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भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा सुधारों की फौरन जरूरत
भारत का शक्ति हासिल करना उसके परमाणु शस्त्रागार पर आधारित है। देश के पास हथियारों से लैस 15 लाख कर्मियों और 60 अरब डॉलर के रक्षा खर्च सहित आधुनिक, लेकिन कम साजो-सामान से लैस सेना है। यही वजह है कि भारत डर पैदा करना तो दूर, अपने एशियाई पड़ोस में सम्मान हासिल करने में भी नाकाम है।
‘द इकोनोमिस्ट वीकली’ ने 2013 में एक लेख ‘कैन इंडिया बिकम ए ग्रेट पावर’ में इसके कारण की व्याख्या करते हुए लिखा था, भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है, फिर भी उसके राजनीतिक वर्ग को यह जानकारी नहीं है या यह वह इसकी परवाह नहीं करता कि देश की सैन्य क्षमता को किस तरह प्रदर्शित करना चाहिए।
भारत को एक अस्थिर, लेकिन खतरनाक पड़ोसी देश पाकिस्तान और और डींगें हांकते और धमकाते चीन के प्रति आगाह करते हुए लेख में लिखा गया था, असैन्य संचालित मंत्रालयों और सशस्त्र बलों के बीच रणनीतिक संस्कृति की कमी और अविश्वास ने सैन्य प्रभावशीलता को कम कर दिया है।
ऐसी टिप्पणियों को भारत में आमतौर पर भारत के खिलाफ पश्चिमी भेदभाव कहकर खारिज कर दिया जाता है। हालांकि, ब्रिटिश पत्रिका में वही दोहराया गया था, जो भारतीय विश्लेषक दशकों से कहते रहे हैं।
पड़ोसी देशों से भारत के बिगड़ते रिश्तों के चलते हमें ‘कारण और प्रभाव’ के संबंध पर गौर करना होगा। जैसे कि उदाहरण के तौर पर छोटे और कमजोर पाकिस्तान ने किस तरह तीन दशकों से सशस्त्र आतंकवादियों को हमारी सीमा में घुसपैठ कराकर मौत और विध्वंस का तांडव जारी रखे हुए है। पाकिस्तान किस तरह बेखौफ होकर कश्मीर घाटी में तनाव कायम किए रखता है।
चीन के मामले में बात करें तो, 1993 से 2013 के बीच कई द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और आत्मविश्वास कायम करने के कदमों को लेकर हमारे कूटनीतिज्ञों के खुशी मनाने के बावजूद, क्या है जो चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को वास्तविक नियंत्रण रेखा का बार-बार उल्लंघन करके उकसाने को प्रेरित करता है।
मौजूदा डोकलाम विवाद के मामले में क्या है जो चीनी अधिकारियों और साथ ही मीडिया को भारत को धमकाने के प्रयास में अशिष्ट रुख अपनाने की छूट देता है?
जंगल के कानून की तरह ही अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी कमजोरी की अवधारणा बेईमान प्रतिद्वंद्वियों की हिंसक प्रवृत्ति को भड़का सकती है। क्या भारत ने अपने परमाणु शस्त्रागार, सैन्य ताकत और आर्थिक और जनसांख्यिकीय शक्तियों के बावजूद अपने विरोधियों के सामने अपनी एक कमजोर, संकोची और ढुलमुल छवि पेश नहीं की है? और क्या इसने उन्हें युद्ध चाहने वाले साहस और अस्थिरता के लिए नहीं उकसाया है?
अगर ऐसा है, तो यह निरंतर राजनीतिक उपेक्षा की नाकामी है, जिससे हमारे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा स्थिति की विश्वसनीयता को कमजोर कर दिया है। कई क्षेत्रों में उपेक्षा हो रही है, मैं इनमें से केवल तीन की बात करता हूं।
एक, भारत के उच्च रक्षा संगठन के शीर्ष रैंक का अधिकारी ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी’ का अध्यक्ष होता है, जिसकी परमाणु कमांड चेन में भी प्रमुख भूमिका होती है। वर्तमान में यह अंशकालिक पद है, जिस पर बारी बारी से तीनों सेवाओं के प्रमुख होते हैं।
अनुभव बताते हैं कि यह बेहद बेकार और अप्रभावी मॉडल है। विभिन्न सरकारें बार-बार की गई सिफारिशों को नजरअंदाज कर कि इस पद को स्थायी बना दिया जाना चाहिए या फिर इस पर रक्षा स्टाफ के किसी प्रमुख को होना चाहिए, इसी प्रणाली को ही अपनाती रही हैं।
दूसरी बात, अमेरिका अपने बलों को दुनियाभर में छह संयुक्त सैन्य कमांड्स के जरिए संचालित करता है, जबकि चीन ने 2014 में अपने बलों को पांच भौगोलिक कमानों में पुनर्गठित किया था, जिनमें प्रत्येक में नौसेना, वायुसेना और थलसेना के एकीकृत घटक थे।
भारतीय सेना इसके विपरीत द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वाले ढांचे में ही, 19 कमनों में गठित है, जिनमें से केवल दो ही संयुक्त और शेष 17 एकल सेवाएं हैं। इनमें कोई भी दो मुख्यालय एक ही स्थान पर नहीं हैं।
भारत की सुधारों को लागू करने और सेवाओं को एकीकृत करने में नाकामी का अर्थ है कि हमारे जवान उस तालमेल और प्रभावशाली ढंग से मुकाबला करने की क्षमता से वंचित रह जाते हैं, जो हर आधुनिक सेना को साझेदारी से मिली है।
सबसे अंतिम मुद्दा, जो भारत की सुरक्षा की विश्वसनीयता को कमजोर करता है, वह है सैन्य-असैन्य असंतोष और साउथ ब्लॉक की नौकरशाही का कामकाज, जिसके कारण सेना का आधुनिकीकरण अधर में लटका है।
वर्ष 2001 में तत्कालीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (वाजपेयी सरकार) के मंत्रियों के एक समूह ने राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे के पुर्नगठन की अनुशंसा की थी। एक दशक बाद, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (मनमोहन सरकार) को भी मंत्रिमंडल द्वारा गठित एक समिति से ऐसी ही सिफारिशें मिली थीं। पहली सिफारिशों को कृत्रिम रूप से लागू किया गया था और दूसरी सिफारिशें नौकरशाही के मुंह में समा गईं।
हालांकि, संसद ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले में बेहद कम ही उंगली उठाई है, चीन की सेना और पाकिस्तान भारतीय परिप्रेक्ष्य को पूरी गंभीरता से देखते हैं और हमारी उपेक्षा का पूरा लाभ उठाते हैं।
राष्ट्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर है, जिन्हें हर हाल में सुनिश्चित करना चाहिए कि रक्षा की जिम्मेदारी एक पूर्णकालिक रक्षामंत्री पर होनी चाहिए, रक्षा मंत्रालय के रूप में नौकरशाही पर नहीं।
अपने रक्षा प्रमुखों से मुलाकात पर मौजूदा प्रतिबंध हटाकर प्रधानमंत्री बेहतर सैन्य-असैन्य रिश्तों की आधारशिला रख सकते हैं और सही सैन्य सलाह और परामर्श हासिल कर सकते हैं।
कश्मीर और डोकलाम संकट दोनों ही सुरक्षा के लिए भारत की तैयारी और संकल्प को खतरे में डाल रहे हैं, खासतौर पर एक पूर्णकालिक रक्षामंत्री की गैर मौजूदगी में।
इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें दोनों मोर्चो पर विवाद के निर्णय की दिशा में काम करते हुए तटस्थ खड़े रहना होगा। यह समय है, जब हम भाग्य के भरोसे खड़े होना छोड़ें। हालांकि इसमें काफी देर हो चुकी है, लेकिन तत्काल प्रभाव से राष्ट्रीय सुरक्षा सुधार की पहल शुरू की जानी चाहिए।
(लेखक भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
नेशनल
पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।
स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,
एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ
कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी
डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।
On the move again, embarking on an exciting 4 nation book tour! 🇮🇳Looking forward to connecting with the vibrant Indian diaspora, celebrating India’s immense potential, and engaging in meaningful conversations. This journey is not just about a book; it’s about storytelling,… pic.twitter.com/dovNotUtOf
— Smriti Z Irani (@smritiirani) November 20, 2024
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