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एकजुट जनता परिवार से बिहार में बदलेगा सियासी समीकरण

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पटना| विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में विभक्त हुए ‘जनता दल परिवार’ एकजुट होकर मुल्क की सियासत में किस कदर बदलाव लाएगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है, पर गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा राजनीति के पक्षधर रहे इस कुनबे के सदस्यों की घर वापसी से इतना तय है कि बिहार में इस वर्ष होने वाला विधानसभा चुनाव रोचक होगा और कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। साथ ही साथ सियासी गणित भी बदलना तय है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अलग-अलग दलों में बदल चुके जनता दल परिवार के एक होने से मुलायम-लालू-नीतीश के रूप में मुस्लिम वर्ग का ‘फर्स्ट-लव’ संयुक्त जनता परिवार ही होगा। जनता परिवार की एकजुटता की खबरों के बाद से ही मुस्लिम समाज नए समीकरणों के साथ राजनीतिक फायदे-नुकसान को देख रहा है।

कभी कांग्रेस का वोट बैंक रहा मुस्लिम समाज बिहार में लालू प्रसाद के साथ जाकर कांग्रेस को पीछे कर चुका है। इन सभी नेताओं की एकजुटता से मुस्लिम समाज के अगुवाकार भाजपा विरोध की अपनी लड़ाई जीतने की उम्मीद लगा बैठे हैं। राजनीति के जानकार सुरेन्द्र किशोर ने आईएएनएस से कहा, “जनता दल परिवार के एका से बिहार में मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण होगा इसमें कोई शक नहीं है, जबकि अधिकांश यादव मतदाताओं की पहली पसंद लालू प्रसाद ही होंगे। वैसे आगमी विधानसभा चुनाव दिलचस्प होगा, और कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।” किशोर हालांकि यह भी मानते हैं कि लालू जहां अपराध और भ्रष्टाचार का सिंबल बन चुके हैं वहीं नीतीश सुशासन की बात करते रहे हैं और सुशासन लाने की कोशिश भी करते दिखे हैं। ऐसे में ये विरोधी व्यक्तित्व की एकजुटता मतदाताओं को किधर आकर्षित करेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है।

वैसे, बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और लालू यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी से जनता परिवार को और मजबूती मिल सकती है। आंकड़ों पर गौर करें तो हाल के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 40 में 31 सीटें मिली थी जबकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) -कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) गठबंधन को सात सीटें और जनता दल (युनाइटेड) को दो सीटें मिली थी। लोकसभा चुनाव में नीतीश ने किसी बड़े दल से तालमेल नहीं किया था। लालू और नीतीश की करारी हार के बाद दोनों दुश्मनों की नींद टूटी और एक सपना देखा कि क्यों नहीं दोनों दुश्मन दोस्त बनकर बड़े दुश्मन को परास्त करें।  वही हुआ भी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन विधानसभा के उपचुनाव में हार गया। 10 में छह सीटों पर नीतीश और लालू की पार्टी की जीत हुई और चार सीटों पर भाजपा गठबंधन की जीत हुई।

लोकसभा चुनाव में भाजपा-लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा)-राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को 38 फीसदी वोट मिले थे, राजद-कांग्रेस-राकंपा को 29 फीसदी वोट जबकि जद (यू) को 15 फीसदी वोट मिले थे। अब नए समीकरण में राजद-जद (यू)-कांग्रेस-राकांपा के वोट फीसदी को जोड़ दें तो ये आंकड़ा 45 फीसदी हो जाता है यानी राजग से ये 67 फीसदी ज्यादा है। ये अंकगणित है जिसमें जनता दल परिवार आगे है, लेकिन सतह पर कैमिस्ट्री क्या होगी यह भविष्य बताएगा।  भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष मंगल पांडेय ने इस विलय के बाद कड़ी टक्कर की बात को सिरे से नकारते हुए कहा कि बिहार की जनता लालू और नीतीश को जानती भी और पहचानती भी है, इसलिए इस विलय से राजग को कोई परेशानी नहीं है। भाजपा इनसे लड़ने को तैयार है।

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पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।

स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,

एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ

कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी

डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।

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