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मुख्य समाचार

‘भारत के लिए असफल रहा लीमा सम्मेलन’

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नई दिल्ली| दक्षिण अमेरिकी देश पेरू की राजधानी लीमा में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए हुई बैठक का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका, विशेषकर भारत जैसे कम विकसित देशों के लिए यह बैठक कोई प्रभावी समाधान देने में असफल रहा।

विकसित और विकासशील देशों के बीच जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से पिछले सप्ताह संपन्न हुई इस बैठक पर नजर रखने वाले लोगों ने कहा कि बैठक के नतीजे विकसित और भारत जैसे विकासशील देशों के बीच अंतर को धीरे-धीरे पाटने वाला साबित होगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि इसका कारण यह है कि धनवान देशों के हित में वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित समझौते के मूल सिद्धांतों का कमजोर होना है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और पर्यावरण सलाहकार श्रीकांत गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, “लीमा में हुई बैठक पूर्व की ही भांति धनवान और गरीब देशों के बीच की खाई को रेखांकित करने वाली रही।”

विशेषज्ञों के अनुसार, लीमा सम्मेलन का विरोधाभास विभिन्न देशों के लिए समान लेकिन पृथक जिम्मेदारियों में कमी लाना है।

वास्तव में इसकी शुरुआत 1992 में जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण रखने के लिए तैयार संयुक्त राष्ट्र संधि प्रारूप से हुई। यह संधि प्रारूप दो मुख्य तथ्यों पर आधारित था-पहला धनवान और गरीब देशों के बीच अंतर को चिह्न्ति करना और दूसरा धनवान देशों द्वारा उनके यहां विकास और समस्या को जटिल बनाने में उनके योगदान के आधार पर नियंत्रण में भी अहम योगदान देना।

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के उप निदेशक चंद्र भूषण ने आईएएनएस से कहा, “लीमा सम्मेलन में इसमें तीसरे बिंदु ‘राष्ट्रीय परिस्थितियों’ को भी जोड़ दिया गया, जबकि यह सम्मेलन विकासशील देशों की सीमित क्षमता को देखते हुए जिम्मेदारी तय करने पर केंद्रित था।”

भूषण ने स्पष्ट किया, “राष्ट्रीय परिस्थितियों को लेकर विकसित और विकासशील देशों को एक ही सतह पर रख दिया गया। इस आधार पर विकसित देश जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए पहल करने या न करने के पीछे आर्थिक मंदी या इसी तरह की दूसरी परिस्थितियों का हवाला दे सकेंगे।”

दिल्ली विज्ञान मंच के लिए काम करने वाले पर्यावरणविद् रघुनंदन ने कहा कि भारत को बाहरी समीक्षा से डरने की जरूरत नहीं है।

प्रदूषण करने वाले दुनिया के चौथे देश के रूप में भारत वायुमंडल में अपेक्षाकृत बहुत कम कार्बन उत्सर्जित करता है। भारत अपने यहां विकास के लिए मजबूरी में उठाए जा रहे कदमों और गरीबी उन्मूलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए अपने योगदान के स्तर का बचाव अच्छी तरह कर सकता है।

इन सबके बीच हालांकि कुछ सकारात्मक बातें भी निकलकर आई हैं।

संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व निदेशक राजेंद्र शेंडे ने कहा कि लीमा में सबकुछ खराब ही नहीं रहा।

शेंडे ने पुणे से फोन पर आईएएनएस से कहा, “भारत पृथक-पृथक लेकिन समान जिम्मेदारियों का मुद्दा बनाए रखने में सफल रहा। इस मुद्दे पर अगले वर्ष होने वाली चर्चा के दौरान भी चर्चा होगी।”

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‘एक केजीबीवी, एक खेल’ योजना से 82,120 बालिकाओं को खेल में निपुण बनाएगी योगी सरकार

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों में पढ़ने वाली 82,120 बालिकाओं की खेल प्रतिभाओं को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का प्रयास तेज कर दिया है। सरकार इस उद्देश्य को ‘एक केजीबीवी, एक खेल’ योजना लागू कर साकार करेगी।

बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री संदीप सिंह के नेतृत्व में इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक विद्यालय में एक विशेष खेल का चयन किया जाएगा, जिसमें छात्राओं को विशेषज्ञ प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस योजना से बालिकाएं खेल में निपुण होने के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास भी प्राप्त करेंगी, जिससे वे समाज में एक सशक्त पहचान बना सकेंगी।

उत्तर प्रदेश के कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों (केजीबीवी) में बालिकाओं की खेल प्रतिभा को निखारने और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर उभारने के उद्देश्य से ‘एक केजीबीवी, एक खेल’ योजना लागू की गई है। इस योजना का उद्देश्य पिछड़े और वंचित समुदायों की बालिकाओं को खेल के क्षेत्र में विशेष कौशल प्रदान करना है। इसके अंतर्गत प्रत्येक विद्यालय में एक विशेष खेल का चयन किया जाएगा, जिसमें छात्राओं को खेल विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा। यह योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रत्येक जनपद के दो केजीबीवी में आरंभ की जाएगी और सफल होने पर इसे अन्य विद्यालयों में भी विस्तार दिया जाएगा।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है उद्देश्य इस योजना का मुख्य उद्देश्य केजीबीवी में अध्ययनरत 82,120 छात्राओं को खेलों में प्रशिक्षित कर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है। यह योजना छात्राओं को न केवल खेल किट और आधारभूत प्रशिक्षण प्रदान करेगी, बल्कि विभिन्न प्रतियोगिताओं में जनपद और राज्य स्तर पर चयनित करने की प्रक्रिया भी सुनिश्चित करेगी।

विद्यालय में खेल का चयन ऐसे होगा

प्रत्येक विद्यालय में एक खेल समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें वार्डन, व्यायाम शिक्षिका, खेल प्रभारी और दो खिलाड़ी छात्राएं होंगी। यह समिति छात्राओं की रुचि और उपलब्ध संसाधनों के आधार पर एक खेल का चयन करेगी। चयनित खेल में प्रशिक्षण देने के लिए योग्य महिला प्रशिक्षक नियुक्त की जाएगी। आवश्यकतानुसार, बाहरी खेल प्रशिक्षकों की सहायता भी ली जा सकेगी।

विशेष प्रशिक्षण और स्वास्थ्य पर रहेगा विशेष ध्यान

योजना के अंतर्गत, खेल गतिविधियों के संचालन के लिए एक निर्धारित समय सारिणी होगी, जिसमें प्रशिक्षक छात्राओं को खेल की बारीकियां सिखाएंगे। बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, जिसमें छात्राओं को आहार, पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाएगा। बालिकाओं का स्वास्थ्य परीक्षण भी समय-समय पर किया जाएगा।

समाज और विभागीय सहयोग लिया जाएगा

पूर्व राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को भी बुलाकर छात्राओं को प्रेरित किया जाएगा। उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली बालिकाओं को स्थानीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जाएगा। इसके अलावा, विद्यालयों में खेल प्रतियोगिताओं के दौरान सम्मानित नागरिकों और विभागीय अधिकारियों को आमंत्रित कर छात्राओं का उत्साहवर्धन किया जाएगा।

खेल संघों और कॉर्पोरेट समूहों से भी लिया जाएगा सहयोग

योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खेल संघों के साथ कॉर्पोरेट समूहों से भी सहयोग लिया जाएगा। कॉर्पोरेट समूहों की मदद से छात्राओं के लिए आवश्यक खेल सामग्री और अन्य सुविधाएं बेहतर तरीके से उपलब्ध कराई जाएंगी।

बालिकाओं का विशेष स्थानांतरण और अभिभावकों की ली जाएगी सहमति

चयनित छात्राओं को विशेष खेल प्रशिक्षण देने के लिए तीन महीने तक नोडल केजीबीवी में रखा जाएगा। इस दौरान उनके रहने, खाने और प्रशिक्षण की पूरी व्यवस्था होगी। इसके बाद, छात्राओं को उनके मूल केजीबीवी में वापस भेज दिया जाएगा। छात्राओं के स्थानांतरण से पूर्व उनके अभिभावकों से सहमति ली जाएगी।

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