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सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखी सर्वोच्चता

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सिंहावलोकन-2014
नई दिल्ली| देश का सर्वोच्च न्यायालय अपने फैसलों के जरिए वर्ष 2014 में अपनी सर्वोच्चता बनाए रखा। यह अलग बात है कि देश की नई सरकार ने न्यायपालिका पर लगाम लगाने के लिए दो विधेयक संसद में पेश किए, जिसके जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया बदली जाएगी और उनपर अनुशासन के उपाय लाए जाएंगे। न्यायालय ने प्रधानमंत्री मोदी से यह भी कहा कि दागी सांसदों को मंत्री न बनाया जाए। न्यायालय ने कार्यपालिका और कारोबारी जगत के हर संदिग्ध कदम पर सख्त सवाल पूछे और समाज के कमजोर एवं वंचित तबके के पक्ष में फैसले सुनाए। न्यायपालिका ने पर्यावरण से लेकर सामाजिक एवं आर्थिक न्याय और व्यापार तक हर क्षेत्र में अपनी सर्वोच्चता कायम रखी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सी. ए. सुंदरम ने आईएएनएस से कहा, “सर्वोच्च न्यायालय आज देश में सबसे शक्तिशाली और प्रभावी स्थान हासिल कर चुका है। निडर और स्वतंत्र न्यायपालिका ने उन क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप किए, जिनमें इससे पहले न्यायालय नहीं करता रहा है। न्यायालय ने आज उस हर क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, जिसका संबंध आम आदमी के हित से जुड़ा है। इस तरह सर्वोच्च न्यायालय आज आम आदमी के हितों की रक्षा करने वाले संस्थान का दर्जा हासिल कर चुका है।”

सर्वोच्च न्यायालय नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा संविधान संशोधन कर न्यायाधीशों की नियुक्ति की दशकों पुरानी कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव कर न्यायाधीशों की नियुक्ति और उन्हें अनुशासित रखने में सरकारी हस्तक्षेप की कोशिश के बीच भी अडिग बना रहा।

सरकार की इस पहल पर देश की न्यायपालिका में काफी उथल-पुथल मचा रहा और तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा ने साफ-साफ कह दिया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति न्याय प्रणाली की समझ रखने वाले व्यक्तियों द्वारा ही होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, “न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता। मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बरकरार रहेगी और न्यायपालिका को इससे दूर करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा।”

न्यायालय ने सरकार के आगे न झुकते हुए 1993 से सरकार द्वारा किए गए सभी कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द कर दिए। इसके साथ ही न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि नौकरशाह अब उस व्यवस्था का लाभ नहीं ले सकते, जिसमें सीबीआई जांच के लिए सरकार से पूर्व मंजूरी लेनी पड़ती थी।

इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नरों को ‘तीसरे लिंग’ के रूप में पहचान दी, समाज के अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले लाभ बरकरार रखे और डीएलएफ जैसे कारोबारियों को साफ-साफ कहा कि वे अपनी मजबूत स्थिति का नाजायज लाभ नहीं उठा सकते।

कारोबार जगत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें अपने संस्थान को भ्रष्टाचार मुक्त रखने, कंपनी कानून को लागू करने और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी न करने के फैसले सुनाए।

न्यायालय के आदेशों की अवज्ञा को बिल्कुल भी बर्दाश्त न करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह के चेयरमैन सुब्रत राय और उनकी कंपनी के दो निदेशकों को तिहाड़ जेल भेज दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने सामाजिक समस्याओं जैसे श्रमिकों के साथ अन्याय या दुष्कर्म के खिलाफ कठोर फैसले सुनाए और मुजफ्फरनगर दंगा मामले में और जम्मू एवं कश्मीर में आई बाढ़ के कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास के मामले में संवेदनशीलता भी दिखाई।

वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेस ने सर्वोच्च न्यायालय की सराहना करते हुए कहा, “सर्वोच्च न्यायालय देश की एकमात्र संस्था है, जहां गरीब अपनी फरियाद लेकर जा सकते हैं।” गोंजाल्वेस ने हालांकि यह भी कहा कि अल्पसंख्यकों, जनजातीय समुदाय और अन्य वंचित तबके के खिलाफ हुए अत्याचार के मामलों का निपटारा करने में कमी रह गई।

अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक सामाजिक न्याय पीठ का गठन किया, जिसमें 12 दिसंबर से कामकाज शुरू हो चुका है।

अल्पसंख्यकों पर एक अहम फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम दंपति को किशोर न्याय कानून के तहत एक बच्चा गोद लेने की मंजूरी दे दी और अपने फैसले में कहा कि शरीयत आदालतों और उनके द्वारा जारी फतवों की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में प्रचलित सांड़ों की लड़ाई बंद करने का आदेश देकर, जहां एक तरफ पशु अधिकारों की रक्षा की, वहीं उस पर अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने के आरोप भी लगे।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2014 में दिए गए महत्वपूर्ण फैसले :

* मृत्युदंड पाए अपराधियों के मामलों के निपटारे और दया याचिका पर दिशा-निर्देश तैयार किया जाए।

* कानून भंग करने में शामिल किशोरों की सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड द्वारा की जाए।

* कैग दूरसंचार कंपनियों का लेखा परीक्षण कर सकता है।

* निर्वाचन आयोग पैसे लेकर समाचार प्रकाशित या प्रसारित करने के आरोपों की जांच कर सकता है।

* शरीयत अदालतों को कानूनी मान्यता नहीं।

* विवादित सांसदों को मंत्री पद न दें।

* गंगा के शुद्धीकरण के लिए चरणबद्ध योजना बनाने के लिए आदेश दिए।

* आरोपी व्यक्ति ने अगर दोष सिद्ध होने पर मिलने वाली सजा की आधी सजा भोग ली हो तो उन्हें छोड़ दिया जाए।

* पूर्व सरकार द्वारा आवंटित 214 कोयला ब्लॉकों के आवंटन रद्द।

* विदेशी बैंकों में खाताधारकों के नाम सार्वजनिक किए जाएं।

* सीबीआई प्रमुख को 2जी मामले से खुद को अलग करने का आदेश दिया।

* सामाजिक मुद्दों की सुनवाई के लिए सामाजिक न्याय पीठ का गठन।

नेशनल

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 रुपये के बदले देना पड़ेगा 35,453 रुपये, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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