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घमंड के घोड़े पर सवार किसानों के कथित रहनुमा

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दिल्लीर की जनता के प्रचंड समर्थन, इतराती आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल, जंतर मंतर, रबी, खरीफ और जायद की मुख्या फसलें

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राजा कितना भी अत्‍याचारी हो, निरंकुश हो, क्रूर हो प्रजा को समाप्‍त नहीं कर सकता जबकि प्रजा जब चाहे राजा को समाप्‍त कर सकती है और लोकतंत्र में तो राजा की निरंकुशता, संवेदनहीनता को समाप्‍त करने का पर्व हर पांच साल पर आता है। प्रजा को इसके लिए किसी प्रकार के संघर्ष की जरूरत भी नहीं है। आम आदमी पार्टी के नेताओं का घमंड और उनकी संवेदनहीनता को लगता है पांच साल का भी इंतजार नहीं है।

दिल्‍ली की जनता के प्रचंड समर्थन पर इतराती आम आदमी पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए हैं सिर्फ इसलिए नहीं कि उनकी पार्टी के जमीनी नेताओं ने बगावत कर दी है बल्कि इसलिए भी कि वो उस रावण की राह पर चल रहे हैं जिसे जरूरत से ज्‍यादा अभिमान हो गया था और दुनिया जानती है कि त्रैलोक्‍य विजयी रावण को उसका ही घमंड खा गया था।

जतंर मंतर पर आप के शीर्ष नेतृत्‍व के सामने जिस तरह से किसान गजेंद्र सिंह ने आत्‍महत्‍या की और आप के संवेदनहीन नेता व कार्यकर्ता बेहयाई के साथ देखते व भाषणबाजी करते रहे, उससे दिल्‍ली की आमजनता की आत्‍मा जरूर दुखी हुई होगी। वे जरूर यह सोचने पर मजबूर हुए होंगे कि आखिर हमने किसको अपना रहनुमा चुन लियाॽ कहीं हमसे गलती तो नहीं हो गईॽ दिल्‍ली की जनता को अपनी गलती सुधारने का मौका जरूर मिलेगा।

वैसे आम आदमी पार्टी के अपरिपक्‍व नेतृत्‍व व उनके कार्यकर्ताओं के खिलंदड़ेपन को देखते हुए उनसे बहुत ज्‍यादा उम्‍मीद पालना भी उनके साथ नाइंसाफी है लेकिन जिस हद दर्जे की संवेदनहीनता का परिचय अरविंद केजरीवाल और उनकी घटिया टीम ने जंतर मंतर पर दिया है उससे इंसानियत मुंह छुपाने को मजबूर हो गई।

आजकल किसानों का हिमायती बनने की जैसे होड़ सी लगी हुई है। किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द खुद को साबित करने में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को छोड़कर भागे वो नेता भी लगे हैं जिनसे अगर पूछ लिया जाय कि रबी, खरीफ और जायद की मुख्‍य फसलें कौन-कौन सी हैं, दलहन तिलहन में क्‍या अंतर हैॽ तो वो बगलें झांकने लगेंगे। अपनी किसान रैली में गेंहूं के ‘पेड़’ की बर्बादी का जिक्र करने वाले फारेन रिर्टन इन नेताजी के पिता को लाल और हरी मिर्च में भी अंतर नहीं मालुम था।

लेकिन सोचना तो देश की जनता को होगा कि कौन उनके साथ राजनीति कर रहा है और कौन सही मायने में उनका विकास करना चाहता हैॽ जनता को इतना समझदार तो बनना ही होगा जिससे वे किसी बहरूपिये रहनुमा और वास्‍तविक विकास पुरूष में भेद कर सकें।

संसद को अपनी खोई जमीन प्राप्‍त करने की कोशिश का केंद्र बनाकर उसे बाधित करने वाले दलों को यह अच्‍छी तरह से समझ लेना चाहिए कि जनता बेवकूफ नहीं है। वह भले ही उनके खिलाफ सड़कों पर न उतरे लेकिन मताधिकार के महाअधिकार का प्रयोग कर वह उन्‍हें नेस्‍तोनाबूद कर सकती है और जनता यह करेगी जरूर।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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