उत्तराखंड
उत्तराखंड : त्रिवेंद्र रावत, सतपाल महाराज सीएम की दौड़ में आगे
नई दिल्ली। उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह रावत और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सतपाल महाराज राज्य का मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं। उत्तराखंड में भाजपा को अभूतपूर्व सफतला मिली है।
रावत झारखंड में भाजपा के मामलों के प्रभारी हैं। संगठन पर इनकी पकड़ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वक्त नजदीकी रह चुके हैं जब मोदी भाजपा महासचिव (संगठन) व उत्तराखंड में पार्टी मामलों के प्रभारी हुआ करते थे।
उन्होंने डोइवाला से कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को 24000 से अधिक मतों से हराया है। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “रावत संगठन के आदमी हैं। स्वच्छ छवि है। आरएसएस, शाह और मोदी के करीबी हैं।”
सतपाल महाराज की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “महाराजजी बहुत लोकप्रिय हैं और उनके लाखों अनुयायी हैं। लेकिन, उनके खिलाफ बस यही एक बात जाती है कि वह कांग्रेस से भाजपा में आए हैं।”
महाराज मानव उत्थान सेवा समिति नाम की संस्था के प्रमुख हैं और लोगों को ध्यान लगाने का तरीका सिखाते हैं। उन्हें एक अच्छा प्रशासक माना जाता है। वह केंद्रीय रेल राज्य मंत्री रह चुके हैं। फरवरी 2014 में उन्होंने खुलकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने का विरोध किया था और एक महीने बाद कांग्रेस छोडक़र भाजपा की सदस्यता ले ली थी।
महाराज ने चौबट्टाखाल सीट पर कांग्रेस के राजपाल सिंह बिष्ट को 5000 से अधिक वोटों से हराया है। इन दोनों नेताओं के अलावा उत्तराखंड की भाजपा इकाई के अध्यक्ष अजय भट्ट भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। हालांकि वह रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए हैं। सूत्रों का कहना है कि अगर भट्ट जीतते तो वह मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार होते।
बी.सी.खंडूरी, भगत सिंह कोश्यारी, विजय बहुगुणा, रमेश पोखरियाल निशंक जैसे वरिष्ठ नेता भी मुख्यमंत्री पद पाने की कोशिश में हैं लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि इनमें से किसी के नाम पर विचार होने के आसार नहीं हैं।
भाजपा ने जिन राज्यों में जीत हासिल की है, उनके मुख्यमंत्री के चयन के लिए रविवार को संसदीय दल की बैठक बुलाई है।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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