करियर
आसानी से समझ में आने वाला विषय है विज्ञान
5वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव का तीसरा दिन
लखनऊ। अगर आपको लगता है कि विज्ञान बोरियत भरा विषय है तो अपनी इस धारणा को बदलने की कोशिश कीजिए। वास्तव में विज्ञान को अगर सरल और प्रभावशाली ढंग से समझाया जाए तो यह आसानी से समझ में आने वाला विषय है। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कार्यरत विज्ञान प्रसार और संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में अलीगंज स्थित आंचलिक विज्ञान नगरी में 5वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव में इस तथ्य को फिल्मों के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है।
यहां प्रदर्शित होने वाली फिल्मों की भाषा शैली इतनी सरल व प्रभावशाली है कि किसी को सुगमता से समझ में आ सकती है। अब विज्ञान को प्रभावशाली व सशक्त ढंग से आमजन तक पहुंचने के लिए कार्टून का सहारा भी लिया जाने लगा है। विज्ञान फिल्मोत्सव में कई ऐनीमेटेड फिल्मों का प्रदर्शन तो किया ही जा रहा है, इस समारोह का तीसरा दिन खास रूप से विज्ञान के रोचक माध्यम से संप्रेषण का रहा। कार्टून पात्र अब तक हमारा मनोरंजन तो करते ही रहे, अब इनका प्रयोग विज्ञान के प्रसार-प्रचार के लिए भी किया जाना है।
सीएसआईआर-सीडीआरआई के पूर्व उपनिदेशक डा. पीके श्रीवास्तव ने पर्यावरण के संरक्षण और विज्ञान को लोकोपयोगी बनाने के लिए साइनटून को आधार बनाया है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उनको यूएसए के जूनियर चैम्बर इंटरनेशनल द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। वैज्ञानिकों एवं विज्ञान संचारकों के साथ संवाद कार्यक्रम में उन्होंने दृश्य संचार में साइंनटून के प्रभाव को निरूपित किया।
उन्होंने बताया कि विज्ञान को अगर आमजन के माध्यम में पहुंचाया जाए तो उसका प्रभाव अधिक असरकारी होता है। इसी प्रकार से विज्ञान फिल्म निर्माण कार्यशाला में भी कार्टून के माध्यम से विज्ञान को आमजन तक पहुंचाने पर फोकस किया गया। मुंबई से आए न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन लिमिटेड के मीडिया मैनेजर अमृतेश श्रीवास्तव ने विज्ञान फिल्म निर्माण में कार्टूनों के प्रयोग की जानकारी दी।
उल्लेखनीय है कि परमाणु ऊर्जा केंद्र के निर्माण से जुड़ी भ्रांति को दूर करने के लिए ऐनीमेटेड फिल्म तथा कामिक्स एक था ‘बुधिया का निर्माण तथा प्रकाशन’ अमृतेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में किया गया था। इस फिल्म तथा कामिक्स का प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
श्री श्रीवास्तव ने समारोह में कहा कि विज्ञान को आम लोगों यहाँ तक बच्चों तक पहुँचाने के लिए कार्टून पात्र उचित माध्यम हैं। वहीं, कार्टून फिल्म का निर्माण करना काफी सरल और सुगम है। कम्प्यूटर से पावर प्वाइंट पर इसे तैयार किया जा सकता है। खुद उन्होंने कार्टून फिल्म निर्माण की तकनीकी जानकारी दी। इसके साथ ही कार्यशाला में नेशनल स्कूल आफ ओपन स्कूलिंग, नोएडा की आशिमा सिंह ने भाग लिया।
वहीं, संवाद कार्यक्रम में बाबा साहेब भीमराव विवि के पर्यावरणीय विज्ञान विभाग के डा. वेंकटेंश दत्ता ने एक नदी की यात्रा के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नदियां प्राकृतिक घटना है, मानवीय कलाकृतियां नहीं, इस कारण से उनका संरक्षण हमारा दायित्व बनता है। नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है।
फिल्मोत्सव के मुख्य संयोजक निमिष कपूर व स्थानीय समन्वयक उमेश कुमार ने बताया कि फिल्मोत्सव के तीसरे दिन 20 के करीब फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। पंकज महाजन निर्देशित फिल्म ‘आओ चले सुनहरे कल की ओर’ में किसानों को संदेश दिया गया है कि वे आने वाले भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कम से कम रसायनिक खाद्य का प्रयोग करें। श्रीनिवास ओली की फिल्म ‘घारत- द रिवाइवल आफ वाटरमिल्स’ में ग्रामीण क्षेत्र में बिजली निर्माण की कहानी को प्रदर्शित किया गया है।
राजेंद्र कोंडपल्ली निर्देशित फिल्म ‘हाउ कैन एडवांस कम्प्यूटिंग इम्प्रूव अवर लाइव्स’ में शीर्षक के अनुरूप यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि दैनिक जीवन में कम्प्यूटर का प्रयोग कर कैसे हम अपने जीवन स्तर को विकसित कर सकते हैं। वहीं मौतियर रहमान निर्देशित फिल्म ‘इंनोविजन’ देश के इंजीनियरिंग कालेज के छात्र तथा उन उत्साही युवाओं की कहानी है, जो हर पल कुछ नया करना चाहते हैं।
देश में कम बजट में पब्लिक परिवहन उपलब्ध कराना आज भी टेढी खीर है। ऐसे में विकल्प के रूप में सौर कार की संकल्पना को फिल्म में दिखाया गया है। सर्वनकुमार सालेम निर्देशित फिल्म ‘लिविंग विद एलीफेंटस’ में दर्शाने का प्रयास किया गया है कि वास्तव में हाथी हमारे साथी हैं।
वहीं, मौतियर रहमान निर्देशित फिल्म ‘टेकेबिलिटी’ में एक ऐसे युवक की कहानी है, जिसने अपनी शारीरिक विकलांगता से लोहा लेने का हौसला रखा और एक कार को कुछ ऐसे डिजाइन किया कि एक पैर में दुर्बलता होने के बाद भी उसे संचालित करने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े। वहीं, निधि तूली की फिल्म टीनोवेशन 1, 2 व 3 में आज के युवाओं द्वारा सृजित जनोपयोगी अनुसंधानों पर प्रकाश डाला गया है।
समारोह में असरार शम्सी निर्देशित फिल्म द लाइवस्टाक लीजेंड, भगीरथ चैधरी की द स्टोंरी आफ बीटी बैंजल इन इंडिया, जी एस उन्नी कृष्नन नैयर की ब्रीड आफ वेल्थ, राजेंद्र कोंडपल्ली की डीएनए ऐज डियेक्टिव, पी सी अन्टो की फ्लोइंग फारएवर, एंटोनी फेलिक्स की लार्ज मेश पर्स सेनिंग, स्नेहाशीश दास की पोस्ट चेंज, असरार अली की द शाइनिंग स्टार आफ द ईस्ट व कनिष्क सिंह व रिशु निगम निर्देशित फिल्म रिंग द चेंजस का प्रदर्शन मुख्य रूप से किया गया। नेशनल जियोग्राफिक चैनल की फिल्म साइंस आफ स्टूपिड का प्रदर्शन भी गैर प्रतियोगी वर्ग में सायं को समारोह में हुआ।
मनोरंजक भी हो सकती हैं विज्ञान फिल्में: चंद्रप्रकाश
5वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव में जूरी चेयरमैन की हैसियत से प्रतिभाग कर रहे देश के मशहूर निर्माता-निर्देशक डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि समारोह में शामिल होने के बाद पहली बार मालूम हुआ कि विज्ञान फिल्में मनोरंजक भी हो सकती हैं। फिल्मोत्सव में शामिल हुई फिल्में न सिर्फ मनोरंजक हैं, बल्कि उनसे तमाम तरह की जानकारी भी मिलती हैं। वे कहते हैं कि युवाओं को खास रूप से इन फिल्मों से लाभ उठाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अज्ञात हीरो की तरह होते हैं। उन पर भी फिल्म निर्माण करना चाहिए। अगर उनको मौका मिला तो खुद वह भी विज्ञान फिल्म का निर्माण करेंगे। फिलहाल वे बनारस और सरस्वती पर वृत्तचित्र निर्माण करने की योजना बना रहे हैं। चंद्रप्रकाश खुद को इतिहास का खोजी मानते हैं। हिंदी को संरक्षित रखने की तमाम कोशिशों पर वे बल देते हैं। उनको साफ कहना है कि इस धोखे में नहीं रहना चाहिए कि हिंदी का अंत नहीं हो सकता है। संस्कृत का उदाहरण हमारे सामने है।
आकर्षण का केंद्र रहे स्नेक श्याम
पेशे से आटो ड्राइवर, लेकिन शौक सांप पकड़ने का। इस शौक के चलते 28 हजार से अधिक सांपों को पकड़ कर वे जंगल में छोड़ चुके हैं। चार बार उनको सांप काट भी चुका है, फिर भी वे मानते हैं कि सांप इंसान से कम जहरीला होता है। बात हो रही है स्नेक श्याम की। वे अपने नाम और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण अलग ही पहचान लिए जाते हैं। उनकी फिल्म स्नेक का प्रदर्शन विज्ञान फिल्मोत्सव में किया गया है। मंसूर, कर्नाटक से वे इस समारोह में शामिल होने आए थे।
वर्ष 1980 में जब वे मात्र 30 वर्ष के थे, तभी से सांप पकड़ रहे हैं। वे स्कूल बच्चों को पहुंचाने का काम करते हैं और समय मिलने पर सांप पकड़ने के अपने शौक को पूरा करते हैं। देश में उनके तीन हजार से अधिक छात्र भी हैं, जिनको वे सांप पकड़ने की कला को सीखा चुके हैं।
फिल्मोत्सव में 7 फरवरी को:-
-विज्ञान फिल्मों का प्रदर्शन पूर्वाहन 10 से दोपहर 2 बजे तक
-विज्ञान फिल्म निर्माण पर कार्यशाला पूर्वाहन 11 से दोपहर 2 बजे तक
-वैज्ञानिकों एवं विज्ञान संचारकों के साथ संवाद दोपहर 2ः30 से 4 बजे तक
-गैर प्रतियोगी वर्ग में फिल्मों का प्रदर्शन सायं 4ः15 से 8ः30 बजे तक
उत्तर प्रदेश
यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का जल्द ही जारी होगा रिजल्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस रिक्रूटमेंट एंड प्रमोशन बोर्ड (UPPRPB) कभी भी यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती का रिजल्ट जारी कर सकता है। इन्हीं दो दिनों में यूपी पुलिस भर्ती के रिजल्ट जारी किए जा सकते हैं। एक बार रिजल्ट जारी होने के बाद, उम्मीदवार अपना रिजल्ट आधिकारिक वेबसाइट uppbpb.gov.in. पर जाकर देख सकते हैं। बीते दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रिजल्ट जारी करने के आदेश दिए थे।
क्या बोले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) के अनुसार, सीएम योगी आदित्यनाथ ने बोर्ड को अक्टूबर के अंत तक युपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती का रिजल्ट घोषित करने का निर्देश दिया है। ऐसे में यह रिजल्ट इन 2 दिनों के भीतर कभी भी जारी किए जा सकते हैं।
सीएमओ ने हाल ही में कहा कि सीएम ने खाली पदों को भरने की प्रक्रिया में तेजी लाने को कहा है ताकि परीक्षा की शुचिता से समझौता न हो। ऐसे में यूपीपीआरपीबी अपनी वेबसाइट पर आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से रिजल्ट की तारीख और समय की घोषणा कर सकता है। बोर्ड रिजल्ट के साथ, लिखित परीक्षा और फाइनल आंसर-की के लिए कैटेगरीवाइज कट-ऑफ नंबर भी घोषित करेगा।
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