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नेशनल

बीबीसी की जांच से अमेरिका, ब्रिटेन बेनकाब, सीरिया में आईएस के रक्षक

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इस खुलासे के बाद इस मामले की गूंज निश्चित तौर पर ब्रिटिश संसद और वॉशिंगटन में कांग्रेस की बैठकों में गूंजेगी। ऐसे और भी कई कृत्यों का खुलासा होने वाला है।

इस मामले को लेकर रूस का रक्षा मंत्रालय पहले ही सक्रिय हो गया है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा, अमेरिका ने रक्का में अबु कमाल से पीछे हट रहे एक सैन्य दस्ते पर बम गिराने से इनकार कर दिया। गठबंधन के विमान ने रूस को आंतकवादियों के खिलाफ हवाई हमले करने से रोकने की भी कोशिश की। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि अमेरिका के नेतृत्व वाला अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन आईएसआईएस आतंकवादियों को सीधे तौर पर सहयोग और समर्थन दे रहा है।

एक अन्य घटना में भी अमेरिकियों ने आईएसआईएस आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमले करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। इसका कारण यह दिया गया कि आतंकवादी युद्ध बंदियों के तौर पर समर्पण करने के लिए तैयार हैं और इसलिए वे जेनेवा संधि के प्रावधानों के अधीन आते हैं। इस तर्क के साथ अमेरिकी विमान ने ‘रूसी विमानों को कार्रवाई नहीं करने दी।’

थिंक टैंक स्ट्रैटफॉर के मुताबिक, हाल ही में इराक और सीरिया से लौटने वाले लड़ाकों द्वारा अंजाम दिए गए हमलों से पता चलता है कि वे मुश्किल लक्ष्यों की जगह आसान लक्ष्यों को निशाना बना रहे हैं। एक यहूदी संग्रहालय पर और ब्रसेल्स के हवाईअड्डे पर, लंदन के मैनचेस्टर में एक कांसर्ट और पेरिस में एक कैफे, कांसर्ट स्थल और खेल के स्टेडियम पर हुए हमले इसके कुछ उदाहरण हैं।

जिहाद के नाम पर पश्चिम में अपने घरों को छोड़कर सीरिया जैसे स्थानों के लिए निकले युवाओं में अपने घर लौटने पर अपने-अपने समाज के लिए भी शत्रुतापूर्ण भाव नहीं होगा, इसकी संभावना कम ही है और यह शत्रुतापूर्ण भाव आतंकवादी गतिविधियों के रूप में सामने आएगा।

आतंकवादियों और उनका सामना करने वाली आतंकवाद रोधी इकाइयों के बीच चलने वाली चूहे-बिल्ली की दौड़ अन्य लोगों को अपने दुष्ट एजेंडों को आगे बढ़ाने का मौका देती है। यह एक शैतानी जाल की तरह है।

अगर पाठकों ने आईएस के प्रचारक तंत्र अमाक को नहीं देखा, तो उन्हें तुरंत ऑनलाइन इसकी एक प्रति लेनी चाहिए। यह चमकदार पत्रिका कई अन्य बेहतर पत्रिकाओं को शर्मसार कर देगी। अगर आईएस बंकरों और खाइयों में लुक-छिपकर रहने वाला एक आतंकवादी संगठन है तो उनके पास ऐसी पेशेवर पत्रिका को नियमित रूप से प्रकाशित करने का समय, कौशल और प्रिंटिंग प्रेस कैसे उपलब्ध है?

गैर-जीसीसी (खाड़ी सहयोग परिषद) अरब राजनयिक साउथ ब्लॉक को सूचित करते रहे हैं कि संभवत: सीरिया और इराक से आतंकवादियों को विमान द्वारा अफगानिस्तान और म्यांमार के राखिने जैसे युद्ध क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा रहा है। भारत को भी इस वैश्विक संकट से खुद को सुरक्षित नहीं समझना चाहिए।

वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल एक्शन सेंटर की सारा फ्लॉन्डर्स का म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की बदतर होती स्थिति पर लिखा लेख भी इसी ओर इशारा करता है। राखिने में बौद्ध पुजारियों, म्यांमार की सेना और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच शत्रुता वर्षो से चली आ रही है। फिर 25 अगस्त को सशस्त्र विद्रोही समूह अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (अरसा) को म्यांमार सेना की 30 चौकियों पर हमले की जरूरत क्यों पड़ी?

उसके बाद ही म्यांमार सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों पर बर्बर जवाबी हमले किए और उन्हें हजारों की संख्या में सीमा पार खदेड़ दिया।

इस घटना का एक रोचक पहलू यह भी है कि अरसा का मुख्यालय सऊदी अरब में रहने वाले एक पाकिस्तानी नागरिक अताउल्ला उबु अम्मार जुनूनी के नेतृत्व में मक्का में है।

दीगर बात यह है कि यमन में तीन साल चले युद्ध का संचालन करने वाले अमेरिका और सऊदी अरब को अचानक ही राखिने के 10 लाख रोहिंग्या मुसलमानों से इतनी हमदर्दी क्यों हो गई है। क्या वे सीमा से सटे एक गरीब और खनिज से प्रचुर देश के एक समूह पर नियंत्रण की इच्छा के चलते ऐसा कर रहे हैं?

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने तेहरान टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में ऐसी ही आशंका जाहिर की थी।

उनके मुताबिक, आईएस अमेरिका और उसके सहयोगियों के दिमाग की उपज है, जिसने चरमपंथ और आतंकवाद से लड़ने के नाम पर दुनिया से इस आतंकवादी संगठन को रूबरू कराया था। करजई ने क्षेत्रीय ताकतों को अफगानिस्तान में आईएस को मजबूत न करने की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में इस आतंकवादी संगठन की संख्या और पैठ बढ़ती जा रही है।

पिछले साल अप्रैल में पुतिन द्वारा अफगानिस्तान को लेकर शुरू की गई पहल के जरिए अफगानिस्तान में आईएस और अलकायदा को अलग करने के लिए क्षेत्रीय समर्थन की अपील की गई थी। जैसे ही ट्रंप ने रूस को अफगानिस्तान में एक सकारात्मक प्रक्रिया शुरू करने का प्रयास करते देखा, उसने अफगानिस्तान से हटने के अपने फैसले को पलट दिया। चाहे जो भी हो यह कायम रहेगा।

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उत्तर प्रदेश

संभल में कैसे भड़की हिंसा, किस आधार पर हो रहा दावा, पढ़े पूरी रिपोर्ट

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संभल। संभल में एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन मंदिर होने और भविष्य में कल्कि अवतार के यहां होने के दावे ने हाल ही में काफी सुर्खियां बटोरी हैं. इस दावे के पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक तथ्य बताए जा रहे है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और उनके मंदिर को लेकर कई दावे पहले से ही किए जा रहे हैं. इसे लेकर धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के आधार पर गहरी चर्चा हो भी रही है. हिंदू धर्म में कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार माना गया है. ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत में जब अधर्म और अन्याय अपने चरम पर होगा तब भगवान कल्कि अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करेंगे.

कैसे भड़की हिंसा?

24 नवंबर को मस्जिद में हो रहे सर्वे का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मौके पर थी. सर्वे पूरा होने के बाद जब सर्वे टीम बाहर निकली तो तनाव बढ़ गया. भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई और हिंसा भड़क उठी.

दावा क्या है?

हिंदू पक्ष का दावा है कि संभल में स्थित एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन काल में एक मंदिर था. इस मंदिर को बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उनका यह भी दावा है कि भविष्य में कल्कि अवतार इसी स्थान पर होंगे.

किस आधार पर हो रहा है दावा?

दावेदारों का कहना है कि उनके पास प्राचीन नक्शे हैं जिनमें इस स्थान पर मंदिर होने का उल्लेख है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल से ही पूजा-अर्चना होती थी. कुछ धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान के बारे में उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म के अनुसार कल्कि अवतार भविष्य में आएंगे और धर्म की स्थापना करेंगे. दावेदारों का मानना है कि यह स्थान कल्कि अवतार के लिए चुना गया है.

किस आधार पर हो रहा है विरोध?

अभी तक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिला है. जो भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स उपल्बध हैं वो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस स्थान पर एक मस्जिद थी. धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और इनका उपयोग किसी भी दावे को सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

संभल का धार्मिक महत्व

शास्त्रों और पुराणों में यह उल्लेख है कि भगवान विष्णु का कल्कि अवतार उत्तर प्रदेश के संभल नामक स्थान पर होगा. इस आधार पर संभल को कल्कि अवतार का स्थान माना गया है. श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कल्कि अवतार का वर्णन विस्तार से मिलता है जिसमें कहा गया है कि कल्कि अवतार संभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे.

इसी मान्यता के कारण संभल को कल्कि अवतार से जोड़ा जाता है. संभल में बने कल्कि मंदिर को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यही वह स्थान है जहां भविष्य में भगवान कल्कि का प्रकट होना होगा. मंदिर के पुजारी और भक्तों का कहना है कि यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है और यहां कल्कि भगवान की उपासना करने से व्यक्ति अधर्म से मुक्ति पा सकता है.

धार्मिक विश्लेषण

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कल्कि अवतार का समय तब होगा जब अधर्म, पाप और अन्याय चरम पर पहुंच जाएंगे. वर्तमान में दुनिया में मौजूद सामाजिक और नैतिक स्थितियों को देखकर कुछ लोग यह मानते हैं कि कल्कि अवतार का समय निकट है. संभल में कल्कि मंदिर को लेकर जो भी दावे किए जा रहे हैं वो सभी पूरी तरह से आस्था पर आधारित हैं. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित समय और वर्तमान समय के बीच अभी काफी अंतर हो सकता है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और मंदिर का दावा धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों पर आधारित है. हालांकि, यह दावा प्रमाणिकता के बजाय विश्वास पर आधारित है. यह भक्तों की आस्था है जो इस स्थान को विशेष बनाती है.

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