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प्रधानमंत्री की बिहार यात्रा : विकास, संघवाद और प्रचार
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
नरेंद्र मोदी ने बिहार दौरे के दौरान दो जनपदों में अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वाह किया। पटना में प्रधानमंत्री की भूमिका के तहत उन्होंने विकास को तरजीह दी। उन्होंने यहां जिन योजनाओं की शुरुआत की, उनसे भविष्य में गांवों की तस्वीर बदल सकती है। तब इसका लाभ केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा।
विकास के मामले में उन्होंने यहां संघवाद को महत्व दिया। उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया कि उनकी सरकार विकास के मार्ग पर न सिर्फ राज्यों का साथ लेकर चलना चाहती है, वरन उन्हें अधिक अधिकार, संसाधन और जिम्मेदारी देना चाहती है। यही कारण था पटना के समारोहों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके साथ थे। प्रधानमंत्री ने कहा भी कि विकास के मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सभी को साथ लेकर चलना होगा।
वहीं मुजफ्फरपुर में नरेंद्र मोदी भाजपा के स्टार प्रचारक की भूमिका में थे। पटना में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अगल-बगल थे। यहां इन दोनों को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि मतभेद भी है। यही भारत के संघवाद की विशेषता होनी चाहिए। विकास में दलगत या व्यक्तिगत मतभेद बाधक नहीं बनने चाहिए। नीतीश ने तो नरेंद्र मोदी से दो वर्ष पहले व्यक्तिगत नाराजगी की गांठ बांध ली थी। लेकिन पटना में उन्होंने संवैधानिक दायित्वों को महत्व दिया। प्रजातंत्र में विभिन्न दलों की सरकारें होती हैं। फिर भी लोक कल्याण पर आपसी सहमति होनी चाहिए।
मुजफ्फरपुर में नीतीश कुमार हालांकि नरेंद्र मोदी के निशाने पर थे। उन्होंने यहां मोदी ने नीतीश सरकार को हटाकर भाजपा को सत्ता में लाने का आह्वान किया। नीतीश और लालू के बीच गठबंधन को कितनी सफलता मिलेगी, यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा, लेकिन सच्चाई यह है कि नीतीश के लिए चुनाव पूर्व इस गठबंधन का सैद्धांतिक रूप में बचाव करना मुश्किल हो रहा है। यह दोस्ती नीतीश की दुखती रग बन गई है।
नरेंद्र मोदी ने इसी गठबंधन पर प्रहार किया। उन्होंने सवाल किया कि लालू यादव को साथ लेकर सुशासन की स्थापना कैसे की जा सकती है। लालू का शासन जंगलराज माना जाता रहा है। अब वह नीतीश की कमजोरी बन गए हैं। परिवर्तन रैली में नरेंद्र मोदी ने भाजपा की चुनावी रणनीति को दिशा दी। इसके तहत लालू के जंगलराज को जोर-शोर से उठाया जाएगा, इसी के साथ नीतीश कुमार से सवाल पूछा जाएगा कि आखिर अब वह सुशासन का दावा कैसे कर सकते हैं।
नीतीश ने अपनी निजी नाराजगी और महत्वाकांक्षा के चलते बिहार को पुन: अस्थिरता के दौर में पहुंचा दिया है। इन दो वर्षों की अस्थिरता का उन्हें जवाब देना होगा। मोदी ने अघोषित रूप से जातीय समीकरण को भाजपा के पक्ष में करने का प्रयास किया। लालू के जंगलराज की वापसी से सावधान रहने को कहा। उन्होंने नीतीश द्वारा उनकी थाली खींचने का जिक्र भविष्य के समीकरण को ध्यान में रखकर किया। जिक्र में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी शामिल किया। उन्होंने कहा कि नीतीश ने मांझी को अपमानित करके हटाया। भाजपा अति दलित और अति पिछड़ा को अपने पाले में करने का प्रयास करेगी। यह तय हुआ कि बिहार चुनाव में नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रमुख चेहरा होंगे। नीतीश के सुशासन संबंधी दावे को इस रणनीति द्वारा कमजोर किया जाएगा। इसी के साथ भाजपा लालू और नीतीश की अंदरूनी कटुता पर भी तंज कसती रहेगी।
लालू ने नीतीश को नेता मानने को विष पीना बताया था। नीतीश ने एक दोहे के माध्यम से लालू को भुजंग बताया था। नरेंद्र मोदी ने जानबूझ कर विष और भुजंग शब्द का जिक्र किया। यह सीधे लालू और नीतीश के बेमेल गठबंधन पर तंज था। प्रधानमंत्री ने सुशील कुमार मोदी की प्रशंसा कर यह बताने का प्रयास किया कि राजग सरकार की सफलता में भाजपा का योगदान सर्वाधिक था। इसी के कारण नीतीश की छवि सुशासन वाली बनी थी। नरेंद्र मोदी ने कहा कि उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री के रूप में सुशील कुमार मोदी बराबर दिल्ली जाकर संप्रग सरकार पर दबाव बनाते थे। वह आर्थिक सहायता लाकर बिहार के विकास को आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद जद(यू) का शासन बिल्कुल राजद के अंदाज में चल रहा है।
वैसे नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी पर पहले हमला किया था। उन्होंने सात सवाल दागे थे। ये सभी मोदी के वादों के संबंध में थे। लेकिन ऐसा करते समय नीतीश भूल गए कि वह मोदी से सवा साल का हिसाब मांगकर अपनी मुसीबत बुला रहे हैं। अब उन्हें मोदी को अपने पूरे कार्यकाल का हिसाब देना होगा। इसमें भाजपा के साथ उससे अलग वाले कार्यकाल का अलग-अलग रिकार्ड देना होगा।
नीतीश कुमार ने कहा था कि पांच वर्ष में प्रत्येक गांव को बिजली नहीं दे सके तो वोट मांगने नहीं जाएंगे। यह प्रश्न उनका पीछा करेगा। वहीं नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्होंने साठ महीने मांगे थे, तब तक वह वादे पूरे कर देंगे। नरेंद्र मोदी की पटना व मुजफ्फरपुर यात्रा को समग्र रूप में देखने पर कई बाते साफ होती हैं। एक यह कि भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगा। दूसरा, विकास को प्रमुख मुद्दा बनाया जाएगा, जिसमें लालू को लेकर सवाल उठेंगे और तीसरा, भाजपा अपना समीकरण ठीक कर रही है, राजद व जद(यू) गठबंधन का राजग जोरदार मुकाबला करने का मन बना चुकी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
प्रादेशिक
IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी
महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।
कौन हैं IPS संजय वर्मा?
IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।
कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।
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