आध्यात्म
कार्तिक पूर्णिमा : हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़े
हरिद्वार, 4 नवंबर (आईएएनएस)| कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर शनिवार सुबह से ही लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए हरिद्वार में उमड़ पड़े हैं और तड़के से ही पूर्णिमा स्नान का क्रम शुरू हो गया। एक अधिकारी ने बताया कि उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश दिल्ली और राजस्थान से श्रद्धालु मीलों दूर की यात्रा कर कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के पुण्य का लाभ उठाने हरिद्वार पहुंचे।
कड़ी सुरक्षा के बीच हर की पौड़ी ब्रह्म कुंड की ओर जाने वाली सभी सड़कें लोगों से खचाखच भरी नजर आईं।
श्रद्धालुओं ने सूर्य देव को जल अर्पित किया और जरूरतमंदों को दान दिया। यह खास दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए लोगों ने भगवान विष्णु की विशेष तौर पर पूजा अर्चना की।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कृष्णा कुमार वी.के. ने कहा कि शहर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के जुटने के मद्देनजर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि ‘जल पुलिस’ सभी बैंकों, घाटों और नदियों पर गश्त कर रही है।
आध्यात्म
जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग
लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।
दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।
तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
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