प्रादेशिक
बुंदेलखंड : नोटबंदी से गांव के लोग हलकान
बांदा । नोटबंदी को एक महीने से ज्यादा हो गया है, पर अभी भी सरकार लोगों को इससे होने वाली परेशानियों को दूर नहीं कर पाई है। सरकार के ‘कैशलेस अर्थव्यवस्था’ के नारे गांवों में कितना सफल होंगे, यह अभी दूर की कौड़ी है लेकिन फिलहाल तो गांवों में तकनीकी से दूर रहने वाले लोगों को रोज नई परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है।
हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भूखे-प्यासे बुजुर्ग घंटों बैंक की कतार में खड़े होते हैं और आखिर में उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है। फिर अगले दिन वही जद्दोजहद..।
लहरेटा गांव के 80 वर्षीय साहबदीन को रोज 5 घंटे बैंक की लाइन में खड़ा होना पड़ता है। साहबदीन ने पैसा न मिलने की स्थिति में उधार लेकर कुछ दिनों के लिए घर का चूल्हा तो जला लिया पर अब उन्हें ये उधार चुकाना है। जिसके लिए वह बिना खाए बैंक की लाइन में लग जाते हैं और दोपहर तक उन्हें पता चलता हैं कि अब बैंक के पास देने के लिए पैसे नहीं है।
साहबदीन के चेहरे पर गुस्सा और बेबसी दोनों भाव साफ नजर आते हैं जब वो कहते हैं, “बिन पैसे बीज और खाद कैसे खरीदें। खेत तो पैसों का इंतेजार नहीं कर सकते हैं और अगर अभी फसल नहीं लगाई तो हम साल भर क्या कमाएंगे?”
बुंदेलखण्ड के सूखाग्रस्त इलाके में किसानों के पास इतना अनाज नहीं है कि वे अनाज बेचकर पैसा कमा पाएं। इन हालतों के बारे में बांदा के किसान राम सिंह कहते हैं, “हम अपना कीमती समान गिरवी रखकर बीज और खाद के लिए पैसों का बंदोबस्त करते हैं। पर इसमें भी हमें आधे पैसे पुराने नोट में मिल रहे हैं और अब हम उन पुराने पैसों का क्या करें। जिसके कारण हम अब उधार के भरोसे भी नहीं रह सकते हैं।”
नोटबंदी से हर कोई प्रभावित है। जहां किसानों को खेतों में बोने के लिए बीज नहीं मिल रहा, वही छोटे कारोबारियों की दिन की कमाई भी कम हो गई है।
गरम कपड़ों का ठेला लगाने वाले कल्लू पहले 300 रुपये तक की कमाई एक दिन में कर लेते थे। पर अब तो वह 50 रुपये भी मुश्किल से कमा रहे हैं, क्योंकि नकदी की इस किल्लत में हर कोई सिर्फ जरूरत का समान ही खरीद रहा है। ऐसे में नए कपड़े लेने की कौन और क्यों सोचे।
कल्लू की तरह ही परचून की दुकानदार मुलिया कहती हैं, “पहले तो मैं चार हजार रुपये तक का समान बेच देती थी। पर अब तो सौ रुपये का ही माल बिक पा रहा है।”
ऑटो ड्राइवर पप्पू भी पहले हजार रुपये कमाता था और अब 200 रुपये ही कमा पा रहा है। वह अपनी कमाई में आए इस अंतर के चलते अपने खर्चे कम कर चुका है। वह कहता है, “पहले मैं आधा लीटर दूध खरीदता था, जो अब कम होकर 100 से 150 ग्राम हो गया है।”‘
बीज व्यापारी शिव मोहन गुप्ता व्यापार ठप होने की बात कहते हुए कहते हैं कि किसानों के पास नकदी नहीं और बिना नकदी के हम कितनों का उधार दे सकते हैं। आखिर हमें भी तो अपना घर चलाना है।
शहबाजपुर का नत्थू छह महीने से टीबी का इलाज करा रहा है। अब अपनी दवा खरीदने के लिए बैंकों की कतार में लगा है। वह कहता हैं, “दवा खरीदना बहुत जरूरी है क्योंकि टीबी में आप एक भी दिन बिन दवा खाए नहीं रह सकते हो।”
विमला को भी दवा और बच्चों के स्कूल फीस देने के लिए नकद पैसों की जरूरत है। पर नकदी संकट के कारण वह भी परेशान है। वह कहती हैं, “मैं आंगनबाड़ी कार्यकता हूं और मेरा वेतन बैंक में आता है। ऐसी स्थिति में बैंकों के सामने घंटों खड़े होने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई चारा नहीं हैं।”
नकदी नहीं होने के कारण लोगों के घरों में तीन वक्त का भोजन बनना भी मुश्किल हो रहा है। 40 साल की नूरजहां कहती हैं, “मेरे पास घर के नमक मिर्च तक खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, तो ऐसे में घर में कैसे खाना बनेगा? आप समझ सकते हैं।”
जुम्मी (52) के घर में तीन रोज की रोटी बिन सब्जी के खाई जा रही है। यहां भी वजह यही नोटबंदी है।
ग्रामीण बैंकों में कम पैसा होने के कारण लोगों का बैंकों के प्रति गुस्सा भी सातवें आसमान पर है। सावित्री (25) अपना पैसा बैंक से नहीं निकलने के कारण परेशान है। वह कहती हैं, “20 दिनों से बैंक के चक्कर काट रही हूं पर पैसा नहीं मिल पा रहा है।”
85 साल के बिहारी तीन दिनों से बैंक में पैसे लेने के लिए खड़े हो रहे थे पर पैसा चौथे दिन शाम के 4 बजे मिला। वह शिकायती लहजे में कहते हैं, “हमारी वहां कोई नहीं सुनता है। मैं सुबह तड़के ही बैंक के सामने खड़ा हो जाता था। फिर चार-पांच घंटे खड़े होने के बाद हमें पैसा नहीं होने की बात कह देते थे।”
छोटू बैंक वालों पर अमीर आदमी का काम जल्दी करने का आरोप लगाते हैं। वहीं नरैनी के रमाकांत मुकेरा बैंक मित्र के पास भी पैसे नहीं मिलने की बात कहते हैं।
दूसरी ओर बैंक कर्मचारियों के प्रति लोगों के गुस्से पर बैंक कर्मचारी उनके पास भी पर्याप्त पैसा नहीं होने के बात कहते हैं।
इलाहाबाद ग्रामीण बैंक के मैनेजर हरी नारायन दीक्षित कहते हैं, “हमारे बैंक के सामने 500 लोग खड़े होते हैं। अब इनमें से सौ लोगों को पैसा मिलेगा तो दूसरे लोग गुस्से में हम पर आरोप लगाएंगे ही।” वह लोगों की जरूरत पूरी करने के लिए 5 लाख रुपये की नकदी बैंक को उपलब्ध करने की बात कहते हैं।
गांवों में लोगों को नकदी की कमी के कारण बहुत परेशानियां हो रही हैं। पर इस सब के बवजूद नोटबंदी के समर्थन और विरोध पर लोगों की प्रतिक्रिया मिलीजुली है।
उत्तर प्रदेश
योगी सरकार कराएगी छात्रों की शैक्षिक क्षमता का मूल्यांकन
लखनऊ। योगी सरकार ने अब शिक्षा गुणवत्ता मापने की दिशा में एक अहम कदम उठाने का निर्णय लिया है। योगी सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को समझने और उसमें नीतिगत सुधारों के लिए आधार तैयार करने के लिए शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार और एनसीईआरटी के सहयोग से 4 दिसंबर को परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2024 का आयोजन कराने जा रही है। इसमें उत्तर प्रदेश में 9,715 चयनित विद्यालय शामिल हैं, जिनमें सरकारी, सहायता प्राप्त निजी विद्यालय, मदरसे और अन्य बोर्डों से मान्यता प्राप्त विद्यालय सम्मिलित हैं। बता दें कि यह सर्वेक्षण देशभर में शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धियों का मूल्यांकन करने के लिए आयोजित किया जाएगा।
इस स्तर के छात्रों का होगा मूल्यांकन
यह सर्वेक्षण प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धियों का आकलन करने के लिए किया जा जाएगा। सर्वेक्षण में कक्षा 3, 6 और 9 के छात्रों की उपलब्धियों को आंका जाएगा, जो सैंपल्ड विद्यालयों में किया जाना है।
ये हैं सर्वेक्षण के मुख्य बिंदु
कक्षा 3, 6 और 9 के लिए अलग-अलग विषयों को मूल्यांकन का आधार बनाया गया है। इनमें कक्षा 3 और कक्षा 6 के लिए भाषा, गणित और हमारे आस-पास की दुनिया तथा कक्षा 9 के लिए भाषा, गणित, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान विषय को सर्वेक्षण का मुख्य बिंदु बनाया गया है।
किया गया है दायित्वों का निर्धारण
परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण के सम्बन्ध में जनपद स्तरीय समन्वयक, डायट प्राचार्य एवं जिला विद्यालय निरीक्षक के दायित्व निर्धारित किये गये हैं। इनमें जनपद स्तरीय समन्वयक द्वारा सर्वेक्षण का क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण सम्बन्धी समस्त दायित्वों का निर्वहन किया जाना शामिल है। इसके अलावा जनपद स्तरीय सहायक समन्वयक/मास्टर ट्रेनर द्वारा फील्ड इन्वेस्टीगेटर (FI) का प्रशिक्षण निर्धारित समयावधि के अंतर्गत कराने की जिम्मेदारी दी गयी है। सर्वेक्षण का कार्य प्रशिक्षित फील्ड इन्वेस्टीगेटर (FI) से ही कराया जाना सुनिश्चित है।
इंवेस्टिगेटर के दायित्व हैं सुनिश्चित
फील्ड इंवेस्टिगेटर के दायित्व भी निश्चित हैं। असेंबली से पहले स्कूल पहुँच कर ये सम्बन्धित विद्यालय के प्रधानाचार्य मिलेंगे और परख गाइडलाइन के अनुसार सर्वेक्षण सम्बन्धी गतिविधियाँ आरम्भ करेंगे। इन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि अचीवमेन्ट टेस्ट पैकेट सीलबंद है और सील टूटी हुई नहीं है। सेक्शन और छात्रों की आवश्यकता अनुसार सैंपलिंग करेंगे और कन्ट्रोल शीट भरना भी इनकी जिम्मेदारी होगी।
हापुड़, मुजफ्फरनगर, सुल्तानपुर, मुरादाबाद और एटा डायट में होगा इन जिलों का प्रशिक्षण
एससीईआरटी लखनऊ के संयुक्त निदेशक पावन सचान ने बताया कि गाजियाबाद, शामली, अमेठी, सम्भल और कासगंज में डायट नहीं हैं। इस वजह से इन जिलों हेतु संदर्भित सर्वेक्षण से सम्बन्धित समस्त कार्य क्रमशः प्राचार्य, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान हापुड़, मुजफ्फरनगर, सुल्तानपुर, मुरादाबाद तथा एटा द्वारा सुनिश्चित कराये जायेंगे।
बच्चों की समझ और प्रदर्शन का होगा आकलन: संदीप सिंह
बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह ने बताया कि इस सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश के कक्षा 3, 6 और 9 के छात्रों की भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में समझ और प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा। इससे न केवल छात्रों की वास्तविक शैक्षिक क्षमता का मूल्यांकन हो सकेगा बल्कि शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में ठोस कदम भी उठाये जा सकेंगे। यह प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता और गोपनीयता के साथ सुनिश्चित की जाएगी।
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