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आध्यात्म

पटना में गायत्री परिवार का चेतना शिविर

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पटना| बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को युवाओं का विराट चेतना शिविर प्रारंभ हुआ। अखिल विश्व गायत्री परिवार के तत्वावधान में आयोजित इस शिविर में पूरे प्रांत से 3,000 युवा हिस्सा ले रहे हैं। राजधानी के गांधी मैदान में सुबह नौ बजे से ध्वजारोहण के साथ इस विशाल युवा सम्मेलन का विधिवत शुभारम्भ हुआ। तीन दिवसीय इस आयोजन में प्रदेश के युवाओं को स्वास्थ्य, व्यक्तित्व परिष्कार, राष्ट्रनिष्ठा के साथ ही रचनात्मक कार्यक्रमों की प्रेरणा दी जाएगी।

युवाओं की ऊर्जा संगठित कर राष्ट्र निर्माण हेतु सृजनात्मकता की दिशा देने हेतु अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्डया सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। उनके अतिरिक्त दे.सं.वि.वि. हरिद्वार के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या भी आयोजन में शिरकत करेंगे।

आध्यात्म

जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग

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लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।

दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती  हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।

तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।

वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में  पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।

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