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भाजपा को चुभी गठबंधन की फांस

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पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार, जम्मू-कश्मीर के सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद, अलगाववादी नेता मसरत आलम, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती

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नितिन गोपाल

जम्‍मू–कश्‍मीर। कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार अपने गठन के एक पखवाड़े के भीतर ही संकट में घिरती नजर आ रही है। पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जम्मू-कश्मीर के सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद द्वारा पाकिस्तान और आतंकियों की प्रशंसा से उठा शोर अभी थमा भी नहीं था कि मुफ्ती ने दूसरा धमाका कर दिया। इस बार उन्होंने अपना पिछला रिकॉर्ड खुद ही ध्वस्त कर दिया और बयानबाजी से आगे बढ़ते हुए अलगाववादी नेता मसरत आलम को जेल से रिहा कर दिया। मुफ्ती के इस कदम के क्या मायने हैं इसे जानने के लिए मसरत के बारे में जानना बेहद जरूरी है। कश्मीर मुस्लिम लीग का प्रमुख मसरत आलम वर्ष 2010 में घाटी में हुए राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों का मुख्य आरोपी था।

पुलिस ने उस पर 10 लाख का इनाम भी घोषित किया था। उसे पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया था। इन राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों में 120 लोगों की मौत हुई थी। आलम को आखिरी बार 19 जून 2014 को दबोचा गया था। उस पर छह बार पीएसए लग चुका है।

मुफ्ती ने अपनी गठबंधन सहयोगी भाजपा को न तो इस निर्णय की जानकारी दी और न ही उसके आला नेताओं को विश्वास में लिया। और तो और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता का बचाव करते हुए साफ कहा कि मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि भाजपा-पीडीपी गठबंधन कितने समय तक चलता है। चिंता इस बात की है कि हमने जो न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) रियासत के विकास के लिए बनाया है, उस पर कितना अमल होता है।

वहीं भाजपा हमेशा से मसरत की रिहाई की प्रबल विरोधी है। प्रदेश भाजपा ने इस निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि हमने पीडीपी के साथ राज्य के विकास के मुद्दे पर गठबंधन किया है। हम ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जो प्रदेश या प्रदेश की जनता के हित में न हो। वैसे भी धारा 370, सैन्य विशेषाधिकार जैसे कई मुद्दों को पर उसका पीडीपी से मतविभेद है लेकिन घाटी में पहली बार सरकार बनाने की राह में उसने इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मसरत की रिहाई के बाद इन मुद्दों के उखड़ने की पूरी आशंका है।

भाजपा के लिए इधर कुआं, उधर खाई जैसी स्थिति है। खुद को राष्ट्रवादी कहने वाली भाजपा अगर अब चुप रहती है तो विपक्षी दल उस पर सवाल उठाएंगे। उसके अपने समर्थकों का भी मोहभंग हो सकता है। इसके विपरीत अगर वह कड़ा विरोध करते हुए सरकार से हाथ खींचती है तो उसे दोबारा चुनाव की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी पराजय के बाद भाजपा इतनी जल्दी ये जोखिम उठाने के पक्ष में निश्चित ही नहीं होगी। दूसरा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में चुनाव का समय भी बहुत दूर नहीं है। ऐसे में गेंद अब भाजपा के पाले में है और देखना यह है कि मुफ्ती के इस दांव पर क्या पैंतरा आजमाएगी।

 

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग का प्रस्ताव- पुरुष दर्जी नहीं ले सकेंगे महिलाओं की माप, जिम में महिला ट्रेनर जरुरी

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लखनऊ। अगर आप महिला हैं तो ये खबर आपके लिए है। दरअसल, यूपी में महिलाओं की सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए उ.प्र. राज्य महिला आयोग ने कुछ अहम फैसले लिए हैं जिसे जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी हैं। शुक्रवार को आयोग की बैठक सम्पन्न हुई। इस दौरान महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई अहम फैसले लिए गए। जो की इस प्रकार हैं।

1- महिला जिम/योगा सेन्टर में, महिला ट्रेनर होना चाहिए तथा ट्रेनर एवं महिला जिम का सत्यापन अवश्य करा लिया जाये।

2-महिला जिम/योगा सेन्टर में प्रवेश के समय अभ्यर्थी के आधार कार्ड/निर्वाचन कार्ड जैसे पहचान पत्र से सत्यापन कर उसकी छायाप्रति सुरक्षित रखी जाये।

3- महिला जिम/योगा सेन्टर में डी.वी.आर. सहित सी.सी.टी.वी. सक्रिय दशा में होना अनिवार्य है।

4. विद्यालय के बस में महिला सुरक्षाकर्मी अथवा महिला टीचर का होना अनिवार्य है।

5. नाट्य कला केन्द्रों में महिला डांस टीचर एवं डी.वी.आर सहित सक्रिय दशा में सी.सी.टी.वी. का होना अनिवार्य है।

6. बुटीक सेन्टरों पर कपड़ों की नाप लेने हेतु महिला टेलर एवं सक्रिय सी.सी.टी.वी. का होना अनिवार्य है।

7. जनपद की सभी शिक्षण संस्थाओं का सत्यापन होना चाहिये।

8. कोचिंग सेन्टरों पर सक्रिय सी.सी.टी.वी. एवं वाशरूम आदि की व्यवस्था अनिवार्य है।

9. महिलाओं से सम्बन्धित वस्त्र आदि की ब्रिकी की दुकानों पर महिला कर्मचारी का होना अनिवार्य है।

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