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बैंकों पर लटके रहे ताले, 22 हजार करोड़ का लेनदेन प्रभावित

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नई दिल्ली/चेन्नई/कोलकाता| सरकार के ‘जन-विरोधी बैंकिंग सुधारों’ के खिलाफ मंगलवार को देशभर में 10 लाख बैंककर्मियों द्वारा की गई हड़ताल के कारण बैंकों में कामकाज पर व्यापक असर दिखा और कई हिस्सों में बैंक शाखाओं-कार्यालयों में कामकाज पूरी तरह ठप रहा। हड़ताल का आह्वान ‘यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस’ (यूएफबीयू) ने किया था, जिसमें नौ संगठन शामिल हैं।

यूएफबीयू ने यह मांग भी की कि नोटबंदी के कारण बैंक कर्मियों को जो अतिरिक्त काम करने पड़े हैं, उसके लिए उन्हें मुआवजा दिया जाए।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सी. एच. वेंकटचलम ने कहा, “वाणिज्यिक बैंकों की करीब 85,000 शाखाएं, सहकारी बैंकों की 1,05,000 शाखाएं और अन्य बैंक भी हड़ताल पर रहे।” उन्होंने कहा कि हड़ताल के कारण 40 लाख चेकों की निकासी रुकी हुई है, जिससे करीब 22,000 करोड़ रुपये का लेनदेन प्रभावित हुआ।

हड़ताल में भारतीय स्टेट बैंक सहित सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक, पुरानी पीढ़ी के सभी निजी बैंक, विदेशी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा सहकारी बैंकों के कर्मचारी और अधिकारी शामिल रहे। एक सरकारी बैंक के एक अधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध के साथ कहा, “बैंक लिपिकों को नोटबंदी के दौरान अतिरिक्त काम करने के लिए ओवरटाइम भत्ता मिलेगा। लेकिन अधिकारियों को कुछ नहीं मिलेगा और साथ ही हड़ताल के कारण उनका एक दिन का वेतन भी कटेगा।”

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन (एआईबीओसी) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डी. थॉमस फ्रैंको राजेंद्र देव ने हालांकि इससे असहमति जताते हुए कहा, “हमारा कहना है कि सभी कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। अधिकारियों को भी उनका जायज हक मिलेगा।” एआईबीईए के उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष जे. पी. शर्मा ने कहा कि पूरे उत्तर भारत में हड़ताल सफल रही।

शर्मा ने कहा, “सभी सरकारी बैंकों और कई निजी क्षेत्र के बैंकों के सभी कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया और इसका बैंकों के कामकाज पर पूरा प्रभाव रहा। अधिकांश बैंक शाखाएं बंद रहीं।” उन्होंने बताया कि दिल्ली में जंतर-मंतर पर हजारों की संख्या में बैंककर्मी इकट्ठा हुए और उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया। हड़ताल का बिहार, बंगाल और मध्य प्रदेश में भी व्यापक असर रहा। बिहार में सभी बैंक दिनभर बंद रहे, जिस कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा।

यूएफबीयू की बिहार शाखा के महासचिव ज़े पी़ दीक्षित ने दावा किया कि बिहार में हड़ताल का खासा असर देखा गया। हड़ताल में 72 हजार कर्मचारी शामिल हुए। राज्य की 6775 बैंक शाखाएं और 6690 एटीएम भी इस हड़ताल से प्रभावित रहीं। बैंक हड़ताल के कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। दोपहर के बाद अधिकांश एटीएम में भी पैसे समाप्त हो गए।

मध्य प्रदेश की लगभग 7,000 बैंक शाखाओं में कामकाज पूरी तरह ठप रहा। संघ की राज्य शाखा की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, राज्य के सरकारी व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की लगभग सात हजार शाखाओं में कामकाज पूरी तरह ठप रहा। इस हड़ताल में 40 हजार से ज्यादा अधिकारियों व कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।

संघ के बैनर तले राजधानी भोपाल के अलावा इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर सहित कई स्थानों पर रैलियां निकालकर बैंकिंग सुधार के तरह जनविरोधी कदम और कामगार विरोधी श्रम सुधारों का विरोध करते हुए नोटबंदी के दौरान किए गए अतिरिक्त कार्य का मुआवजा दिए जाने की मांग की गई।

बंगाल में भी बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के नौ श्रमिक संघों ने हड़ताल में हिस्सा लिया और बैंकों का कामकाज ठप रहा। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राजेन नागर ने आईएएनएस को बताया, “वाणिज्यिक, सहकारी और ग्रामीण बैंकों की 8,000 शाखाओं के कर्मचारियों और अधिकारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया। हड़ताल सौ फीसदी सफल रहा। राज्य के 10,000 एटीएम बूथों में से 90 फीसदी एटीएम बंद रहे।”

भारतीय बैंक कर्मचारी महासंघ के महासचिव प्रदीप बिस्वास ने बताया, “बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों ने आज (मंगलवार) केंद्र सरकार द्वारा बैंक क्षेत्र में लागू किए जा रहे नव-उदारवादी सुधारों के खिलाफ अपनी स्पष्ट मांगों को उठाते हुए कामकाज ठप रखा।” वेंकटचलम ने कहा कि हड़ताल पूरे देश में सफल रही है और संघ की मांगों का कोई हल न निकलने पर यह कदम उठाया गया है। मुख्य श्रम आयुक्त के साथ 21 फरवरी को हुई बैठक में भी कोई हल नहीं निकला, क्योंकि भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने एआईबीईए की मांगों को मानने से इंकार कर दिया।

अधिकांश सरकारी बैंकों ने ग्राहकों को सूचित कर दिया था कि अगर मंगलवार को हड़ताल हुई तो शाखाओं और कार्यालयों में कामकाज प्रभावित रहेगा। आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक समेत नई पीढ़ी के निजी बैंक संघ का हिस्सा नहीं हैं और उनमें कामकाज सामान्य रहा, लेकिन चेकों की निकासी नहीं हुई।

प्रादेशिक

IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी

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महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।

कौन हैं IPS संजय वर्मा?

IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।

कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।

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