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भाजपा के लिए शानदार, कांग्रेस के लिए बुरा सपना 

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नई दिल्ली| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह साल जहां खुशियों की कई सौगातें लाया, वहीं कांग्रेस के लिए यह एक बुरे स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं रहा।

भाजपा 10 साल तक विपक्ष में रहने के बाद इस साल हुए आम चुनाव में जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही। बीते 30 सालों में पहली बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला।

लोकसभा चुनाव में तो कई पार्टियां अपना खाता खोलने में भी कामयाब नहीं हो पाईं। भाजपा हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड में भी सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही, वहीं जम्मू एवं कश्मीर में यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।

लेकिन, चांद पर दाग की तरह दक्षिणपंथी हिंदू समूहों की गतिविधियों ने मोदी के सुशासन के एजेंडे की मिट्टी-पलीद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

कुल मिलाकर साल 2014 कई मामलों में असाधारण रहा। भारत में सर्वाधिक समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले तीसरे व्यक्ति मनमोहन सिंह को 10 साल बाद हार के बाद सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

उधर, अरविंद केजवरीवाल के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी ने जन लोकपाल विधेयक पर समर्थन न मिलने के कारण दिल्ली की गद्दी छोड़ी, जिसे बाद में केजरीवाल ने ‘भूल’ बताया। भ्रष्टाचार के एक मामले में विधानसभा की सदस्यता गंवाने वाली तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे.जयललिता पहली मुख्यमंत्री बनीं।

कुल मिलाकर 2014 में मोदी भारतीय राजनीति के नायक रहे। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा के भाग्य को इस कदर बदला कि बाकी पार्टियां सीटों के लिए तरसती रह गईं।

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के चुनाव अभियान को बखूबी संभाला, जिसकी बदौलत पार्टी हरियाणा, महाराष्ट्र तथा झारखंड में विजय ध्वज फहराने में कामयाब रही। वहीं कश्मीर में पार्टी सत्ता की दहलीज पर खड़ी है।

इस दौरान विपक्ष ने भाजपा द्वारा वादे पूरे न करने को लेकर उसपर निशाना साधा, लेकिन मोदी के राजनीतिक रथ के रफ्तार में कोई फर्क नहीं पड़ा।

आनेवाले समय में दिल्ली तथा बिहार में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा के लिए चुनौतियां सामने आने वाली हैं। सरकार से उम्मीद होगी कि वह विदेशों से काले धन को वापस लाने के वादे को पूरा करने का प्रयास करेगी। और यह तभी दिखेगा, जब मोदी धर्मातरण मामले पर हिंदू समूहों की गतिविधियों पर रोक लगाएंगे।

गुजरात में साल 2002 में हुए गोधरा दंगा मामले में उनकी आलोचनाएं करने वाले आलोचक भी उनके नेतृत्व में भाजपा का महाविजय देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

संसद में पहले दिन मोदी ने सदन के मुख्य द्वार पर मस्तक टेका, जिसकी काफी चर्चा हुई।

बाद में उन्होंने नौकरशाही में नई जान फूंकी तथा फैसले लेने में तेजी लाई। उन्होंने विदेश संबंधों को खासा तवज्जो दिया और इसमें उल्लेखनीय प्रगति की।

मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसे कई उल्लेखनीय अभियानों को हरी झंडी दिखाई। आर्थिक सुधारों में प्रगति के लिए सरकार ने कई अध्यादेश जारी किए।

अन्य प्रधानमंत्रियों से अलग मोदी ने लोगों से संवाद करने के लिए रेडियो वार्ता, सोशल मीडिया तथा आधिकारिक पोर्टलों का सहारा लिया।

आम चुनावों में जहां भाजपा ने 282 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की, वहीं कांग्रेस को मात्र 44 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि क्षेत्रीय पार्टियों पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) तथा तमिलनाडु में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने भाजपा के विजयरथ को रोक दिया।

भाजपा की एक के बाद एक जीत के कारण स्थिति यह हो गई कि पुराने जनता परिवार को फिर से एकजुट होने को मजबूर होना पड़ा। जनता दल (युनाइटेड), जनता दल (सेक्युलर), समाजवादी पार्टी तथा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) आपस में विलय कर एक पार्टी बनाने को लेकर प्रयासरत हैं।

लेकिन भाजपा पूरी तरह आश्वस्त है और उसने 2014 के अंत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित मदनमोहन मालवीय को देश का सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न देने की घोषणा की।

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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग

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नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।

विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।

चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।

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