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कोयला कर्मियों की हड़ताल को बिजली कर्मचारियों एवं अभियंताओं का समर्थन

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नई दिल्ली/लखनऊ। निजीकरण के विरोध में शुरू हुई पांच दिनों की कोयला कर्मियों की हड़ताल को देश के 12 लाख बिजली कर्मचारियों एवं अभियंताओं ने समर्थन दिया है। वर्ष 1977 के बाद देश के इतिहास की यह सबसे बड़ी हड़ताल मानी जा रही है। कोल इंडिया के 3.5 लाख कर्मचारियों की हड़ताल के दूसरे दिन बिजलीघरों में कोयले की आपूर्ति प्रभावित हुई है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के अध्यक्ष शैलेंद्र दूबे ने बुधवार को बताया कि कोल इंडिया की हड़ताल का प्रभाव दिखने लगा है। दुबे ने बताया कि 20 बिजलीघर ऐसे हैं, जहां दो दिन से भी कम का कोयला बचा है। हड़ताल चूंकि निजीकरण के विरोध में हो रही है, इसलिए देश के 12 लाख बिजली कर्मचारियों एवं अभियंताओं ने कोयला हड़ताल को समर्थन दिया है।

देश के 20 बिजलीघर ऐसे हैं, जहां दो दिन से भी कम का कोयला बचा है। अगले दो दिनों में कोयले का स्टॉक खत्म होते ही बिजलीघरों का उत्पादन ठप्प होने का अंदेशा है। देश के 86 बड़े बिजलीघरों में 82 बिजलीघरों को कोल इंडिया से कोयला मिलता है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, 42 बिजलीघरों में पांच दिन से भी कम का कोयला शेष बचा है। बिजलीघरों की कुल उत्पादन क्षमता 46,610 मेगावाट है, जिस पर संकट मंडरा रहा है। हड़ताल के बाद ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण के विरोध में व्यापक एका बनाया जाएगा और बिजली तथा कोयला सेक्टर की यूनियनों का साझा मोर्चा बनाकर संघर्ष की संयुक्त रणनीति तय की जाएगी।

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के सरकारी बिजलीघरों के लिए प्रतिदिन लगभग 65,000 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है। हड़ताल के कारण कोयले की आपूर्ति पूरी तरह ठप्प हो गई है और फिलहाल स्टॉक में बचे कोयले का इस्तेमाल कर बिजलीघर चलाए जा रहे हैं। एआईपीईएफ के अध्यक्ष ने बताया कि 1140 मेगावाट के पारीछा बिजलीघर में मात्र 5000 टन कोयला बचा है, जबकि यहां प्रतिदिन 17000 टन कोयले की जरूरत होती है। इसी तरह 660 मेगावाट के हरदुआगंज बिजलीघर में प्रतिदिन 8000 टन कोयला चाहिए, जबकि यहां दो दिन का ही कोयला बचा है। ऐसे में प्रदेश के लगभग 1800 मेगावाट क्षमता के इन बिजलीघरों के दो दिन बाद बंद होने की आशंका है। दूबे ने बताया कि पांच दिन की हड़ताल के बाद बिजली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा, क्योंकि उत्पादन संयंत्रों के स्टॉक का कोयला तब तक खत्म हो चुका होगा और नए सिरे से कोयला आने में समय लगेगा।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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