ऑफ़बीट
हिंदी ग़ज़ल का वह पहला शायर, जिसने इंदिरा गांधी तक को दी थी अपनी कलम से मात
कहते है ‘कलम में बहुत ताक़त होती है शायद इतनी ताक़त जिसका आंकलन भी कर पाना मुश्किल है। कलम तो हर किसी के पास होती है। पर इसका सही इस्तेमाल सिर्फ कुछ चुनिन्दा लोग ही कर पाते है ।’दुष्यंत कुमार’ जी उन कुछ चुनिन्दा लोगों में से एक है। दुष्यंत कुमार के इस स्पेशल बर्थडे पर आइये साझा करते है आपसे उनसे जुडी कुछ एहम बातें जिन्हे जान हमारे दिल में उनके प्रति सम्मान और बढ़ जाएगा ।
दुष्यंत कुमार अगर आज होते तो 84 साल के होते। मगर बड़ा सवाल ये है कि अगर आज वो होते तो क्या कह रहे होते? इमरजेंसी के दौर में जब बड़े लेखक और कवि सरकार की तारीफ में बिछे जा रहे थे। आकाशवाणी भोपाल का ये सरकारी कर्मचारी सीधे सरकार को निशाने पर रखकर ग़ज़लें कह रहा था। वो भी कुछ इस अंदाज़ में कि ‘एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है’।
इस शेर में गुड़िया तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए है। इसी ग़ज़ल में दुष्यंत कह जाते हैं कि ‘कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है।’
अगर ये शेर आज कहा गया होता तो तय करना मुश्किल है कि ये दुष्यंत पहले ट्रोल होते, पहले उन पर टीवी चैनल विवादास्पद बयान का पैकेज करते या उन पर देशद्रोह का आरोप लगता।
खैर, दुष्यंत अपनी किताब ‘साए में धूप’ की 52 ग़ज़लों में जो कह गए वो मौजूं था है और रहेगा। शायद इसीलिए क्रांतिकारी होने का दावा करने के दौर में अरविंद केजरीवाल ‘हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए’’ हर सभा में गाते थे।
हिंदी ग़ज़ल के पहले मशहूर शायर-
दुष्यंत हिंदी ग़ज़ल के पहले शायर कहे जाते हैं। ऐसा नहीं है कि दुष्यंत से पहले हिंदी में किसी ने ग़ज़ल नहीं कही। बलवीर सिंह रंग, गोपाल दास नीरज और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तक ने अलग-अलग नामों के साथ ग़ज़ल को हिंदी में लाने की कोशिश की थी, लेकिन इन सबकी मूल प्रवृत्ति उर्दू ग़ज़ल की तरह ‘माशूक की ज़ुल्फों के पेंचोखम सुलझाने’ की ही थी। जबकि भाषा के स्तर पर दुष्यंत कहीं से भी हिंदी के खेमे खड़े नहीं दिखते हैं।
उनका शेर पढ़िए ‘कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए’ चरागां दीपावली के लिए इस्तेमाल होने वाला फारसी शब्द है। जो हिंदी वालों के लिए बिलकुल अनजाना है। साथ ही साथ इस पूरे शेर में कोई ऐसा शब्द नहीं जिसे हिंदी के चलन से जोड़ कर देखा जा सकता है. फिर सवाल उठता है कि दुष्यंत कैसे हिंदी ग़ज़ल के पुरोधा कहे जा सकते हैं?
दुष्यंत के बहाने ग़ज़ल में तीन बदलाव हुए इनसे जो नए किस्म की ग़ज़ल बनी वो हिंदी ग़ज़ल कहलाई. सबसे पहला बदलाव विषय का था. परंपरागत तबके के लिए ग़ज़ल का मतलब इश्क, मोहब्बत की बातें करना था। दुष्यंत की ग़ज़लों में समाज का दर्द और सत्ता से विद्रोह है. ये विद्रोह भी इतना तीखा है कि पढ़ने वाले को अंदर तक छीलकर रख देता है. सरकार की ज़्यादतियों के बाद भी उनका समर्थन करने वाली जनता के लिए कहा गया उनका शेर पढ़िए, ‘न हो कमीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।’
दुष्यंत ने ग़ज़ल का सब्जेक्ट ही नहीं बदला, शेर-ओ-शायरी के रूपक भी बदल दिए। परंपरागत जहां ग़ज़लों में शमा के बाद परवाना और शीशे के बाद पत्थर आना लगभग तय होता है। दुष्यंत ग़ज़ल में गंगा और हिमालय जैसे प्रतीक इस्तेमाल किए।
ये प्रतीक नए होने के साथ-साथ हिंदुस्तान की आत्मा से जुड़े हैं जिनका आप शब्दानुवाद नहीं कर सकते। जब वो पत्नी के लिए कहते हैं, ‘तुमको निहारता हूं सुबह से ऋतंबरा, अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा’ तो ऋतंबरा के मेटाफर को समझने के लिए आपको हिंदी पट्टी की संस्कृति को समझना पढ़ेगा।
बहुत कुछ था उनके दिल में-
मंच की लोकप्रियता भुनाने के लिए कई चर्चित कवि दुष्यंत को अक्सर ‘कठिन अतुकांत कविताओं के सामने सरल हिंदी में बात कहने वाला कहते हैं’. ये गलत है।दुष्यंत की भाषा सरल ज़रूर है मगर उनके कंटेंट में सिर्फ जनता को लुभाने वाली तुकबंदी नहीं है. साथ ही साथ दुष्यंत ने अपनी 42 साल की छोटी सी ज़िंदगी में ग़ज़लों से इतर कविताएं, नाटक, उपन्यास कहानियां बहुत कुछ लिखा।
2015 में आई फिल्म ‘मसान’ का एक गाना दुष्यंत के शेर से शुरू होता है, ‘तू किसी रेल सी गुज़रती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं’ इस एक शेर से आगे की लिरिक्स वरुण ग्रोवर ने लिखी हैं और बहुत खूब लिखी हैं. लेकिन जिस ग़ज़ल से ये लिया गया है, उसका मतला (पहला शेर) दुष्यंत की ग़ज़लों की पूरी प्रवृत्ति को ज़ाहिर कर देता है, ‘मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं। ’
‘सूर्य का स्वागत’ की उनकी कविताएं उस दौर की नई कविता के सभी मानकों पर खरी उतरती हैं। हालांकि इस बात में कोई शक नहीं कि ग़ज़लों ने दुष्यंत को उस मुकाम तक पहुंचाया जहां कई लोग कई-कई महाकाव्य लिखकर भी नहीं पहुंच पाते हैं।
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पकिस्तान के वो काले कानून जो आप जानकर हो जाएंगे हैरान
नई दिल्ली। दुनिया के हर देश में कई अजीबोगरीब कानून होते हैं जो लोगों को हैरान करते हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी कई अजीबोगरीब कानून हैं। इस मामले में पड़ोसी देश पहले नंबर पर है। ऐसे कानूनों की वजह से पाकिस्तान की दुनियाभर में आलोचना भी होती है। अभी कुछ महीने पहले ही एक कानून को लेकर उसकी खूब आलोचना हुई थी।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक अजीबोगरीब विधेयक का प्रस्ताव पेश किया गया था। यह विधेयक पड़ोसी देश के साथ ही दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया था। इस बिल में कहा गया था कि 18 साल की उम्र होने पर लोगों की शादी को अनिवार्य कर देना चाहिए। इसके अलावा इस कानून को नहीं मानने वालों को सजा का भी प्रावधान है। पाकिस्तानी राजनेताओं का इसके पीछे तर्क है कि इससे सामाजिक बुराइयों और बच्चों से बलात्कार को रोकने में मदद मिलेगी। आईए जानते हैं पाकिस्तान के कुछ ऐसे ही अजीबोगरीब कानून के बारे में।
बिना इजाजत नहीं छू सकते हैं फोन
पाकिस्तान में बिना इजाजत किसी का फोन छूना गैरकानूनी माना जाता है। अगर कोई गलती से भी किसी दूसरे का फोन छूता है, तो उसे सजा का प्रावधान है। ऐसा करने वाले शख्स को 6 महीने जेल की सजा हो सकती है।
अंग्रेजी अनुवाद है गैरकानूनी
पाकिस्तान में आप कुछ शब्दों का अंग्रेजी अनुवाद नहीं कर सकते हैं। इन शब्दों का इंग्लिश ट्रांसलेशन करना गैरकानूनी माना जाता है। यह शब्द हैं अल्लाह, मस्जिद, रसूल या नबी। अगर कोई इनका अंग्रेजी अनुवाद करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होती है।
पढ़ाई की फीस पर लगता है टैक्स
पाकिस्तान में पढ़ाई करने पर टैक्स देना पड़ता है। अगर कोई छात्र पढ़ाई पर 2 लाख से अधिक खर्च करता है, तो उसको पांच प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है। शायद इसी डर से पाकिस्तान में लोग कम पढ़ाई करते हैं।
लड़की के साथ रहने पर होती है कार्रवाई
अगर कोई लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रहते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे जेल की सजा होती है। यहां पर कोई किसी लड़की के साथ दोस्ती नहीं कर सकता है। पड़ोसी देश में कानून है कि शादी के पहले लड़का और लड़की एक साथ नहीं सकते हैं।
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