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तथ्यों पर खरा नहीं उतरता टीकाकरण का दावा 

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नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने 30 जून को एक बयान दिया कि 2016 के अंत तक संपूर्ण टीकाकरण या 95 फीसदी बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। मंत्री द्वारा पिछले दिनों दिए गए एक अन्य बयान के आलोक में हालांकि यह एक असंभव लक्ष्य लगता है।

करीब चार महीने पहले नड्डा ने संसद में कहा था कि टीकाकरण के दायरे में देश के 90 फीसदी बच्चों को लाने में पांच साल लगेंगे।

अभी करीब 65 फीसदी बच्चों का ही टीकाकरण हो पाता है। यह 38 साल पहले संपूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) शुरू होने बाद अब तक का सबसे ऊंचा अनुपात है।

सरकारी आंकड़े के मुताबिक आज हर तीन में से एक बच्चा संपूर्ण टीकाकरण से वंचित रह जाता है, जिसके कारण देश में हर साल पांच लाख बच्चों की ऐसे रोगों से मौत हो जाती है, जिनके लिए टीका उपलब्ध है।

नड्डा ने 10 मार्च, 2015 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था, “सरकार ने 25 दिसंबर, 2014 को उन बच्चों के लिए इद्रधनुष अभियान शुरू किया है, जिनका या तो टीकाकरण हुआ है या आंशिक टीकाकरण हुआ है। इस अभियान में अगले पांच साल में बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण का दायरा सालाना पांच फीसदी बढ़ाते हुए कम से कम 90 फीसदी करने के लिए कदम उठाने पर ध्यान दिया गया है।”

1992-93 में 35.5 फीसदी बच्चों का टीकाकरण हो पाता था, जो 2013-14 में बढ़कर 65.2 फीसदी हो गया है।

यूआईपी के तहत नौ प्रकार के रोगों से बचाव के लिए बच्चों को टीके लगाए जाते हैं। इन रोगों में शामिल हैं डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटेनस, पोलियो, चेचक, बच्चों में होने वाला एक विशेष क्षय रोग, हैपेटाइटिस बी, हीमोफिलस एनफ्लूएंजा बी के कारण होने वाला मस्तिष्क ज्वर/निमोनिया और जापानी एनसेफलाइटिस।

उत्तराखंड में यूआईपी के दायरे में 79.6 फीसदी बच्चे आ गए हैं, जबकि उत्तर प्रदेश 52.7 फीसदी के साथ सबसे पीछे है।

इंद्रधनुष का मुख्य रूप से ध्यान उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, असम और उत्तर प्रदेश पर है, जहां देश की आधी आबादी रहती है, 60 फीसदी जन्म होता है, 71 फीसदी शिशु मृत्यु दर है, पांच साल से पहले 72 फीसदी मौत होती है और मातृत्व मातृ मृत्यु में 62 फीसदी योगदान है।

गोवा में टीकाकरण की पहुंच 89.1 फीसदी, सिक्किम में 85.2 फीसदी और केरल में 82.5 फीसदी है।

जागरूकता का अभाव, टीका के बुरे प्रभाव तथा टीके का अभाव जैसे कारणों से टीकाकरण की पहुंच सीमित है।

सरकार इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए 201 ऐसे जिलों पर विशेष ध्यान दे रही है, जहां आंशिक टीकाकरण या टीकाकरण के दायरे से बाहर 50 फीसदी बच्चे रहते हैं।

टीकाकरण पर सरकार ने गत तीन साल में 599.87 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

टीकाकरण से हर साल वैश्विक स्तर पर 20-30 लाख बच्चों की डिप्थीरिया, टिटेनस, काली खांसी और चेचक जैसे रोगों से बचाव हो जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2013 में दुनिया भर में करीब 2.18 करोड़ शिशुओं को नियमित टीका नहीं लग पाया, जिनमें से आधे शिशु भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान से थे।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। यहां प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं।)

 

प्रादेशिक

IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी

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महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।

कौन हैं IPS संजय वर्मा?

IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।

कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।

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