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बस्तर में विदेशी प्रोफेसर सिखा रहे सस्ते मकान बनाना
जगदलपुर। प्रकृति के बीच रहने वाले आदिवासियों को प्राकृतिक साधनों से ही आत्मनिर्भर बनाने के लिए मेक्सिको के एक प्रोफेसर ने मुहिम शुरू की है। भारतीय मूल के प्रो. वरुण दाइटम और स्कॉटलैंड की प्रोफेसर इंडिया स्थानीय इंजीनियरों को कम खर्च में ईको फ्रेंडली मकान, डोम और अन्य निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
ये दोनों ही इंजीनियर खुद गारा और मिट्टी अपने हाथों से तैयार करते हैं। वरुण मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं।
वे पिछले तीन दिनों से लाइवलीहुड कॉलेज में जिला पंचायत के इंजीनियरों और अन्य लोगों को मिट्टी और रेत से दीवार और छत की ढलाई के गुर सीखा रहे हैं। इस निर्माण को स्पैनिश वॉल्ट भी कहा जाता है। पहले चरण में मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं। ये गांव-गांव जाकर महिला समूहों और अन्य लोगों को इन निमार्णों की जानकारी देंगे।
स्पैनिश वॉल्ट के तहत मकान, दुकान, रेस्टोरेंट के साथ अन्य प्रकार के सभी निर्माण मिट्टी की जुड़ाई से किए जाते हैं। इसके लिए गीली मिट्टी और रेत का मिश्रण तैयार किया जाता है। छत की ढलाई और बेस के लिए ईंट भी ऐसे ही बनाई जाती है और ईंट को भट्टे में पकाया नहीं जाता है। मिट्टी और रेत इसे मजबूती देते हैं। इसके बाद मिट्टी और रेत के मिश्रण से दीवार खड़ी की जाती है।
छत में भी मिट्टी, रेत के मिश्रण से ढलाई की जाती है। ये मकान पूरी तरह ईको फ्रेंडली होने के साथ मौसम के अनुकूल भी रहते हैं। इनके निर्माण में कांक्रीट के निर्माण की अपेक्षा 40 प्रतिशत खर्च कम होता है।
पहले भी आ चुके हैं बस्तर :
मेक्सिको की आईटीइएसएम यूनिवर्सिटी के प्रो. वरुण दाइटम मूलत: बेंगलुरू के रहने वाले हैं। वे पिछले पांच सालों से मेक्सिको में हैं। हाल में वे छुटिट्यों में भारत आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने जिला पंचायत सीईओ रितेश अग्रवाल की एक पोस्ट पढ़ी जिसमें लिखा था कि यदि कोई बस्तर में आकर यहां के लोगों को नया कुछ सिखाना चाहता है तो उनका स्वागत है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद उन्होंने गूगल सर्च किया तो यहां एनएमडीसी और नक्सलियों से संबंधित जानकारी ही ज्यादा मिली। इसके बाद भी वे बस्तर आए और यहां तीन दिनों का ट्रेनिंग सेशन चलाया। इसके बदले में उन्होंने कोई फीस नहीं ली।
स्कॉटलैंड से बस्तर आईं इंडिया :
सोशल मीडिया में सीईओ रितेश अग्रवाल ने प्रो. वरुण दाइटम के ट्रेनिंग देने की जानकारी पोस्ट की थी। इसे पढ़कर स्कॉटलैंड की महिला जिनका नाम इंडिया है वो भी जगदलपुर पहुंच गईं। इंडिया अभी भारत के दौरे पर हैं। इंडिया ने कहा कि बस्तर जैसे इलाके में ऐसे ट्रेनिंग सेशन की जानकारी के बाद वो खुद को नहीं रोक पाई और यहां आ गई।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से जो जानकारी मिली बस्तर उसके ठीक उलट है। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता अक्सर भारत भ्रमण के लिए आते थे। उन्हें भारत इतना पसंद था कि उन्होंने मेरा नाम ही इंडिया रख दिया।
विदेशी इंजीनियर खुद ही लगे हैं निर्माण में :
अभी पहले चरण में जिला पंचायत के इंजीनियरों को स्पैनिश वॉल्ट बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। तीन दिनों से इंजीनियर खुद मिट्टी और रेत का गारा बना रहे है और खुद ही दीवार और ढलाई का काम कर रहे हैं। बस्तर में शहरी क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो आज भी बड़ी संख्या में ग्रामीण मिट्टी के मकान में रहते हैं। ऐसे में यहां स्पैनिश वॉल्ट के सफल होने की ज्यादा संभावनाएं हैं।
मिट्टी के मकान यहां के कल्चर में शामिल है। ऐसे में गांव-गांव में महिला समूह को इसका प्रशिक्षण दिलवा कर इससे व्यावसायिक फायदे भी उठाए जा सकते हैं। महिलाओं को इस निर्माण की बारीकी सिखाने के बाद इन्हें आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराएंगे। इस काम के लिए उन्हीं महिलाओं को चुना जाएगा, जो गांव-गांव में गारे से मकान बनाने के लिए मजदूरी का काम करती हैं।
नेशनल
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 रुपये के बदले देना पड़ेगा 35,453 रुपये, जानें क्या है पूरा मामला
हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला
क्या है पूरा मामला ?
सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।
कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।
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