आध्यात्म
ब्रह्म का आनन्द चेतन है
यह ब्रह्म रस रूप में आस्वाद्य एवं आस्वादक दोनों है। पूर्व में बता चुके हैं कि ब्रह्म में अनन्त स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं। अतः स्वाभाविक शक्तियों से युक्त आनन्द ही ब्रह्म है। आनन्द विशेष्य है एवं शक्ति विशेषण है। विशेषण अपने विशेष्य को वैशिष्ट्य प्रदान करता है। अर्थात् शक्ति रूपी विशेषण, आनन्द रूप विशेष्य को विशिष्टता प्रदान करने वाला है। ब्रह्म का आनन्द चेतन है। जगत् के आनन्द के समान जड़ एवं क्षणिक नहीं है।
जिस रस का आस्वादन स्वयं श्रीकृष्ण करते हैं उसे स्वरूपानन्द कहा जाता है। सारांश यह कि श्रीकृष्ण, अपनी स्वरूप शक्ति के द्वारा अपने माधुर्य रस का भोग करते हैं।
जिसमें भक्तों द्वारा विशेष माधुर्य का आस्वादन करते हैं । उसे स्वरूप शक् त्यानन्द कहा जाता है । स्वरूप शक् त्यानन्द (भक्तों द्वारा प्राप्त माधुर्य रस) भी दो प्रकार का होता है ।
यथा- 1- ऐश्वर्यानन्द- इसमें ऐश् वर्य रस प्रधान है। माधुर्य गौण है। 2- मानसानन्द- इसमें माधुर्य ही माधुर्य ओतप्रोत है । इनमें स्वरूपानन्द से सरस ऐश्वर्यानन्द (भक्तों द्वारा प्राप्त) एवं उससे भी सरस मानसानन्द है। यही ब्रजरस कहा जात है। यही सर्वश्रेष्ठ है ।
ऐश्वर्य शिथिल प्रेमे नहे मोर प्रीत। (चै.)
ब्रजरस में ऐश्वर्य गुप्त रूप से ही सेवा करता है। प्रत्यक्ष नहीं आता है। यह ब्रजलीला नर लीला कहलाती है।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
ब्रह्म एक मधु रूप है, एक भ्रमर उनमान ।
एक रूप रस देत है, एक आपु कर पान ।।52 ।।
भवार्थ- रस रूप ब्रह्म के 2 स्वरूप होते हैं । एक रस रूप । दूसरा रसिक रूप । अथ्र्ज्ञात् एक मधु के समान । दूसरा भौरें के समान । एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं । दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं ।
व्याख्या- वेद कहता है। यथा-
रसो वै सः। रसँ ह्येवायं लब् ध्वाऽऽनन्दी भवति।
(तैत्तिरीयो. 2-7)
यह रस रूप ब्रह्म 2 अर्थ वाला है।
1- रस्यते इति रसः 2- रसयति इति रसः।
1- जिसका आस्वादन किया जाय। जैसे मधु।
2- जो रस का आस्वादन करता है। जैसे भ्रमर।
रस शास्त्र में विशेष उत्कर्ष ज्ञापक अर्थ में ही रस शब्द का प्रयोग हुआ है । विशेष विलक्षण चमत्कारित्व को ही रस का प्राण माना है । चमत्कारित्व का स्वरूप यह है कि रस का आस्वादन करने में बहिरंग ( हाथ पैर आदि ) एवं अंतरंग (मनबुद्धि) इन्द्रियाँ दोनों का कार्य स्तंभित हो जाय। दूसरे विषय में ज्ञान-रहित हो जाय। वही रस है ।
अतः जिस वस्तु में नित नवायमान रस का अनुभव हो । तथा जिसके अनुभव में प्रतिक्षण ऐसा लगे कि ऐसा अपूर्व माधुर्य इसके पूर्व कभी अनुभव में नहीं ।आया तथा उस रस से कभी मन भरे । प्रतिक्षण प्यास बढ़ती जाय । यह आस्वाद्य रस है यथा-
आली रस की रीति निराली प्याली भरे न खाली होय ।
आध्यात्म
महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई
लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।
महापर्व 'छठ' पर हमरे ओर से आप सब माता-बहिन आ पूरा भोजपुरी समाज के लोगन के बहुत-बहुत मंगलकामना…
जय जय छठी मइया! pic.twitter.com/KR2lpcamdO
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 7, 2024
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