उत्तर प्रदेश
टीकाकरण के शत प्रतिशत लक्ष्य का सारथी बना यूविन पोर्टल
लखनऊ| मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में नवजात एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसके तहत विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। ऐसे में सीएम योगी के निर्देश पर प्रदेश में लगातार नियमित टीकाकरण का अभियान चलाया जा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में पिछले सात वर्षों में नवजात एवं शिशु मृत्यु दर में काफी कमी दर्ज की गयी है। मालूम हो कि देश और प्रदेश में पोलियाे और नवजात टिटनेस की विदाई की मिसाल नियमित टीकाकरण है। योगी सरकार द्वारा सौ फीसद नियमित टीकाकरण के लक्ष्य को पाने के लिए समय-समय पर नवाचार किए जा रहे हैं। इसी क्रम में केंद्र सरकार द्वारा 13 मार्च 2024 को लांच यूविन पोर्टल प्रदेश के टीकाकरण लक्ष्य को हासिल करने में बेहतरीन हथियार बन गया है।
देश में कहीं भी लगवा सकते हैं टीका
राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डाॅ. अजय गुप्ता ने बताया कि कोविन पोर्टल की तर्ज पर शुरू किए गए यूविन पोर्टल पर 13 मार्च से अब तक कुल 16,89,373 गर्भवतियों का पंजीकरण हुआ है। इसके सापेक्ष 14,64,961 गर्भवतियों का टीकाकरण किया जा चुका है। एक साल से कम आयु के 33,02,825 बच्चे पोर्टल पर पंजीकृत हैं, जिनके सापेक्ष 32,45,610 बच्चों का टीकाकरण किया जा चुका है। एक से पांच साल के पंजीकृत 16,48,215 बच्चों के सापेक्ष 14,61,406 बच्चों को टीका लग चुका है। अब तक कुल 7,93,310 सत्रों की प्लानिंग की गई है, जिसके सापेक्ष 7,69,856 सत्र आयोजित किए जा चुके हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक डाॅ. मनोज शुकुल ने बताया कि यूविन पर पंजीकरण होने के बाद डिजिटलीकरण होने से गर्भवती और बच्चे का देश में कहीं भी टीकाकरण हो सकता है। पहले जहां ई-विन पोर्टल कोल्ड चेन से संबंधित जानकारी रखता था, वहीं अब इस पोर्टल के माध्यम से महिलाओं और बच्चों के टीकाकरण संबंधी सारी जानकारी मिल जाती है। शून्य से पांच साल तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को लगाए गए टीकों की ऑनलाइन ट्रैकिंग की जा रही है। इससे तैयार ड्यू लिस्ट के अनुसार टीकाकरण करना और भी आसान हो गया है। यूविन पर प्रसव पश्चात जन्मे शिशु का विवरण दर्ज करने से बच्चों की ट्रैकिंग करना आसान हो गया है।
चार माह की नित्यामी की मां सोनम राठोर बताती हैं कि इस एप के माध्यम से एक फायदा तो यह है कि बच्ची के टीके का पूरा डिजिटल रिकॉर्ड मेरे पास है और अगला टीका लगवाने की तारीख की जानकारी मैसेज के माध्यम से मिल जाती है मुझे। यही नहीं एप के माध्यम से देश में कहीं भी मैसेज दिखाकर टीका लग सकता है। जब मेरी बच्ची को दूसरी बार टीका लगना था तो मैं देहरादून में थी और वहीं मैंने उसका टीकाकरण कराया। – सोनम राठौर, चार माह की नित्यामी की मां (लाभार्थी)
यह हैं पोर्टल के लाभ
– इस पोर्टल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि गर्भवती महिलाएं स्वयं पोर्टल पर अपना पंजीकरण कर सकती हैं
– पोर्टल में मौजूद विकल्प का उपयोग कर बच्चे के अभिभावक पंजीकरण कर टीकाकरण के लिए सत्र खोजकर टीकाकरण करा सकते हैं
– नवजात और बच्चों को माता पिता के आधार नम्बर के आधार पर आभा आईडी मिल जाती है जिससे भविष्य में उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्त सूचनाएं एक ही क्लिक पर उपलब्ध हो सकेंगी
– प्रत्येक सत्र पर सभी आवश्यक टीके उपलब्ध होंगे
– सभी लाभार्थियों का डिजिटल टीकाकरण कार्ड प्राप्त होगा जिसे लाभार्थी मोबाइल एप्लीकेशन पर डाउनलोड और सहेज सकता है
– लाभार्थियों को एक टीका लगने के बाद अगले टीके की तारीख और जानकारी एसएमएस के माध्यम से मिल जाती है
– सिर्फ़ प्रथम बार टीकाकरण के समय पंजीकरण के लिए मोबाइल नंबर व आईडी ले जानी जरूरी है
इतनी बार होता है टीकाकरण
– पांच साल में सात बार टीकाकरण किया जाता है
– बच्चों को लगाये जाते हैं 12 बीमारियों से बचाव के टीके
– टीबी, हिपेटाइटिस बी, पोलियो, खसरा, रूबेला, काली खांसी, गलघोंटू, टिटेनस, रोटा virus से होने वाला डायरिया, इन्फ्लूएंजा, निमोनिया, जापानी इन्सिफेलाइटिस
– गर्भवती को भी लगते हैं दो टीके
– व्यस्क डिप्थीरिया और टिटेनस के दो टीके गर्भवती को लगाये जाते हैं। एक टीका गर्भावस्था का पता लगते ही और दूसरा उसके अगले माह
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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