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प्रादेशिक

उप्र में तैयार हो रहे दुर्लभ प्रजाति के पौधे

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वन महोत्सव के दौरान अवध प्रभाग की कुकरैल नर्सरी में दुर्लभ प्रजाति के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इस नर्सरी में अफोह के पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं, जो राजस्थान के रेगिस्तान यानी विपरीत परिस्थितियों में भी जिंदा रहते हैं। कुकरैल नर्सरी के खजाने में धार्मिक व आयुर्वेदिक महत्व वाले और सौ साल से भी अधिक आयु वाले वरना, दहिया, महोगिनी, सिहोर, जंगली बादाम, गुलाबी तून जैसे पौधे भी तैयार किए गए हैं।

दुर्लभ पौधों के लिए चर्चित हो चुकी इस नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की मांग यूपी के साथ ही अन्य प्रदेशों में भी हो रही है। सदियों से हमारे बाग-बगीचों और जंगलों की शोभा बढ़ाने वाले देशज पेड़ों की दर्जनों प्रजातियां खतरे में हैं। यही वे पेड़ हैं, जिनकी उत्पत्ति अपने देश में ही हुई है।

इनमें से कुछ ऐसे पेड़ भी हैं जिनसे हमारा जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी न किसी रूप में अभिन्न जुड़ाव रहता है। जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी तथा विकास कार्यों का सबसे बुरा असर देशज पेड़ों को ही भुगतना पड़ा है। इनसे प्रत्यक्ष तौर पर अधिक लाभ न होने के कारण इनका अस्तित्व खतरे में हैं। देशज पेड़ों से अरुचि के कारण कई पेड़ अपना अस्तित्व खो चुके हैं और अनेक प्रजातियां समाप्त होने के कगार पर हैं।

पृथ्वी पर पेड़ पौधों की लगभग दो लाख प्रजातियों की पहचान हो चुकी है। प्रदेश में ऐसी कई पेड़ों की प्रजातियां हैं जो सदियों से मनुष्यों के लिए चिरपरिचित रही हैं लेकिन लोभ और उपभोगवादी दृष्टिकोण के कारण कई पेड़ों की प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

अवध वन प्रभाग के डीएफओ एस.सी. यादव ने कहा कि अफोह और देशज वृक्ष हमारे देश की धरोहर हैं। इनका ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय महत्व है। इन वृक्षों की ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, वरना सदियों से मनुष्य के साथी और जीवनदायक व आश्रयदायक ये पेड़ मात्र किताबों के पन्नों में सिमट जाएंगे।

उन्होंने कहा कि विलुप्त हो रहे पौधों के बीजों को उन्होंने देश के कई स्थानों से एकत्रित करके उनकी नर्सरी तैयार कराई है। इनमें कल्पवृक्ष, कैथ, सिहोर, ढाक, बीजासाल, सादन, पानन, तमाल, वरना, माहेगिरी, जंगली बादाम, आल, हल्दू, खिरनी, पीलू, हरड़, ढेरा, करधई, अफोह मुख्य हैं।

यादव ने कहा कि इन वृक्षों की कमी के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। जिस तरह बाघ, चीता, गैंडा, कृष्णमृग जैसे जंतुओं को बचाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, उसी तरह संकटग्रस्त अफोह और अन्य देशज प्रजातियों के वृक्षों को भी बचाए जाने की जरूरत है।

 

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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