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स्पाइसेस बोर्ड ने आउटलेट खोले

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नई दिल्ली,स्पाइसेस बोर्ड,आउटलेट,शोरूम जनपथ रोड,बोर्ड अध्यक्ष ए. जयतिलक

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नई दिल्ली | स्पाइसेस बोर्ड ने अपनी स्थापना के लगभग तीन दशक बाद, आउटलेट शुरू किए हैं, जिसमें एक ही स्थान पर जीवन शैली और पर्सनल केयर उत्पादों के साथ-साथ सर्वोत्तम मसाले प्रदर्शित किए जाएंगे। ‘स्पाइसेस इंडिया’ ब्रांड नाम से दो आउटलेट दिल्ली में बुधवार को खोले गए। एक शोरूम जनपथ रोड पर और दूसरा जनकपुरी में एथनिक उत्पादों के लिए प्रसिद्ध फैशनेबल हवादार प्लाजा दिल्ली हाट में खोला गया है।

आउटलेट में मसालेदार चॉकलेट, ब्यूटी क्रीम, फेयरनेस ऑयल, बाथिंग बार, शॉवर जेल और शैम्पू जैसे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की एक पूरी श्रंखला मौजूद होगी। वाणिज्य सचिव राजीव खेर ने आउटलेट को उद्घाटन करते हुए कहा, “शुद्धता और गुणवत्ता आउटलेट की पहचान होगी। सही वजन और गुणवत्ता का सख्ती से पालन होगा।” आउटलेट का एक प्रमुख आकर्षण सुगंधित जेल मोमबत्तियों का बेचना है। ये मोमबत्तियां जायफल, लौंग, इलायची, मिंट, वेनिला और दालचीनी की खुशबू के साथ उपलब्ध हैं। आउटलेट में बेहतर गुणवत्ता वाले मसालों की एक सारणी के साथ गिफ्ट बॉक्स और कंटेनर भी उपलब्ध है। आउटलेट में एक ‘स्पाइस किचेन’ है, जहां आगंतुक मसालों को छू सकते हैं, महसूस कर सकते हैं और मसालों का स्वाद ले सकते हैं। मसालों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए काउंटर पर कर्मचारी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, एक छोटा सा पुस्तकालय है, जहां मसालों की किस्मों पर किताबें और वृत्तचित्र उपलब्ध हैं। यहां भारत का नक्शा भी उपलब्ध है जहां विभिन्न क्षेत्रों में उगाए जाने वाले मसालों को दिखाया गया है।

स्पाइसेस बोर्ड अध्यक्ष ए. जयतिलक ने कहा, “हमने आउटलेटों के विस्तार की योजना बनाई है। हम जगह उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकारों से बात कर रहे हैं। हम देश के विभिन्न हिस्सों में नए आउटलेट खोलने की उम्मीद कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि बोर्ड किसानों और इसकी सामूहिक संस्थाओं को उनके साथ सीधे व्यापार कर उनकी उपज के लिए एक बेहतर कीमत तय करने में मदद करने के लिए प्रयासरत है। उन्होंने कहा, “यह प्रणाली बिचैलियों को खत्म करता है और सामूहिक संस्थाएं अपने माल के लिए एक उचित मूल्य की मांग कर सकती हैं। हम उन्हें बाजार मूल्य से अधिक कीमत चुका रहे हैं।”

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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