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मनोहर के सामने बोर्ड को पारदर्शी, भ्रष्टाचारमुक्त बनाने की चुनौती

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जयंत के. सिंह

नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के नए अध्यक्ष शशांक मनोहर को लो-प्रोफाइल रहना पसंद है। नामी वकील होने के बाद भी वह घड़ी नहीं पहनते और मोबाइल नहीं रखते। और तो और वह अपनी गाड़ी खुद ही चलाना पसंद करते हैं। अब देखने वाली बात यह है कि अपने चुनौतीपूर्ण दूसरे कार्यकाल में वह बोर्ड की गाड़ी किस तरह चला पाते हैं?

क्रिकेट जगत के सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन मनोहर को एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। विवादों और मीडिया से दूर रहने के लिए वह मोबइल फोन नहीं रखते और अगर बहुत जरूरी होता है तो वह अपनी पत्नी का फोन उपयोग में लाते हैं। दफ्तर के लैंडलाइन के अलावा बाहरी किसी व्यक्ति का फोन वह कभी उपयोग में नहीं लाते। मनोहर जिस पद पर आज बैठे हैं, उस पर बैठने वालों में आमतौर पर ये ‘गुण या फिर आदतें’ नहीं देखने को मिलतीं।

कई सालों तक खबरों से दूर रहने के बाद मनोहर रविवार को एक बार फिर खबरों में आए। 2008 से 2011 तक बोर्ड अध्यक्ष रहने के बाद वह एक बार फिर इस पद पर आसीन हुए। 2013 में जब बोर्ड आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी मामले से गुजर रहा था तब से लेकर जब भी बोर्ड पर संकट आया, इसका हित चाहने वालों ने मनोहर को शीर्ष पद पर आसीन करने की वकालत की।

महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल के पुत्र मनोहर (58) पहली बार 1990 में क्रिकेट प्रशासक के तौर पर सामने आए। वह उस साल विदर्भ क्रिकेट संघ (वीसीए) की प्रबंध समिति के सदस्य चुने गए। छह साल बाद वह वीसीए अध्यक्ष बने। वह इस पद पर बीसीसीआई अध्यक्ष बनने तक रहे। अपने इस कार्यकाल के दौरान मनोहर ने नागपुर के बाहर जामथा में नया और शानदार क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण किया और एक बेहतरीन क्रिकेट अकादमी भी तैयार कराई।

मनोहर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफार्म पर एन. श्रीनिवासन के साथ अपने सम्बंधों के कारण आए। इसी सम्बंध के कारण वह 2004 में बीसीसीआई उपाध्यक्ष चुने गए। अगले ही साल श्रीनिवासन कोषाध्यक्ष चुने गए। 2008 से 2011 तक मनोहर अध्यक्ष रहे और श्रीनिवासन ने सचिव की भूमिका सम्भाली। इस दौरान दोनों ने एक दूसरे की अहमियत तो समझा।

इस दौरान हालांकि बोर्ड ने मीडिया को पूरी तरह दरकिनार कर दिया। बीसीसीआई का कोई अधिकारी कभी कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं करता था। खिलाड़ियों के लिए कोई प्रेस इंटरव्यू जारी नहीं किया जाता था। चयनकर्ता मीडिया से बात नहीं कर सकते थे। इसका कारण सिर्फ यह था कि बोर्ड का मानना था कि मीडिया से बात करो या न करो, वह अपने मन का ही दिखाएगा और छापेगा, तो फिर ऐसे में मीडिया से बात करके क्या फायदा।

इसी दौरान इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का जन्म हुआ। श्रीनिवासन और मनोहर ने ललित मोदी के साथ मिलकर आईपीएल को करोड़ों डॉलर का इवेंट बना दिया और बीसीसीआई बेहद शक्तिशाली होकर उभरा। वह दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बन चुका था। वे तीन साल ऐसे थे, जिन्होंने भारतीय और विश्व क्रिकेट को बदल दिया। इसका नतीजा अब हमारे सामने है।

मनोहर ने 2011 में अध्यक्ष पद छोड़ा। उनके कार्यकाल के दौरान भी कई दिक्कतें थीं लेकिन वे तब तक सामने नहीं आईं। मोदी 18 महीनों तक बीसीसीआई के नियमों की धज्जियां उड़ाते रहे और मनोहर तथा श्रीनिवासन चुपचाप उसे देखते रहे। यहां मनोहर ने अपने क्रिकेट प्रशासक जीवन की सबसे बड़ी गलती की थी और रविवार को जिन समस्याओं की बात उन्होंने की थी, उनमें से आधे से अधिक उनकी इसी चुप्पी का नतीजा हैं।

मोदी की गलतियों पर चुप्पी साधना मनोहर के काबिल क्रिकेट प्रशासक और पूरी तरह ईमानदार होने पर सवाल खड़े करता है। इसके अलावा उनके कार्यकाल के दौरान जो भी फैसले लिए गए वे बोर्ड को काफी भारी पड़े। मोदी को 2010 में दरकिनार करने के बाद मनोहर के संकेतों पर किंग्स इलेवन और राजस्थान रॉयल्स को बर्खास्त किया गया। यह अलग बात है कि अदालत ने इन दो फ्रेंचाइजी टीमों को फिर से आईपीएल में खेलने की अनुमति दे दी।

इसी तरह कोच्चि टस्कर्स टीम को बर्खास्त करने का फैसला भी मनोहर के कार्यकाल में ही लिया गया था। वह फैसला अब शायद बोर्ड को वित्तीय लिहाज से भारी पड़ने वाला है। उसे टस्कर्स मालिकों को 550 करोड़ रुपये के साथ ही सालाना 18 प्रतिशत की दर से ब्याज देना पड़ सकता है।

यही नहीं, मनोहर के कार्यकाल में ही बोर्ड के संविधान में बदलाव किया गया और यह नियम लाया गया कि बीसीसीआई अधिकारी भी आईपीएल में पैसा लगा सकते हैं। उस समय मनोहर बोर्ड की संविधान विवेचना समिति के सदस्य थे। ऐसे में अगर मनोहर ने कई मौकों पर श्रीनिवासन पर ‘हितों के टकराव’ का आरोप लगाया है तो यह उन्हें शोभा नहीं देता।

कई सालों तक कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के बाद आज मनोहर और श्रीनिवासन एक दूसरे के सबसे बड़े आलोचक बने हुए हैं। यह बात कइयों को हजम नहीं होती लेकिन जो लोग मनोहर के साथ रहे हैं, उन्हें इसकी असलियत पता है। कहा जाता है कि 2013 के आईपीएल कांड के बाद मनोहर ने श्रीनिवासन की जमकर क्लास ली थी।

श्रीनिवासन द्वारा अपने दामाद गुरुनाथ मयप्पन को सट्टेबाजी के आरोपों से बचाने का प्रयास करना, उनके दो करीबियों-सचिव संजय जगदाले और कोषाध्यक्ष अजय शिर्के को रास नहीं आया और वे उनके खेमे से अलग होकर मनोहर के खेमे में आ गए। मनोहर ने उन्हें मन की बात सुनने की सलाह दी।

कहा जाता है कि उस समय श्रीनिवासन ने मनोहर से बात कर इस मसले पर राय चाही थी। मनोहर ने श्रीनिवासन से कहा था कि वह तत्काल प्रभाव से बीसीसीआई अध्यक्ष पद छोड़ दें और दोषी पाई गई दो टीमों को सजा दें। साथ ही साथ ही मनोहर ने श्रीनि को खुद को पाक-साफ साबित करने और मजबूती से पद पर लौटने की सलाह दी थी।

इस पर श्रीनि तैयार नहीं हुए और कहा कि वह यह उम्मीद कर रहे थे कि मुसीबत के समय में मनोहर के रूप में वह एक दोस्त से समर्थन प्राप्त करेंगे। ऐसे में मनोहर ने कहा था कि वह अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं कर सकते। इसके बाद दोनों के सम्बंध हमेशा के लिए समाप्त हो गए। 2013 से 2015 तक नागपुर में अपने परिजनों के साथ मीडिया की लाइमलाइट से दूर रहने के बाद मनोहर एक बार फिर अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं। बीते कुछ महीनों में सचिव अनुराग ठाकुर की देखरेख में बोर्ड ने काफी खुला रवैया दिखाया है। अब ऐसे में देखना यह है कि मनोहर बोर्ड की गाड़ी खुले दिल से चलाते हैं या फिर पुराने कार्यकाल की गलतियों को दोहराते हैं।

मनोहर ने बोर्ड को भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी बनाने के लिए दो महीने का समय मांगा है। सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करने वाले किसी व्यक्ति के लिए घोषित तमाम सुधारों को लागू करने के लिए दो महीने का वक्त बहुत होता है। अपनी गाड़ी खुद चलाने वाले मनोहर के सामने एक और चुनौती होगी और वह मरहूम जगमोहन डालमिया के स्थान को भरते हुए बोर्ड की गाड़ी को 2017 तक सही तरीके से चलाने की होगी, जिन्होंने कभी भी क्रिकेट की भलाई के इतर कुछ नहीं सोचा।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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