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लापरवाहियों की महागाथा है रेलवे हादसा

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रायबरेली के करीब बछरावां में भयावह ट्रेन हादसा रेलवे की असलियत को पूरी बेनकाब कर दिया है। एक तरफ तो देश में बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है तो दूसरी तरह बेकसूर यात्रियों की जान एक्सप्रेस ट्रेनों तक में सुरक्षित नहीं है। देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस ब्रेक फेल होने से जिस तरह दिल दहला देने वाले हादसे का शिकार बनी, वह रेलवे और अन्य सरकारी इंतजामों की कलई खोलने के लिए काफी है। ट्रेन के ब्रेक फेल होने के बाद इसे डेड एंड पर डाला गया लेकिन इंजन और उसके पीछे वाली बोगी आकस्मिक अवरोधक को तोड़ते हुए 36 जिंदगियों की बलि ले गई और डेढ़ सौ से अधिक लोग मौत से जंग लड़ने के लिए मजबूर हो गए। रेलवे ने तुरंत घटना के लिए ट्रेन के ड्राइवर को जिम्मेदार ठहराया लेकिन ड्राइवर ने कुछ और ही सच बताया। ड्राइवर का कहना है कि उसने एक-एक करके कई ब्रेक लगाने की कोशिश की लेकिन ट्रेन नहीं रुकी। उसने गार्ड और असिस्टेंट स्टेशन मास्टर से भी मदद की गुहार लगाई लेकिन दोनों तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। अब असलियत क्या है, यह तो जांच रिपोर्ट के बाद ही सामने आएगी लेकिन दुर्घटना हो जाने के पहले और बाद के दृश्य लापरवाहियों की महागाथा बयान करते हैं।
हादसे की जानकारी तुरंत मिलने के बावजद रेलवे की मेडिकल वैन आधी-अधूरी तैयारियों के साथ करीब पौने दो घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंची। उसमें पर्याप्त संख्या में डॉक्टर भी मौजूद नहीं थे। तब तक स्थानीय लोग, आईटीबीपी के जवान और एक निजी कंपनी के कर्मचारी किसी तरह लोगों की मदद करते रहे। डेढ़ घंटे बाद पहुंची स्थानीय पुलिस और आरपीएफ जवान केवल डंडे फटकार कर अपनी भूमिका निभाते रहे। मौके पर तमाशबीन बनकर सबसे आखिरी में रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी पहुंच सके। दुर्घटना वीवीआईपी माने जाने वाले रायबरेली क्षेत्र में हुई लेकिन जिले के डीएम और एसपी दोनों छुट्टी पर थे और उनकी जगह कार्यभार संभाल रहे अफसरों को यह तक नहीं पता था कि उन्हें इस स्थिति में करना क्या है। ये बातें ये बताने के लिए काफी हैं कि हमारा सरकारी अमला किस तरह संवेदनहीन हो चुका है और किसी की जान की कीमत उसके लिए कुछ भी नहीं। हादसे के ठीक एक दिन बाद ही लखनऊ में डबल डेकर ट्रेन का उद्घाटन होना था। उसमें क्षेत्रीय सांसद और रेल राज्यमंत्री मनोज कुमार सिन्हा को हिस्सा लेना था। उस वक्त ये सारा सरकारी अमला अपना कामकाज बड़ी तेजी से निपटाता। सारी व्यवस्था चाक-चौबंद रहती लेकिन आम आदमी की मौत से उसका कलेजा नहीं दहला। अगर उनके अपने इस ट्रेन में होते तो भी क्या वह इसी तरह का व्यवहार करते?

राजधानी के एसजीपीजीआई में ट्रॉमा सेंटर का न होना भी कई बेगुनाहों की जान ले गया। दूरी व जाम के कारण घायल यात्रियों को लेकर काफी देर से एम्बुलेंस केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर पहुंच सकी। ऐसे में चार जख्मी यात्रियों ने एम्बुलेंस में ही दम तोड़ दिया। डॉक्टर खुद मानते हैं कि यदि समय रहते खून बहने से रोका जाता तो इन जिंदगियों को बचाया जा सकता है। एसजीपीजीआई के ट्रॉमा सेंटर की बात करें तो उसकी बिल्डिंग को तैयार हुए दो साल हो चुके हैं लेकिन मोटे बजट व संसाधनों के अभाव में ये आज तक शुरू नहीं हो सका है। इस सेंटर को केजीएमयू प्रशासन को भी सौंपने पर चर्चा हुई थी लेकिन पीजीआई प्रशासन ने इससे इन्कार कर दिया। दुर्घटना के बाद भीड़ लगाकर घायलों का हालचाल लेने के लिए पहुंचने वाले माननीय यदि इन पहलुओं की तरह ध्यान देते तो शायद इस तरह की घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या को कम किया जा सकता।

सबसे त्रासद बात यह है कि हादसे का शिकार बनी जनता एक्सप्रेस की देहरादून से चलने से पहले सामान्य सुरक्षा जांच भी नहीं की गई। ट्रेन कई बड़े स्टेशनों से गुजरती गई और ब्रेक जैसे जरूरी महत्वपूर्ण उपकरण की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। अधिकारी इसके लिए औजारों और कर्मचारियों की कमी को वजह बताते हैं। इस तरफ देश का सबसे अधिक कर्मचारियों वाला विभाग कब ध्यान देगा, यह कोई नहीं जानता। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ट्रेन में सीवीसी कपलर नहीं लगे थे बल्कि उसकी बोगियों के बीच साधारण पेंच वाले कपलर लगे थे। जिसके कारण दुर्घटना होने के बाद ये कपलर टूट गए और बोगियां एक दूसरे पर चढ़ती चली गईं। बानगी यह है कि अब भी कई ऐसी ट्रेनें हैं जिनमें इन कपलर का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा। कई संस्थान रात-दिन रेलवे के लिए तकनीक विकसित करने का दावा करते हैं लेकिन इस दुर्घटनाओं के वक्त सभी खोखले दिखाई पड़ते हैं। कुल मिलाकर इस हादसे ने हर पहलू से केंद्र, प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन की नाकामयाबी का खुलासा कर दिया है।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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