, “16 दिसंबर 2015 को भारत ने सिंगापुर के 8 सेटेलाइटों को लांच किया। यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण और रोमांचक मील का पत्थर है। इससे हमारी सेटेलाइट इंजीनियरिंग की स्वदेशी क्षमता की पुष्टि होती है।”

उन्होंने बताया कि सिंगापुर का फोकस अपनी शोध क्षमता को छोटे सेटेलाइटों के क्षेत्र में बढ़ाने की है, क्योंकि वे इसमें जबरदस्त विकास की संभावनाएं देखते हैं। जिस प्रकार से कम्प्यूटर का आकार कुछ ही वर्षो में घटकर हथेली में समा गया है। बेह कुछ ऐसा ही सेटेलाइट के क्षेत्र में उम्मीद कर रहे हैं। वे कहते हैं कि आने वाले दिनों में सेटेलाइट छोटे और सस्ते होते जाएंगे और जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन वे सेटेलाइट इंडस्ट्री के अगुवा होंगे।

अन्तर्राष्ट्रीय

पीएम मोदी को मिलेगा ‘विश्व शांति पुरस्कार’

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार उन्हें अमेरिका में प्रदान किया जाएगा। इंडियन अमेरिकन माइनॉरटीज एसोसिएशन (एआइएएम) ने मैरीलैंड के स्लिगो सेवंथ डे एडवेंटिस्ट चर्च ने यह ऐलान किया है। यह एक गैर सरकारी संगठन है। यह कदम उठाने का मकसद अमेरिका में भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें एकजुट करना है। पीएम मोदी को यह पुरस्कार विश्व शांति के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों और समाज को एकजुट करने के लिए दिया जाएगा।

इसी कार्यक्रम के दौरान अल्पसंख्यकों का उत्थान करने के लिए वाशिंगटन में पीएम मोदी को मार्टिन लूथर किंग जूनियर ग्लोबल पीस अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार को वाशिंगटन एडवेंटिस्ट यूनिवर्सिटी और एआइएएम द्वारा संयुक्त रूप से दिया जाएगा। जिसका मकसद अस्पसंख्यकों के कल्याण के साथ उनका समावेशी विकास करना भी है।

जाने माने परोपकारी जसदीप सिंह एआइएम के संस्थापक और चेयरमैन नियुक्त किए गए हैं। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय को प्रोत्साहित करने के लिए 7 सदस्यीय बोर्ड डायरेक्टर भी हैं। इसमें बलजिंदर सिंह, डॉ. सुखपाल धनोआ (सिख), पवन बेजवाडा और एलिशा पुलिवार्ती (ईसाई), दीपक ठक्कर (हिंदू), जुनेद काजी (मुस्लिम) और भारतीय जुलाहे निस्सिम रिव्बेन शाल है।

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