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बिजनेस

यूरोपीय संघ का वीजा भारतीय कंपनियों के लिए सिरदर्द

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नई दिल्ली, 5 अक्टूबर। (आईएएनएस)| यूरोपीय संघ में सुचारु आवागमन के लिए भारतीय पेशेवरों की खातिर वीजा हासिल करना देश की कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है।

यह बात औद्योगिक संगठन फिक्की के ताजा सर्वे में सामने आई है। सर्वे के मुताबिक, क्या बदलाव की बयार भारतीय कंपनियों के लिए यूरोप में व्यापार करना आसान बनाएगी? फिलहाल भारत और यूरोपीय संघ विदेशी निवेश समझौता (फॉरेन ट्रेड एग्रीमेंट) करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया में है। यदि यह परवान चढ़ता है तो इससे दोनों के बीच परस्पर व्यापारिक बराबरी और संतुलन स्थापित होगा। भारतीय उद्योग जगत की निगाहें फिलहाल इस समझौते पर लगी हुई हैं।

सर्वे में पाया गया कि निवेश और सुधार की राह पर चल रही यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था से भारतीय कंपनियों के लिए वहां संभावनाएं बढ़ी हैं। वे वहां काफी रफ्तार से आगे बढ़ रही हैं। साथ ही उनके उत्पादों ने यूरोपीय बाजार में जगह बना ली है।

भारतीय कंपनियां आहिस्ता-आहिस्ता दुनिया के इस बेहद संगठित और तेज बाजार में पैर जमाने में कामयाब हुई हैं। उन्होंने अपनी क्षमता में विस्तार किया है। इसके अलावा ऐसी भारतीय कंपनियों की संख्या में इजाफा दर्ज किया गया है, जिन्होंने इस क्षेत्र में व्यापार करके अपने घाटे को कम किया है।

सर्वे के मुताबिक, देश की छोटी और मझौली इकाइयों ने भी यरोपीय कंपनियों के साथ व्यापारिक साझेदारी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। ऐसा तकनीक और संचालन विशेषज्ञता के आदान-प्रदान की बदौलत हो सका है। यूरोप में हो रहा आर्थिक सुधार भारतीय कंपनियों के हित में है। ऐसे में उन्हें क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को और मतबूत करना होगा।

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा स्थिति में तमाम औपचारिकताओं और व्यवधानों के चलते देश की कंपनियों को वहां पैर पसारने में दिक्कत आ रही है। इसके बावजूद वे वहां निवेश कर फायदे में हैं। भारतीय उद्यमी यूरोपीय कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर व्यापार करने को लेकर उत्साहित हैं। यह उनके ल्एि बेहद अहम है।

कहा गया है कि उन्हें यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर नीतिगत ढांचे की उम्मीद है, जिससे वहां व्यापार करना और मानवसंसाधन का आवागमन आसान हो।

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बिजनेस

जेट एयरवेज की संपत्तियों की होगी बिक्री

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश को रद्द करते हुए दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के अनुसार निष्क्रिय जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया। एनसीएलएटी ने पहले कॉरपोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के हिस्से के रूप में जालान कालरॉक कंसोर्टियम (जेकेसी) को एयरलाइन के स्वामित्व के हस्तांतरण को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि जेकेसी संकल्प का पालन करने में विफल रहा क्योंकि वह 150 करोड़ रुपये देने में विफल रहा, जो श्रमिकों के बकाया और अन्य आवश्यक लागतों के बीच हवाई अड्डे के बकाया को चुकाने के लिए 350 करोड़ रुपये की पहली राशि थी। नवीनतम निर्णय एयरलाइन के खुद को पुनर्जीवित करने के संघर्ष के अंत का प्रतीक है।

NCLT को लगाई फटकार

पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ एसबीआई तथा अन्य ऋणदाताओं की याचिका को स्वीकार कर लिया। याचिका में जेकेसी के पक्ष में जेट एयरवेज की समाधान योजना को बरकरार रखने के फैसले का विरोध किया गया है। न्यायालय ने कहा कि विमानन कंपनी का परिसमापन लेनदारों, श्रमिकों और अन्य हितधारकों के हित में है। परिसमापन की प्रक्रिया में कंपनी की संपत्तियों को बेचकर प्राप्त धन से ऋणों का भुगतान किया जाता है। पीठ ने एनसीएलएटी को, उसके फैसले के लिए फटकार भी लगाई।

शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया, जो उसे अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश तथा डिक्री जारी करने का अधिकार देता है। एनसीएलएटी ने बंद हो चुकी विमानन कंपनी की समाधान योजना को 12 मार्च को बरकरार रखा था और इसके स्वामित्व को जेकेसी को हस्तांतरित करने की मंजूरी दी थी। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और जेसी फ्लावर्स एसेट रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ अदालत का रुख किया था।

 

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