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रोज के जनमत से मजबूत होता लोकतंत्र
महान समाजवादी चिंतक डा.राममनोहर लोहिया के सूत्र वाक्य- जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती, का आज के भारत में प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। संसदीय लोकतंत्र में बहुमत का अपना महत्व है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी को मिले सहानुभूति के प्रचंड बहुमत को छोड़ दें तो 2014 में नरेंद्र मोदी को मिले भारी बहुमत की व्याख्या लोग अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं।
मेरे हिसाब से वर्तमान युग में बहुमत रोज के जनमत की कसौटी पर कसे जाने को बाध्य है। सोशल मीडिया जैसे सशक्त हथियार ने जनता के पास सरकारों को उनके काम के आधार पर प्रतिदिन जनमत की तुला में तोलने का मौका प्रदान किया है। किसी भी मुद्दे पर जनता के एक वर्ग की राय मिलना काफी आसान हो गया है हालांकि यह राय चुनावों के दौरान मतों में तब्दील होगी इसमें संदेह है लेकिन इन अभिमतों को सरकारें अपने कामकाज की कसौटी तो मान ही सकती हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब लोकतंत्र में जनता की आवाज ही सर्वोपरि है तो विभिन्न मुद्दों पर रोज मिलने वाली जनता की राय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मसलन यदि एसएमएस, ट्वीट, फेसबुक या सोशल मीडिया के किसी अन्य माध्यम से जनता से यह पूछा जाता है कि मोदी सरकार के एक वर्ष के कामकाज को आप क्या मानते हैं- बेहद सफल, सफल, औसत या बेकार। अब यदि देश के पचास हजार लोग इस क्विज में भाग लेते हैं और मोदी सरकार के कामकाज को 60 प्रतिशत लोग सफल बताते हैं, दस प्रतिशत लोग बेहद सफल, दस प्रतिशत लोग औसत और बीस प्रतिशत लोग बेकार कहते हैं तो सरकार में बैठे लोग कुछ संतोष तो कर ही सकते हैं। हालांकि यह बहुमत का पैमाना नहीं बन सकता लेकिन हवा का कुछ रूख तो बयां कर ही सकता है।
रोज के जनमत से सरकारें निरंतर जनता की निगरानी और जांच के दायरे में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस सोशल मीडिया को अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम बना रखा है उसी सोशल मीडिया से उनके कार्यों की निगरानी भी खूब हो रही है हालांकि मोदी यह कहते रहते हैं कि वे ऐसा ही चाहते थे।
लोकतंत्र अब पांच साल का पर्व नहीं रह गया है। भले ही औपचारिक रूप से सरकारें पांच साल में ही बदलती हों लेकिन जनमत उससे पूर्व ही बदलता दिख जाता है और यही बदलाव सरकारों को अच्छा काम करने के लिए मजबूर करेगा। अब कोई भी सरकार यह नहीं सोच सकती कि उसे जनता को पांच साल बाद हिसाब देना है। अब तो कार्यों का हिसाब जनता के बीच प्रतिदिन जा रहा है और हिसाब में कमजोर व्यक्ति जनता की अदालत में फेल हो जाएगा।
लोकसभा चुनावों के कैंपेन के दौरान मोदी ने एक चैनल की जनअदालत में एक सवाल के जवाब में कहा था कि मैं पक्का अहमदाबादी हूं, सिंगल फेयर में डबल जर्नी करता हूं, एक भी रूपया फालतू नहीं जाने देता। जनता ने उनकी इस अहमदाबादी सोच को बहुमत प्रदान किया और देश में मोदीराज की शुरूआत हुई एक साल बीत गया। अच्छे-बुरे कार्यों की समीक्षा लोग अपनी सोच, सुविधा और प्रतिबद्धता के हिसाब से कर रहे हैं लेकिन यह बात तो विरोधियों को भी माननी पड़ी कि मोदी ने इस एक साल में देश की जनता को निराश नहीं किया है। मोदी को डिलीवर करने का वक्त दिया जाना चाहिए। और फिर कसौटी तो जनता के हाथ में हैं ही, पांच साल बाद फिर कस लेंगे।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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