आध्यात्म
उज्जैन : नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुले, श्रद्धालु उमड़े
उज्जैन, 28 जुलाई (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट देर रात 12 बजे (गुरुवार-शुक्रवार की दरम्यानी रात) पूरे विधि-विधान से खोल दिए गए। देशभर से पहुंचे हजारों श्रद्घालु रात से ही कतारों में लगे हैं, मंदिर के पट आज रात 12 बजे तक खुले रहेंगे। नागचंद्रेश्वर मंदिर सिर्फ नागपंचमी के मौके पर 24 घंटे के लिए साल में एक बार खुलता है। गुरुवार रात 12 बजे जयकारों के बीच महानिर्वाणी अखाड़े के महंत प्रकाश पुरी महाराज ने मंदिर के पट खोले और स्थापित प्रतिमाओं की पूजा अर्चना की। उसके बाद आम श्रद्धालुओं के दर्शनों का दौर शुरू हो गया।
धर्म के जानकार बताते हैं कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शैय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शैय्या पर विराजित हैं। शिव भगवान के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
महाकालेश्वर मंदिर परिसर में महाकाल मंदिर के तीसरे तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर के पूजन-अर्चना के लिए लाखों श्रद्घालु गुरुवार से ही उज्जैन पहुंचने लगे थे। रात 12 बजे पट खुलने के बाद से श्रद्घालुओं की लंबी कतारें लगी हुई हैं। कहा जाता है इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति सर्पदोष से मुक्त हो जाता है।
मान्यता है कि सर्पराज तक्षक ने शिवजी को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पो के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
व्रत एवं त्यौहार
CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं
मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।
छठ पूजा क्यों मनाते है ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.
छठ पर्व के 4 दिन
छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण
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