मनोरंजन
डैनी का मूलमंत्र : कम काम, बेहतर परिणाम
नई दिल्ली | डैनी का नाम लेते ही लोगों के दिमाग में अनायास ही क्रूर स्वभाव और भारी आवाज वाले एक खलनायक का चेहरा उभरता है, लेकिन हिंदी फिल्मों के जाने माने खलनायक डैनी डेंग्जोंग्पा असल जिंदगी में एक भले और नेक इंसान हैं।
डैनी की अभिनय प्रतिभा की बानगी यही है कि उनका नाम लेते ही दर्शक मन ही मन किसी हिंदी फिल्म के खलनायक का चरित्र चित्रण कर डालते हैं। कम लोगों को पता है कि असल जिंदगी में प्रेम और सुकून पंसद डैनी खलनायक नहीं, एक गायक, चित्रकार, लेखक और संगीतकार हैं। पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान के छात्र रहे डैनी पेशेवर अभिनेता होने के अलावा बीयर फैक्टरी के मालिक हैं, एक सफल व्यवसायी हैं। पर्यावरण संरक्षक भी हैं। यही नहीं, खाली वक्त में डैनी अपने बगीचे माली भी होते हैं। उन्हें नई जगहों पर घूमना पसंद हैं। सिक्किम में एक बौद्ध परिवार में 25 फरवरी 1948 को जन्मे डैनी का वास्तविक नाम शेरिंग फिंसो डेंग्जोंग्पा है। डैनी नाम उन्हें पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में पढ़ाई के दौरान उनकी सहपाठी अभिनेत्री जया भादुड़ी ने दिया था। डैनी ने कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज, दार्जिलिंग से पूरी की। बचपन से उनकी इच्छा भारतीय सेना में भर्ती होने की थी। पुणे के आम्र्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज में उनका चयन भी हुआ था, लेकिन आखिर में उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से अभिनय का प्रशिक्षण लेने का फैसला किया।
डैनी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत वैसे तो नेपाली फिल्म ‘सैइनो’ से की थी, लेकिन उनकी पहली फिल्म ‘जरूरत’ (1971) थी। इसके बाद उन्हें गुलजार की फिल्म ‘मेरे अपने’ में काम मिला। अपनी पहली नकारात्मक भूमिका उन्होंने फिल्म ‘धुंध’ (1973) में निभाई थी, इस फिल्म ने उन्हें हिंदी फिल्मों में पहचान दिलाई। लेकिन सन्नी देओल अभिनीत हिंदी फिल्म ‘घातक’ में खलनायक ‘कात्या’ का किरदार आज भी लोगों को भुलाए नहीं भूलता। डैनी ने हिंदी सहित नेपाली, तेलुगू और तमिल भाषाओं की फिल्मों में काम किया है। कभी वे क्रूर शिकारी बने, तो कभी जान न्यौछावर करने वाले दोस्त। कभी दुश्मनी निभाने वाले बेरहम खलनायक, तो कभी वतन की रक्षा करने वाले देशभक्त सैनिक। डैनी को अलग अलग फिल्मों में, अलग चेहरों और किरदारों को पर्दे पर जीते हुए देखा जा सकता है। फिल्म ‘धुंध’ के बाद डैनी को एक के बाद कई सारी फिल्मों के प्रस्ताव मिले, लेकिन कम काम और बेहतर परिणाम डैनी की सफलता का मूलमंत्र रहा है। डैनी अपनी शर्तो पर काम करते हैं, अपने ही अंदाज में जिंदगी जीते हैं। वे रविवार के दिन शूटिंग नहीं करते और गर्मियों में परिवार के साथ छुट्टियां मनाते हैं। डैनी का विवाह सिक्किम की राजकुमारी गावा से हुई है। वह एक बेटे रिनजिंग और बेटी पेमा के पिता हैं।
एक साक्षात्कार में डैनी ने कहा भी था, “सभी जानते हैं कि मैं गर्मियों और अक्तूबर के महीने में शूटिंग नहीं करता। मैं काम में हमेशा गैप देता रहा हूं। अभिनय के लिए कलाकार के अंदर भूख रहनी चाहिए। इतना काम भी न करें कि खुद से ही तंग होने लगें। पैसे कमाने के लिए मैं अंधाधुंध काम नहीं करता। फिल्म अच्छी होगी तभी करूंगा। पैसे कमाने के लिए ऊटपटांग फिल्में शुरू कर दूं तो अपने प्रशंसकों को खो दूंगा। कलाकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने प्रशंसक की उम्मीदों पर खरा उतरे।” डैनी ने हिंदी सिनेमा के महानायक कहलाने वाले अमिताभ के साथ ‘अग्निपथ’ और ‘खुदा गवाह’ में काम किया है, तो दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत के साथ ‘रोबोट’ में काम किया है। उन्होंने हॉलीवुड फिल्म ‘सेवेन ईयर्स इन तिब्बेट’ में ब्रैड पिट के साथ काम किया है। उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोसले और मोहम्मद रफी के साथ युगल गाने गाए हैं। ‘फिर वही रात’ नाम से एक फिल्म का और टीवी धारावाहिक ‘अजनबी’ का निर्देशन भी किया है।
हिंदी सिनेमा में डैनी की प्रमुख फिल्मों में ‘मेरे अपने’ (1971), ‘धुंध’ (1973), ‘चोर मचाए शोर’ (1974), ‘खोटे सिक्के’ (1974), ‘काला सोना’ (1975), ‘लैला मजनूं’ (1976), ‘फकीरा’ (1976), ‘कालीचरण’ (1976), ‘संग्राम’ (1976), ‘अब्दुल्लाह’ (1980), ‘बुलंदी’ (1981), ‘कानून क्या करेगा’ (1984), ‘युद्ध’ (1985), ‘ऐतबार’ (1985), ‘प्यार झुकता नहीं’ (1985), ‘यतीम’ (1989), ‘सनम बेवफा’ (1991), ‘अग्निपथ’ (1990), ‘हम’ (1991), ‘खुदा गवाह’ (1992), ‘घातक’ (1996) ‘चाइना गेट’ (1998) ‘पुकार’ (2000), ’16 दिसम्बर’ (2002) ‘रोबोट’ (2010) शामिल हैं। हाल के वर्षो में डैनी ‘बॉस’, ‘बैंग बैंग’, ‘बेबी’ जैसी फिल्मों में नजर आए थे।
मनोरंजन
असित मोदी के साथ झगड़े पर आया दिलीप जोशी का बयान, कही ये बात
मुंबई। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में जेठालाल गड़ा का किरदार निभाने वाले दिलीप जोशी को लेकर कई मीडिया रिपोर्ट्स छापी गईं, जिनमें दावा किया गया कि शो के सेट पर उनके और असित मोदी के बीच झगड़ा हुआ। फिलहाल अब दिलीप जोशी ने इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ी है और खुलासा करते हुए बताया है कि इस पूरे मामले की सच्चाई क्या है। अपने 16 साल के जुड़ाव को लेकर भी दिलीप जोशी ने बात की और साफ कर दिया कि वो शो छोड़कर कहीं नहीं जा रहे और ऐसे में अफवाहों पर ध्यान न दिया जाए।
अफवाहों पर बोले दिलीप जोशी
दिलीप जोशी ने अपना बयान जारी करते हुए कहा, ‘मैं बस इन सभी अफवाहों के बारे में सब कुछ साफ करना चाहता हूं। मेरे और असित भाई के बारे में मीडिया में कुछ ऐसी कहानियां हैं जो पूरी तरह से झूठी हैं और ऐसी बातें सुनकर मुझे वाकई दुख होता है। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ एक ऐसा शो है जो मेरे और लाखों प्रशंसकों के लिए बहुत मायने रखता है और जब लोग बेबुनियाद अफवाहें फैलाते हैं तो इससे न केवल हमें बल्कि हमारे वफादार दर्शकों को भी दुख होता है। किसी ऐसी चीज के बारे में नकारात्मकता फैलते देखना निराशाजनक है जिसने इतने सालों तक इतने लोगों को इतनी खुशी दी है। हर बार जब ऐसी अफवाहें सामने आती हैं तो ऐसा लगता है कि हम लगातार यह समझा रहे हैं कि वे पूरी तरह से झूठ हैं। यह थका देने वाला और निराशाजनक है क्योंकि यह सिर्फ हमारे बारे में नहीं है – यह उन सभी प्रशंसकों के बारे में है जो शो को पसंद करते हैं और ऐसी बातें पढ़कर परेशान हो जाते हैं।’
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