उत्तराखंड
राजनीति के बजाए मुक्केबाजी के विकास पर ध्यान देने की जरूरत : अजय सिंह
हरिद्वार| भारतीय मुक्केबाजी में पिछले चार साल से चली आ रही उथल पुथल भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के गठन के साथ समाप्त मानी जा रही है। इस नवगठित महासंघ की कमान अजय सिंह को मिली है। बीएफआई के अध्यक्ष और पेशे से व्यापारी अजय चाहते हैं कि भारतीय मुक्केबाजों का बीते वर्षों में जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई जल्द से जल्द की जा सके।उनकी कोशिश खिलाड़ियों को बेहतर से बेहतर सुविधाएं देने की है, ताकि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मुक्केबाजी की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस हासिल कर सकें।नवगठित महासंघ के झंडे तले यहां पांच साल बाद महिला चैम्पियनशिप का आयोजन कराया जा रहा है। इस मौके पर संवाददातओं से अजय ने कहा कि उनकी कोशिश भारतीय मुक्केबाजी को जल्द से जल्द पटरी पर लाने की है।
अजय ने कहा, “नई मुक्केबाजी संघ के लिए यह जरूरी था कि वह राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का आयोजन कराए, जिससे कि हम राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर के लिए मुक्केबाजों का चुनाव कर सकें। नेशनल चैम्पियनशिप खत्म होने के बाद हम खिलाड़ियों का चयन करेंगे, जो दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लेंगे। पुरुषों की नेशनल चैम्पियनशिप अगले महीने गुवाहाटी में कराई जाएगी। जूनियर और सब-जूनियर चैम्पियनशिप भी हम आयोजित कराएंगे। हम यह सब फरवरी तक समाप्त कर लेंगे।”
अजय ने बीते वर्षों में भारतीय मुक्केबाजी में घटे घटनाक्रम पर दुख जताया और कहा, “बीते चार वर्ष में जो भी हुआ है वह काफी दुख की बात है। हमारी राष्ट्रीय टीम देश के झंडे तले हिस्सा भी नहीं ले सकी। हमारी कोशिश यह है कि हम नेशनल चैम्पियनशिप कराएं, खिलाड़ियों को पहचानें और उनको सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षण दिलवाएं और राष्ट्रमंडल खेलों, एशियन खेलों तथा विश्व चैम्पियनशिप जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए उनको तैयार करें। भारतीय मुक्केबाजी के स्तर को ऊपर उठाने की जरूरत है। हम ‘सेंटर ऑफ एक्सिलेंस’ बनाने की सोच रहे हैं। हम अपने सभी आठ जोन में अकादमी स्थापित करने पर भी विचार कर रहे हैं।”
अजय ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की बात पर जोर दिया। उनका मानना है कि खेल के विकास के लिए जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत अपनी मौजूदगी दर्ज कराए।अजय ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय टूनार्मेंट में हिस्सा लेना जरूरी है। अंतर्राष्ट्रीय टीमों का यहां आना जरूरी है। बीतें चार वर्षों में जो कमियां रह गईं वह एकदम से ठीक नहीं होगीं, लेकिन हमारी कोशिश जल्द से जल्द सब कुछ सही करने की है।”
हाल ही में हुए बीएफआई के चुनावों में भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) ने अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) और अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) के कहने के बाद भी अपना पर्यवेक्षक नहीं भेजा था। हालांकि, अजय का कहना है कि आईओए भी जल्दी ही उन्हें मान्यता दे देगा।अजय ने कहा, “हमें एआईबीए ने मान्यता दी है। भारत सरकार ने हमें मान्यता दी है। आईओए ने एक समिति बनाई है हमारे बारे में विचार करने के लिए। एक-दो दिन में उनकी बैठक है। हमें आशा है कि वो भी हमें मान्यता देंगे। उनके पास कोई हमें मान्यता न देने का कोई कारण नहीं है। भारत सरकार, एआईबीए और उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की देखरेख में चुनाव हुआ है और इसमें 32 राज्य संघों ने हिस्सा लिया।”
मुक्केबाजी में हमेशा से क्षेत्रवाद बड़ी समास्या रहा है। इस पर अजय ने कहा, “यह बेहद गंभीर समस्या है। हमारी कोशिश है कि हम इसे पूरे देश का खेल मानकर व्यवहार करें, यह किसी एक राज्य के बारे में नहीं है।”अजय ने भारत में मुक्केबाजी लीग के आयोजन पर जोर देते हुए कहा, “हमें मुक्केबाजी लीग का आयोजन करने की जरूरत है। 2017 में इसका आयोजन होगा।”
खेल के विकास पर सभी का स्वागत करते हुए अजय ने कहा कि भारतीय मुक्केबाजी से जुड़े सभी लोगों को राजनीति को पीछे छोड़ खेल पर ध्यान देना चाहिए।उन्होंने कहा, “मुक्केबाजी के लिए यह जरूरी है कि सभी चीजें एक जगह हों। जो भी खेल का समर्थन करना चाहता है, मैं उनका स्वागत करता हूं लेकिन यह जरूरी है कि सभी चीजें एक ही छत के नीचे हों। सबसे पहले हमें खिलाड़ियों के हित के बारे में सोचना है। हमें इसके लिए राजनीति को पीछे रखना होगा।”
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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