उत्तर प्रदेश
प्रयागराज महाकुम्भ में बिखरी सनातन की छटा, महाकुम्भ क्षेत्र तीन संन्यासी अखाड़ों की धर्म ध्वजा हुई स्थापित
प्रयागराज। प्रयागराज में आयोजित होने जा रहे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम महाकुम्भ 2025 में आस्था और सनातन धर्म के विविध रंग निखरने लगे हैं। सनातन धर्म के शिखर संन्यासियों के तीन अखाड़ों ने एक ही दिन में महा कुम्भ क्षेत्र में अपनी अपनी अखाड़े की धर्म ध्वजा स्थापित की। अखाड़ा क्षेत्र में अखाड़ों के संतो की मौजूदगी से दिव्य और भव्य कुम्भ की अनुभूति जीवंत हो गई।
तीन संन्यासी अखाड़ों की धर्म ध्वजा स्थापित
प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर आस्था की अलौकिक दुनिया आकार लेने लगी है। सीएम योगी के निर्देश पर महाकुंभ की तैयारियों में आई तेजी से महाकुंभ का आकर्षण अखाड़ा क्षेत्र सबसे पहले गुलज़ार होने लगा है। शनिवार को अखाड़ा क्षेत्र में तीन संन्यासी अखाड़ों ने प्रशासन द्वारा आवंटित भूमि में अपनी धर्म ध्वजा स्थापित कर दी । श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा और उसके भ्राता अखाड़े कहे जाने वाले श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े और अग्नि अखाड़े के संन्यासियों ने पूरे विधि विधान के साथ अपने अपने अखाड़ों के इष्ट का आवाहन कर अपनी धर्म ध्वजा महाकुम्भ क्षेत्र में फहरा दी। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरी का कहना है तीनों संन्यासी अखाड़ों की परंपरा में समान हैं बस इष्ट देवता भिन्न हैं इसलिए तीनों अखाड़ों की धर्म ध्वजा एक ही तिथि को स्थापित हुई है।
मातृ शक्ति को भी मिला स्थान, संन्यासिनी अखाड़ा ने भी धर्म ध्वजा की स्थापित
अखाड़ों के इस विशिष्ट आयोजन में मातृ शक्ति को भी पूरा स्थान और सम्मान दिया गया। अखाड़ा क्षेत्र में महिला संतों की श्री पंच दशनाम जूना संयासिनी अखाड़ा की धर्म ध्वजा भी स्थापित हुई। अखाड़े की महामंडलेश्वर दिव्या गिरी जी का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी जी के समय से मातृ शक्ति को विशिष्ट सम्मान मिल रहा है। एक दौर था जब महिला संयासिनी संतों के लिए अखाड़ा क्षेत्र में माईवाड़ा बनता था लेकिन अब हमारे लिए जूना अखाड़ा के अंदर ही श्री पंच दशनाम जूना संयासिनी अखाड़ा का शिविर लग रहा है। इस अखाड़े ने सिर्फ मातृ शक्ति को स्थान मिलेगा ।
किन्नर अखाड़े ने भी स्थापित की धर्मध्वजा
महाकुम्भ क्षेत्र में तीन संन्यासी अखाड़ों के अलावा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अनुगामी किन्नर की धर्म ध्वजा भी शनिवार को स्थापित हुई । किन्नर अखाड़े की महा मंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी और उनके अखाड़े की सैकड़ों सदस्यों की मौजूदगी में किन्नर अखाड़े ने धर्म ध्वजा स्थापित की। अखाड़ा क्षेत्र में संतो के अलख संप्रदाय के साधुओं की धर्म ध्वजा भी स्थापित हुई।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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