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मुख्य समाचार

लोकायुक्त के चयन के लिए हुई बैठक बेनतीजा

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नए लोकायुक्त के चयन को लेकर राज्य सरकार और राजभवन के बीच बढ़े टकराव के बीच रविवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में लखनऊ में उनके आवास पर बैठक हुई। बैठक में हालांकि कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

मुख्यमंत्री के आवास 5, कालिदास मार्ग पर हुई इस बैठक में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और विधानसभा में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी हिस्सा लिया। सूत्रों की मानें तो मौजूदा लोकायुक्त संशोधन विधेयक लंबित होने की वजह से ही बैठक में कोई नतीजा नही निकल पाया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने यह सलाह दी कि विधिक राय लेने के बाद इसको लेकर बैठक बाद में बुलाई जाए।

दरअसल, प्रदेश के वर्तमान लोकायुक्त न्यायमूर्ति एऩ क़े मेहरोत्रा का कार्यकाल 15 मार्च 2014 को ही पूरा हो गया था, तभी से लोकायुक्त का पद खाली है। ऐसे में इस पद पर नई नियुक्ति न होने से मेहरोत्रा ही कार्यभार देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह यादव को प्रदेश का नया लोकायुक्त बनाने पर अड़ी हुई थी। बताया जा रहा है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए सरकार ने न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह यादव की नियुक्ति के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लगाकर इसकी संस्तुति के लिए राजभवन भेजा था। लेकिन अब राज्यपाल ने संस्तुति की पत्रावली को वापस सरकार के पास भेज दिया था।

राजभवन के कड़े रुख को देखते हुए राज्य सरकार ने नए पैनल के साथ बैठक बुलाई थी। इस पैनल में कई लोगों के नाम शामिल हुए हैं। सूत्रों की मानें तो मुजफ्फरनगर दंगा आयोग के अध्यक्ष रह चुके सेवानिवृत्त न्यायाधीश विष्णु सहाय भी लोकायुक्त बनने की रेस में शामिल हैं। उप्र में नए लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के कड़े रुख के बाद राज्य सरकार पर काफी दबाव है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई समय सीमा 21 अगस्त को पूरी हो जाएगी।

नेशनल

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 रुपये के बदले देना पड़ेगा 35,453 रुपये, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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