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महाजीत में छिपी है अहंकार की हार

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सारंग कुमार

पहली बार बिहार और समूचे देश ने अपने प्रधानमंत्री को एक पैकेज का ऐलान इस तरह करते सुना- ’70 हजार, 80 हजार, 90 हजार करूं या ज्यादा करूं?’ इसके बाद नरेंद्र मोदी ने सवा सौ करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान जिस अंदाज और जितनी जोरदार आवाज में किया, स्तब्ध कर देने वाला था। यह एक प्रधानमंत्री नहीं, उसका ‘अहंकार’ बोल रहा था।

बिहार की बोली लगाने के अंदाज में पैकेज का ऐलान और बागी हुए पूर्व मुख्यमंत्री के प्रति हमदर्दी में राज्य के मुख्यमंत्री के ‘डीएनए’ पर सवाल उठाना देश के प्रधानमंत्री को इतना महंगा पड़ेगा, कोई सोचा न था। पहली बार बिहार और समूचे देश ने एक प्रधानमंत्री को विधानसभा चुनाव में 26 रैलियां करते, दहाड़ते पाया। विरोधियों की टिप्पणियों का जवाब अपने पद के स्तर से कई पायदान नीचे उतरकर देते पाया। रैलियों में उमड़ी तमाशबीन जनता अपने प्रधानमंत्री के बोल सुन-सुनकर दांतों तले उंगली दबाती रही और प्रधानमंत्री इस मुगालते में रहे कि मैदान मार ली, हांक लिया पूरा बिहार।

हर रैली में प्रधानमंत्री नहीं, उनका अहंकार बोलता रहा। मध्य प्रदेश के व्यापमं खूनी महाघोटाले पर चुप, ललित मोदी से सुषमा स्वराज-वसुंधरा राजे के कनेक्शन पर चुप, दादरी कांड पर देश सिहरा, काफी इंतजार के बाद राष्ट्रपति बोले, मगर प्रधानमंत्री चुप। ‘असहिष्णुता’ शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले राष्ट्रपति ने किया। अलगे दिन प्रधानमंत्री सिर्फ इतना बोले, “दादा ने जो कहा, सही कहा है।” इसके बाद सभी नवरात्र-दशहरे में व्यस्त रहे। इसके बाद राष्ट्रपति के कहे ‘असहिष्णुता’ शब्द को जिस किसी ने दोहराया, वह देश की सत्ता के निशाने पर आया।

बेकसूरों की हत्या कर देश के माहौल को सांप्रदायिक बनाने के षड्यंत्र को सत्ता की मौन स्वीकृति। ऐसे हालत से आहत देश के गौरव साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, कालाकारों, फिल्मकारों के पुरस्कार लौटाने पर उनका पहले छुटभैयों से अपमान करवाना और फिर सत्ता में बैठे लोगों का उस पर मुहर लगाना। यह सबने देखा। मगर प्रधानमंत्री रहे मौन। यह अहंकार ही निगोड़ी ऐसी चीज है जो ‘बड़बोलेपन’ के लिए मशहूर शख्स के भी होंठ सिल देती है।

साहित्यकारों के कल्याण के लिए क्या है कोई योजना? क्या किसी साहित्यकार को घोटाले कर अपनी तिजोरी भरते देखा है? दुर्दिन झेलकर, अपना खून जलाकर कोई साहित्यकार समाज के लिए कुछ लिखता है और जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर एक अदद पुरस्कार पाता है। देश में हालात ऐसे पैदा कर दिए जाते हैं कि आहत होकर वह पुरस्कार भी लौटा देता है। उसके त्याग का देश की सत्ता को भोंडे तरीके से मजाक उड़वाते देश ने देखा, बिहार ने भी देखा।

बिहार ने देखी देश की सत्ता की बेदर्दी और विकास के नारे की आड़ में बहुत कुछ देखा। पहले कहा गया विकास, विकास और केवल विकास। फिर सबका साथ सबका विकास, मगर सामने आता रहा विरोधाभास। कैसे यकीन करे जनता? विरोधाभासों से भरे राजग नेताओं के बयान, फिर बिहार को पाकिस्तान में पटाखे फूटने की चेतावनी, मुख्यमंत्री को पाकिस्तान भेजने की धमकी। यह सब सत्तापक्ष के अहंकार ने ही तो करवाया। बदले में जो मिला, वह 8 नवंबर के ऐतिहासिक दिन बिहार ही नहीं, देश ही नहीं, पूरी दुनिया ने देखा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

प्रादेशिक

IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी

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महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।

कौन हैं IPS संजय वर्मा?

IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।

कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।

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