मुख्य समाचार
स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तत्काल जरूरत
देवानिक साहा
भारत की सार्वजनिक सुरक्षा प्रणाली पर तत्काल ध्यान देने और उसमें निवेश करने की जरूरत है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी-2015 के मुताबिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में विशेष चिकित्सा पेशेवरों की 83 फीसदी कमी है। इंडियास्पेंड के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। सीएचसी स्वास्थ्य देखभाल का द्वितीयक स्तर है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) से भेजे जाने वाले मरीजों को विशेष इलाज प्रदान करता है। एक सीएचसी के अंतर्गत चार पीएचसी होते हैं और यह जनजाति क्षेत्रों में 80 हजार, पहाड़ी व रेगिस्तानी इलाकों में 1.2 लाख लोगों तक अपनी सेवाएं मुहैया कराता है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण द्वारा साल 2012 में निर्धारित भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के मुताबिक, एक आदर्श सीएचसी 30 बिस्तरों का अस्पताल होता है, जिसमें चिकित्सा, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, शिशु रोग विभाग, दंत चिकित्सा व आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी (आयुष) होना चाहिए।
रिपोर्टों के मुताबिक, साल 2015 के बजट में सरकार ने भारत के स्वास्थ्य देखभाल के बजट में 15 फीसदी की कटौती की, जिसकी चहु़ंओर आलोचना हुई। सरकार ने हाल में घोषणा की कि वह स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता व बाल विकास कार्यक्रमों के लिए बजट में बढ़ोतरी करेगी और संसद से इसकी मंजूरी मांगी। देशभर के सीएचसी में सर्जनों की 83 फीसदी कमी है। अरुणाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय व तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं, जहां सीएचसी में सर्जन नहीं हैं। वहीं देश भर के सीचएसी में स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञों की 76 फीसदी कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, मातृ, नवजात शिशु व बच्चों की सर्वाधिक मौतें भारत में होती हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, नवजात शिशुओं की मौत साल 1990 में प्रति एक हजार जन्म पर 83 थी, जो साल 2011 में घटकर 44 हो गई। वहीं मातृ मृत्यु दर अनुपात साल 1990 में प्रति एक लाख जन्म पर 570 थी, जो साल 2007-2009 में घटकर 212 हो गई। दोनों ही सूचक ब्रिक्स के अन्य देशों जैसे ब्राजील, रूस, चीन व दक्षिण अफ्रीका तुलना में अधिक हैं। इन आंकड़ों से यही अर्थ निकलता है कि ग्रामीण भारत में विशेष चिकित्सा अभी दूर की कौड़ी है, जिसके कारण लोगों की भारी तादाद महंगी निजी चिकित्सा की तरफ जाने को मजबूर है।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा सामाजिक उपभोग स्वास्थ्य 2014 सर्वेक्षणों के प्रमुख संकेतकों के मुताबिक, ग्रामीण भारत में अस्पताल में होने वाले 58 फीसदी इलाज निजी अस्पतालों में होते हैं, जबकि शहरी भारत में यह आंकड़ा 68 फीसदी है। सर्वेक्षण के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में गैर अस्पताल के इलाज निजी क्षेत्र द्वारा किए जाते हैं, जिनमें निजी चिकित्सक, नर्सिग होम, निजी अस्पताल व चैरिटेबल संस्थान हैं।
(देवानिक साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह आलेख इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत है।)
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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