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मैगी प्रतिबंधित मगर तेल, अंडे, सब्जियां और दालें?

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अभीत सिंह सेठी

नई दिल्ली। दो मिनट में तैयार हो जाने वाली मैगी नूडल्स को भारत में खाद्य सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया है। लेकिन इस पर भी विचार करें कि मुंबई में बिकने वाला 64 प्रतिशत खुला तेल मिलावटी होता है। यह बात पिछले साल भारतीय उपभोक्ता मार्गदर्शक सोसाइटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई थी।

अध्ययन के दौरान तेलों के 291 नमूनों का परीक्षण किया गया, जिसमें तिल का तेल, नारियल का तेल, सोयाबीन का तेल, मूंगफली का तेल, सरसों का तेल, सूरजमुखी का तेल, बिनौला तेल इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा अनाज, दालों, सब्जियों, मूलों, कंदों में आर्सेनिक खतरनाक स्तर से अधिक पाया गया। इसी तरह 2013 में बड़ौदा के एमएस विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में अनाज, दही, और फलों में कैडमियम खतरनाक स्तर से अधिक पाया गया। ये दोनों धातुएं मनुष्य के लिए हानिकारक हैं।

दूसरी चीजों पर नजर डालें तो भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा 2013 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बरेली देहरादून, इज्जतनगर कस्बों में 28 प्रतिशत अंडे ईकोलाई से दूषित थे और पांच प्रतिशत मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी साल्मोनेला बैक्टीरिया से। इस तरह हम देख सकते हैं कि हम दूषित और मिलावटी भोज्य पदार्थो से घिरे हुए हैं, जो भारतीय सुरक्षा और पैकेजिंग मानकों को पूरा नहीं करते। हमने यहां भारतीय भोज्य पदार्थों पर हाल में किए गए अध्ययनों के सिर्फ एक नमूना भर पेश किया है।

फिर मैगी ही सुर्खियों में क्यों हैं? दरअसल, इसकी लोकप्रियता के कारण मैगी का मामला तेजी से जरूरत से ज्यादा उछला है, क्योंकि कई सारे राज्यों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसके चलते नेस्ले इंडिया अपने इस उत्पाद को भारतीय बाजारों से वापस ले रही है। नेस्ले इंडिया की ओर जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है, “उपभोक्ताओं का विश्वास और हमारे उत्पादों की सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। दुर्भाग्य से हाल के घटनाक्रम और निराधार चिंताओं के कारण उपभोक्ताओं में उत्पाद को लेकर थोड़ी हलचल है। इसलिए इतनी मात्रा में हमने इसे वापस लेने का फैसला किया है।”

वहीं, उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने कहा, “यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा से संबंधित है। इसलिए सरकार ने पहली बार उपभोक्ताओं की ओर से स्वत: संज्ञान लिया है।” यह कदम तब उठाया गया है, जब उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने इस उत्पाद के नमूनों का विश्लेषण करने के बाद पाया कि इसमें तय सीमा से तीन गुना अधिक सीसा मौजूद है। उत्तर प्रदेश की इस एजेंसी के निष्कर्षों के बाद कई राज्यों में भी मैगी का प्रशिक्षण किया गया। जिसके चलते राज्यों में सिर्फ मैगी को प्रतिबंधित ही नहीं किया गया, बल्कि नूडल्स के अन्य ब्रॉड पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

सीसा सिर्फ मैगी में ही नहीं, बल्कि घर के पेंट में भी मौजूद है। सीसा और अन्य कासिनोजेनिक भारी धातु दिल्ली और नागपुर में पालक से लेकर पश्चिम बंगाल में बैगन, टमाटर और बीन्स में भी आमतौर पर पाए गए हैं। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2011 के अनुसार, मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) को पास्ता और नूडल्स में नहीं मिलाया जाना चाहिए। इसी तरह ग्लूटामेट सबसे आम है जो स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाले गैर सुगंधित अमीनो एसिड में से एक है, जो टमाटर, पनीर, आलू, मशरूम और अन्य सब्जियों और फलों में पाया जाता है।

अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा एमएसजी को आमतौर पर सुरक्षित माना गया है। हालांकि भारत में यह हानिकारक माना जाता है। एमएसजी से पैदा होने वाली प्रमुख परेशानियों में मुंह, सिर और गले में जलन, सिर दर्द, हाथों-पैरों में कमजोरी, पेट की गड़बड़ी शामिल हैं। भारत में मैगी सर्वाधित लोकप्रिय नूडल्स में से एक है। लिहाजा इस मिलावट के खुलासे के बाद राष्ट्रव्यापी हंगामा भी जायज है। इसके साथ ही अन्य पदार्थों में भी मिलावट किया जा रहा है। इस तरह जहां उत्पाद सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, वहीं सरकारी एजेंसियां उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई भी कर रही हैं। खाद्य पदार्थो में मिलावट से संबंधित मामलों की संख्या 2011-12 में 764 से बढ़कर 1013-14 में 3,845 हो गई है। यानी 403 प्रतिशत की बढ़ोतरी। लेकिन क्या यह आंकड़ा पूरी तस्वीर प्रस्तुत करता है?

(इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ एक व्यवस्था के तहत। यह एक आकड़ा आधारित गैरलाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच है। अभिजीत सिंह सेठी एक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग

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नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।

विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।

चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।

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