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रेखा मेहरा के कथक संग नाचते हैं ज्वलंत मुद्दे

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नई दिल्ली, 13 मई (आईएएनएस)| दुनियाभर में अपनी नृत्य-प्रस्तुतियों से भारतीय कला की धाक जमा चुकीं कथक नृत्यांगना रेखा मेहरा कथक प्रेमियों को अपने नृत्य के माध्यम से केवल मंत्रमुग्ध ही नहीं करतीं, बल्कि मानती हैं कि नृत्य को समाज के ज्वलंत मुद्दों को सामने लाने के लिए एक बेहतर माध्यम के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है।

वह वंचित वर्ग के बच्चों के लिए एक संस्थान का संचालन भी करती हैं, जहां वर्तमान में कमजोर तबके के 300 बच्चों को इस कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

पारंपरिक और आधुनिक का समागम करते हुए कुशल नृत्यांगना रेखा अपनी इस कला के जरिए गंभीर मुद्दों को उठाती हैं।

रेखा ने आईएएनएस से साक्षात्कार में कहा, नृत्य कार्यक्रम दर्शकों को आकर्षित करते हैं और जब इस माध्यम को हमारे समाज की कटु सच्चाइयों को उजागर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह निश्चित तौर पर दिलों को छूता है और लोगों को काफी प्रभावित करता है। बाल यौन शोषण, कन्या भ्रूणहत्या, पर्यावरणीय समस्याएं, महिलाओं की स्थिति जैसे आज के समय के कई गंभीर मुद्दों को नृत्य के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से उठाया जा सकता है और लोगों को इनके प्रति संवदेनशील बनाया जा सकता है।

कथक नृत्यांगना ने बेहतर समाज की दिशा में अपने नृत्य के माध्यम से योगदान देते हुए एचआईवी-एड्स ‘निदान’, अतिथि देवो भव, अटल शक्ति की खोज में, वॉर एंड पीस (युद्ध और शांति), पर्यावरण की रक्षा के लिए धानी चुनरिया जैसे अनेक थीम के साथ कई प्रभावशाली और भावनात्मक नृत्य कोरियोग्राफ किए हैं। उनके ये प्रयास कितने प्रभावशाली रहे और क्या ये सचमुच जनमानस की भावनाओं को जागृत कर पाए?

जवाब में नृत्यगुरु ने कहा, मैंने जो नृत्य कार्यक्रम पेश किए, उनसे मैंने कई लोगों को प्रभावित होते देखा है। ये उनके दिलों को जितनी गहराई से छूते हैं, उतना कोई अन्य विज्ञापन या अन्य माध्यम नहीं छू सकते। हाल ही में कन्या भ्रूणहत्या के विषय पर प्रस्तुत मेरे नृत्य के दौरान मैंने देखा कि उस प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों को इतनी गहराई से छुआ था कि उनकी आंखें नम हो गई थीं।

रेखा मेहरा खजुराहो महोत्सव, महाकुंभ, लखनऊ महोत्सव, फेस्टिवल ऑफ इंडिया, शारजाह फेस्टिवल, मालदीव में आयोजित ओणम महोत्सव समेत देश और विदेश में कई महोत्सवों में प्रस्तुति दे चुकी हैं।

अपनी सशक्त भावनाओं के चलते रेखा मेहरा भी नृत्य के पारंपरिक और आधुनिक स्वरूप को लेकर वर्षो से चली आ रही बहस का हिस्सा बन गई हैं। वह कहती हैं कि उनकी नृत्य प्रस्तुतियां, हालांकि नृत्य के पारंपरिक सिद्धांतों पर गहराई से टिकी होती हैं, लेकिन साथ ही वे समाज को आईना भी दिखाती हैं और दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए जो प्रयास किए जाने की जरूरत है, उनके लिए जागरूकता पैदा करती हैं।

रेखा कहती हैं, मुझे नहीं लगता कि रचनात्मकता को ऐतिहासिक विरासत की सीमाओं में बांधकर रखा जाना चाहिए। मैं मानती हूं कि हमें अपने समृद्ध इतिहास को नहीं भूलना चाहिए। राधा-कृष्ण और शिव जैसे धार्मिक थीम्स पर आधारित नृत्य कार्यक्रम भी पेश किए जाने चाहिए, ताकि हमारी नई पीढ़ियां अपनी ऐतिहासिक विरासत और संस्कृति को भूल न जाएं।

मेहरा दिल्ली में उवर्शी डांस, म्यूजिक एंड कल्चरल सोसायटी चलाती हैं। उन्होंने कहा, हालांकि, बच्चों से दुष्कर्म, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण से जुड़े मुद्दे और ऐसे ही अन्य मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि कथक प्रस्तुति को पूरे प्रवाह में बहने दिया जाना चाहिए और बदलाव लाने देना चाहिए।

बॉलीवुड फिल्मों में जिस तरह का क्लासिकल डांस पेश किया जाता है, उसके बारे में क्या ख्याल है? इस सवाल पर प्रख्यात नृत्यांगना ने कहा, फिल्मों में नृत्य प्रस्तुतियां सच्चाई से परे, बढ़ा-चढ़ा कर पेश की जाती हैं। लोगों को फिल्मों में पेश किए जाने वाले नृत्यों में दिखाई जाने वाली खूबसूरत लाइटिंग, परिधान और अन्य चीजें आकर्षित करती हैं। इससे ये नृत्य दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो जाते हैं और सभी को क्लासिकल नृत्य की एक झलक मिल जाती है।

उन्होंने कहा, हालांकि, फिल्मों में नृत्य की केवल एक साधारण तस्वीर ही पेश की जाती है। नृत्य विधा का बुनियादी स्वरूप और उसकी बारिकियां इसमें पूरी तरह पेश नहीं की जातीं। वहीं, दूसरी ओर कई लाइव परफॉर्मर्स को ऐसे भव्य बैकड्रॉप्स, परिधान और ऐसी अन्य चीजों की सुविधा नहीं मिल पाती। दर्शक आमतौर पर इन प्रॉप्स से प्रभावित होते हैं और इस कारण लाइव परफॉर्मर्स उतनी ज्यादा भीड़ नहीं जुटा पाते।

भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर रेखा मेहरा ने कहा, फिलहाल मैं वंचित वर्ग के करीब 300 बच्चों के साथ काम कर रही हूं और पूरे भारत में कई नृत्य प्रस्तुतियों के माध्यम से उन्हें बढ़ावा देना चाहती हूं। इन कार्यक्रमों में मैं अपने देश की विभिन्न समस्याओं को उठाना चाहती हूं। मैं अपने दर्शकों को केवल शहरों तक ही सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी अपने कार्यक्रम पेश करना चाहती हूं, जहां लोगों ने कभी ऐसी प्रस्तुतियों का अनुभव न किया हो।

नृत्यगुरु ने बेहद सकारात्मक अंदाज में कहा, अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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