आध्यात्म
निष्कामता विशुद्ध भक्ति का वास्तविक स्वरूप होता है
सारांश यह कि हम लोगों ने अनादि काल से अपनी संसारी या मुक्ति सम्बन्धी कामनायें बनाकर अपना वास्तविक स्वरूप भुला दिया। लेना लेना ही सीखा है। अर्थात् स्वार्थयुक्त प्रेम ही किया है। अब देना देना सीखना है। यह सिद्धान्त दृढ़ हो जाने पर भक्ति अत्यन्त सुलभ हो जायगी।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
सेवक सेवा ही चहइ, सेव्य श्याम रुचि जान।
तिन सुख महँ रह सुखी नित, उर न कामना आन।। 46।।
भावार्थ- वास्तविक सेवक अपने स्वामी श्यामसुन्दर की सेवा ही चाहता है। वह सेवा भी सेव्य की रुचि में रुचि रखकर होनी चाहिये। एवं स्वामी के सुख में ही सुख मानना चाहिये। अपने सुख की कामना विष है।
व्याख्या- विशुद्ध भक्ति का वास्तविक स्वरूप ही होता है निष्कामता। निष्कामता का अभिप्राय है कि हम पाँच प्रकार की मुक्ति भी न चाहें। मुक्ति की कामना भी तो सकामता ही है। निष्कामता का स्वरूप इतना मधुर होता है कि अनन्त ब्रह्मानन्द फीका पड़ जाता है।
यथा-
गोविंद प्रेक्षणाक्षेपि वाष्पपूराभिवर्षिणम् ।
उच्चैरनिंददानन्दमरविन्दविलोचना।।
(भ. र. सि.)
साधन सिद्धि राम पग नेहू।
(रामायण)
साधन भक्ति द्वारा ही साध्य भक्ति प्राप्त होती है। यह भक्ति प्रमुख रूप से तीन प्रकार की होती है। यथा-
- सकाम भक्ति- राजसी एवं तामसी भक्ति।
- कैवल्य कामा भक्ति- सात्विकी भक्ति।
- निर्गुणा भक्ति- यही भक्ति विशुद्ध एवं ग्राह्य है। इस भक्ति के 3 भेद और भी बताये गये हैं। यथा-
2.1. आरोप सिद्धा भक्ति- जो किसी कामना से की जाय। 2. संग सिद्धा भक्ति- जिसमें कर्म ज्ञानादि का मिश्रण हो। 3. स्वरूप सिद्धा भक्ति- जो सेवा भाव युक्त निष्काम हो।
सारांश यह कि केवल भक्ति ही स्वतंत्र है एवं अन्य मार्गावलंबियों को भी भक्ति शरण ग्रहण करनी होगी।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
ब्रह्मलोक पर्यंत सुख, अरु मुक्तिहुँ सुख त्याग।
तबै धरहु पग प्रेम पथ, नहिं लगि जैहैँ दाग।। 45।।
भावार्थ- ब्रह्मलोक पर्यन्त के सुखों की कामना एवं पाँचों मुक्तियों की कामनाओं का त्याग करके ही विशुद्धा भक्ति सरोवर में अवगाहन करो। अन्यथा प्रेम के उज्जवल स्वरूप पर कामनाओं का काला धब्बा लग जायगा।
व्याख्या- भक्ति शब्द का अर्थ ही है सेवा करना। (भज् सेवायां धातु से भक्ति शब्द बना है) सेवक को स्वामी की सेवा में अपने सुख की कोई भी कामना नहीं करनी है। सेवा का सच्चा स्वरूप ही है स्वामी को सुखी करना एवं उनके सुख में स्वयं सुखी रहना। सेवा सदा स्वामी की रुचि के अनुसार ही करनी है। मैंने पूर्व में विस्तार पूर्वक लिखा है। भुक्ति एवं मुक्ति इन दोनों कामनाओं के अन्तर्गत ही समस्त कामनायें हैं। अतः इनको तो छोड़ना ही है। साथ ही साथ अपने सुख की भी कामना छोड़नी है। यथा नारद जी कहते हैं-
’तत्सुख सुखित्वम् ।‘ (ना. भ. सू. 24)
- सभी द्रव्यों से भक्ति यथा-
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक् त्या प्रयच्छति।
तदहं भक् त्युपहृतमश् नामि प्रयतात्मनः।।
(गीता 9-26, भाग. 10-81-4)
- समस्त क्रियाओं में भक्ति यथा-
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ।।
(गीता 9-27)
- समस्त कार्यों में भक्ति यथा-
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जर्नार्दन।
यत्कृतं तु मयादेव परिपूर्णं तदस्तु मे।।
- समस्त कामनाओं में भक्ति यथा-
अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः।
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ।।
(भाग. 2-3-10)
इस प्रकार भक्ति का अनन्त रूप से स्वातंत्र्य है। यह भक्ति समस्त ब्रह्माण्डों में रहती ह। तथा दिव्य परव्योम एवं गोलोक में तो रहती है। अतः भक्ति महाप्रलय में भी दिव्य भगवद्धम में सदा रहती है। यह भक्ति साधन भी है एवं साध्य भी है। यथा- भक् त्या संजातया भक् त्या बिभ्रत्युत्पुलकां तनुम् ।
(भाग. 11-3-31)
आध्यात्म
महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई
लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।
महापर्व 'छठ' पर हमरे ओर से आप सब माता-बहिन आ पूरा भोजपुरी समाज के लोगन के बहुत-बहुत मंगलकामना…
जय जय छठी मइया! pic.twitter.com/KR2lpcamdO
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 7, 2024
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